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झारखंड हाईकोर्ट ने रिम्स की लचर व्यवस्था पर जतायी नाराजगी, कहा- अस्पताल में VIP कल्चर हावी

रिम्स निदेशक को झारखंड हाईकोर्ट ने वैसे चिकित्सकों की सूची पेश करने का निर्देश दिया है जो निजी प्रैक्टिस कर रहे हैं. खंडपीठ ने कहा कि 1100 करोड़ रुपये की लागत से आधारभूत संरचना का निर्माण होना है.

रांची: झारखंड हाईकोर्ट ने राज्य के प्रीमियर मेडिकल संस्थान रिम्स में इलाज की लचर व्यवस्था, खराब पड़े मेडिकल उपकरण, पद रिक्त रहने और चिकित्सकों के निजी प्रैक्टिस को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की. जस्टिस रंगन मुखोपाध्याय व जस्टिस दीपक रोशन की खंडपीठ ने रिम्स की दयनीय स्थिति पर कड़ी नाराजगी जतायी. खंडपीठ ने माैखिक रूप से कहा कि जब रिम्स में इतनी सारी कमियां हैं, तो सुधार क्यों नहीं हो रहा है? रिम्स में वीआईपी कल्चर हावी हो गया है. यहां आम मरीजों का इलाज बेड के अभाव में जमीन पर हो रहा है, जबकि पैरवी या वीआईपी मरीजों के लिए अलग से इलाज की व्यवस्था होती है. ऐसा प्रतीत होता है कि स्वास्थ्य विभाग की दिलचस्पी रिम्स को चलाने में नहीं है. साथ ही ब्यूरोक्रेट्स की दखलअंदाजी की वजह से रिम्स की आधारभूत संरचना बेहतर नहीं हो पा रही है.

रिम्स निदेशक को दिया ये निर्देश

यहां के मेडिकल उपकरण वर्षों पुराने हैं तथा कई खराब पड़े हैं, लेकिन उनकी मरम्मत नहीं करायी जा रही है. ऐसे में तो रिम्स को बंद कर देना चाहिए. रिम्स में कुव्यवस्था के कारण प्राइवेट अस्पताल, नर्सिंग होम व जांच केंद्र फल-फूल रहे हैं. खंडपीठ ने कहा कि यह दुर्भाग्य की बात है कि रिम्स के चिकित्सक नन प्रैक्टिसिंग अलाउंस लेने के बावजूद नर्सिंग होम, प्राइवेट अस्पताल अथवा अपना क्लिनिक खोल कर निजी प्रैक्टिस कर रहे हैं. रिम्स निदेशक को खंडपीठ ने वