खनिज और जंगलों के बाद खेल में भी झारखंड ने बढ़ाया मान
12 खिलाड़ियों ने ओलिंपिक में किया देश-प्रदेश का नाम रोशन
खेल के मैदान में भी झारखंड ने दुनिया को दिखाया दम
रांची. खनिज संपदा और घने जंगलों के लिए देश-दुनिया में मशहूर झारखंड अब खेल जगत में भी अपनी खास पहचान बना रहा है. राज्य के खिलाड़ियों ने ओलिंपिक जैसे प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय मंच पर शानदार प्रदर्शन कर न केवल प्रदेश, बल्कि पूरे देश का मान बढ़ाया है. अब तक झारखंड के 12 खिलाड़ी ओलिंपिक में अपना हुनर दिखा चुके हैं. इनमें हॉकी, तीरंदाजी, बॉक्सिंग और बास्केटबॉल जैसे खेल शामिल हैं. राज्य के हॉकी खिलाड़ियों का दबदबा खास तौर पर देखने को मिला है. सबसे प्रमुख नाम में सिल्वानुस डुंगडुंग, मनोहर टोपनो के अलावा निक्की प्रधान, सलीमा टेटे, रीना कुमारी, दीपिका कुमारी, हरभजन सिंह समेत कई नाम शामिल हैं.ये हैं झारखंड के गौरव
झारखंड के ओलिंपिक इतिहास की शुरुआत जयपाल सिंह मुंडा से हुई, जिन्होंने वर्ष 1928 के एम्स्टर्डम ओलिंपिक में भारतीय हॉकी टीम की कप्तानी कर स्वर्ण पदक दिलाया. इसके बाद माइकल किंडो, जिन्होंने वर्ष 1972 म्यूनिख ओलिंपिक में कांस्य और वर्ष 1975 विश्व कप में स्वर्ण पदक जीतने वाली टीम में अहम भूमिका निभायी. सिल्वानुस डुंगडुंग ने वर्ष 1980 के मास्को ओलिंपिक में भारत को स्वर्ण दिलाने वाली टीम में अपनी उपस्थिति दर्ज करायी. वहीं, मनोहर टोपनो वर्ष 1984 लॉस एंजिल्स ओलिंपिक में भारतीय हॉकी टीम का हिस्सा रहे. राज्य की बेटियों ने भी देश का नाम रोशन किया है. गुमला की निक्की प्रधान झारखंड की पहली महिला हॉकी ओलंपियन बनीं. उन्होंने वर्ष 2016 रियो और वर्ष 2020 टोक्यो ओलिंपिक में शानदार प्रदर्शन किया. सिमडेगा की सलीमा टेटे ने भी टोक्यो ओलिंपिक में भारतीय महिला हॉकी टीम में जगह बनायी और अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया. तीरंदाजी में रीना कुमारी, दीपिका कुमारी, पूर्णिमा महतो और मंगल सिंह चंपिया ने ओलिंपिक तक का सफर तय कर प्रदेश को गौरवान्वित किया. बॉक्सिंग में एएल लकड़ा और दिवाकर प्रसाद ने झारखंड का प्रतिनिधित्व किया. बास्केटबॉल में हरभजन सिंह का नाम भी इस सूची में शामिल है.ओलंपिक डे की शुरुआत और महत्व
गौरतलब है कि ओलिंपिक खेलों की नींव 23 जून 1894 को पेरिस में रखी गयी थी. इसके उपलक्ष्य में वर्ष 1948 से हर वर्ष 23 जून को अंतरराष्ट्रीय ओलिंपिक दिवस मनाया जाता है. इसका उद्देश्य खेलों को जन-जन तक पहुंचाना और हर वर्ग की भागीदारी सुनिश्चित करना है. सबसे पहले अंतरराष्ट्रीय ओलिंपिक समिति के नौ देशों ने इस दिन को मनाया था, जिसमें ऑस्ट्रेलिया, बेल्जियम, कनाडा, ग्रेट ब्रिटेन, ग्रीस, पुर्तगाल, स्वीटजरलैंड, उरुगुया और वेनेजुएला शामिल है. उसके बाद तो इस दिवस को पूरे विश्व भर में मनाया जाने लगा.झारखंड के 12 खिलाड़ी ओलिंपिक में रचे हैं इतिहास
ओलिंपिक गेम्स में झारखंड के खिलाड़ियों का दबदबा धीरे-धीरे बढ़ने लगा है. हॉकी की बात करें तो अब तक झारखंड में कुल छह हॉकी खिलाड़ियों ने ओलिंपिक तक का सफर तय किया है, जिसमें जयपाल सिंह मुंडा, माइकल किंडो, मनोहर टोपनो, सिल्वानुस डुंगडुंग, अजीत लकड़ा और निक्की प्रधान का नाम शामिल हो चुका है. वहीं, तीरंदाजी में भी झारखंड के खिलाड़ियों का ओलिंपिक गेम्स में दबदबा पिछले कुछ वर्षों से दिख रहा है. आर्चरी में रीना कुमारी, पूर्णिमा महतो और अब दीपिका कुमारी का नाम शामिल है. बास्केटबॉल में हरभजन सिंह ने ओलिंपिक तक का सफर तय किया है. अब तक झारखंड के कुल ऐसे 12 खिलाड़ी हैं, जो ओलिंपिक तक का सफर तय कर चुके हैं.झारखंड के ओलंपियन खिलाड़ियों के नाम
जयपाल सिंह मुंडा : हॉकीमाइकल किंडो : हॉकीसिल्वानुस डुंगडुंग : हॉकीहरभजन सिंह : बास्केटबॉल
मनोहर टोपनो : हॉकीरीना कुमारी : तीरंदाजीदीपिका कुमारी : तीरंदाजीनिक्की प्रधान : हॉकी
निक्की प्रधान : हॉकीसलीमा टेटे : हॉकीएएल लकड़ा : बॉक्सिंगमंगल सिंह चंपिया : तीरंदाजी
दिवाकर प्रसाद : बॉक्सिंगओलिंपिक में झारखंड के सितारे
जयपाल सिंह मुंडा : जयपाल सिंह मुंडा तीन जनवरी 1903-20 मार्च 1970 एक भारतीय राजनीतिज्ञ, लेखक और खिलाड़ी थे. वह वर्ष 1928 के एम्स्टर्डम ओलिंपिक में भारतीय हॉकी टीम के कप्तान थे, जिसने स्वर्ण पदक जीता था. वह संविधान सभा के सदस्य भी थे, जिसने भारत के संविधान का मसौदा तैयार किया. उन्होंने 1928 के ओलिंपिक में भारतीय हॉकी टीम का नेतृत्व किया, जिसमें टीम ने सभी मैच जीते. उन्होंने भारत को वर्ष 1928 में ओलिंपिक में स्वर्ण पदक दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी.
सिल्वानुस डुंगडुंग :
सिलवानुस डुंगडुंग भारत के एक पूर्व हॉकी खिलाड़ी हैं, जो वर्ष 1980 के मास्को ओलिंपिक में स्वर्ण पदक जीतने वाली टीम का हिस्सा थे. उन्हें वर्ष 2016 में ध्यानचंद पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. डुंगडुंग भारतीय सेना में भी अपनी सेवाएं दे चुके हैं. वर्ष 1988 में सेवानिवृत्ति के बाद रांची में रहते हैं. उन्होंने 1980 के मास्को ओलिंपिक में भारत के लिए स्वर्ण पदक जीता था. उस ओलिंपिक में भारत ने फाइनल में स्पेन को 4-3 से हराया था. बांस के हॉकी स्टिक और फल का उपयोग कर हॉकी खेलना सीखा.मनोहर टोपनो :
मनोहर टोपनो एक प्रसिद्ध भारतीय हॉकी खिलाड़ी हैं, जिन्होंने 1984 के लॉस एंजिल्स ओलिंपिक में भारतीय टीम का प्रतिनिधित्व किया था. 1982 से 1985 तक अंतरराष्ट्रीय हॉकी में भारत का प्रतिनिधित्व किया, जिसमें 1984 का लॉस एंजिल्स ओलंपिक भी शामिल हुए. वर्ष 1984 के ओलिंपिक में, भारतीय टीम पांचवें स्थान पर रही थी. वर्ष 1984 के ओलिंपिक में भारतीय टीम का प्रदर्शन अच्छा रहा, लेकिन पदक जीतने से चुक गये.माइकल किंडो :
पूर्व भारतीय हॉकी खिलाड़ी माइकल किंडो, जो 1972 म्यूनिख ओलिंपिक में कांस्य पदक जीतने वाली पुरुष टीम का हिस्सा थे. वर्ष 1975 में मलेशिया में हॉकी विश्व कप जीतने वाले अभियान में भी भारत के लिए खेला था, जहां टीम ने फाइनल में चिर प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान को हराया था. यह एकमात्र मौका था जब भारत ने विश्व कप जीता था. कुछ साल पहले माइकल किंडो का निधन हो गया. राउरकेला के इस्पात जनरल अस्पताल में उनका निधन हुआ.निक्की प्रधान :
गुमला जिले की रहने वाली निक्की प्रधान, झारखंड की पहली महिला ओलंपियन हॉकी खिलाड़ी हैं. उन्होंने 2016 रियोओलिंपिक और 2020 टोक्यो ओलिंपिक में भारतीय महिला हॉकी टीम का प्रतिनिधित्व किया. वर्ष 2017 में महिला एशिया कप की जीत, जकार्ता-पालेमबांग में 2018 एशियाई खेलों में रजत पदक जीतने वाले अभियान और 2018 महिला एशियाई चैंपियंस ट्रॉफी शामिल हैं. उन्होंने 2019 में हिरोशिमा में खिताब जीतने वाली एफआइएच महिला सीरीज फाइनल में भाग लिया और एफआइएच ओलिंपिक क्वालीफायर में यूएसए के खिलाफ भारत के अभियान में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी, जहां भारतीय टीम ने लगातार दूसरे संस्करण के लिए अपने ओलिंपिक खेलों की बर्थ को सील कर दिया. वह टोक्यो ओलिंपिक में टीम के ऐतिहासिक चौथे स्थान पर रहने, 2022 राष्ट्रमंडल खेलों में कांस्य पदक जीतने के साथ-साथ हाल ही में संपन्न एफआइएच हॉकी प्रो लीग 2021-22 में तीसरे स्थान पर रहने का भी हिस्सा थीं.सलीमा टेटे :
सिमडेगा जिले से ताल्लुक रखने वाली सलीमा टेटे ने टोक्यो ओलिंपिक 2020 में भारतीय महिला हॉकी टीम का हिस्सा बनकर बेहतरीन खेल दिखाया. उन्होंने कप्तानी भी की है और युवा खिलाड़ियों के लिए प्रेरणास्रोत बनी हैं. निक्की प्रधान के बाद सलीमा ओलिंपिक में हिस्सा बनने वाली झारखंड की दूसरी खिलाड़ी हैं. वह 2022 महिला एशिया कप में भारत के सफल अभियान का भी हिस्सा थीं, जहां टीम तीसरे स्थान पर रही. बर्मिंघम में राष्ट्रमंडल खेल 2022 में कांस्य पदक जीतने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी.रीना कुमारी :
रीना कुमारी ने 2004 के ग्रीष्मकालीन ओलिंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया था. वह 72-तीर के स्कोर 620 के साथ महिलाओं की व्यक्तिगत रैंकिंग राउंड में 43वें स्थान पर रही थीं. एलिमिनेशन के पहले राउंड में उनका सामना जॉर्जिया की 22वीं रैंक वाली क्रिस्टीन एसेबुआ से हुआ. रीना ने आश्चर्यजनक रूप से उलटफेर करते हुए 18 तीरों के मैच में एसेबुआ को 153-149 से हराकर राउंड ऑफ 32 में प्रवेश किया. उस दौर में उनका सामना भूटानी तीरंदाज शेरिंग छोडेन से हुआ. रीना ने नियमित 18 तीरों में 134-134 से बराबरी के बाद 7-4 के टाइब्रेकर में मैच जीतकर राउंड ऑफ 16 में प्रवेश किया. चीनी ताइपे की 6वीं रैंक वाली युआन शूची से 166-148 से हार गयीं. रीना 8वें स्थान पर रहने वाली भारतीय महिला तीरंदाजी टीम की सदस्य भी थीं.सरकार ने बढ़ाये कदम, नयी पीढ़ी को मिल रहा अवसर
खिलाड़ियों की कामयाबी ने सरकार को भी प्रेरित किया. अब ग्रामीण और आदिवासी इलाकों में खेल प्रतिभाओं को तराशने पर खास जोर दिया जा रहा है. सिमडेगा, गुमला, खूंटी जैसे जिलों में हॉकी मैदानों और खेल स्टेडियमों का तेजी से विकास हो रहा है. राज्य सरकार द्वारा खिलाड़ियों को छात्रवृत्ति, कोचिंग और आधुनिक सुविधाएं दी जा रही हैं, ताकि आने वाली पीढ़ी को बेहतर अवसर मिल सके. परिणामस्वरूप गांवों में खेल के प्रति नयी ऊर्जा और उत्साह देखा जा रहा है, खास तौर पर बेटियां अब हॉकी समेत विभिन्न खेलों में अपना भविष्य संवारने के सपने देख रही हैं.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है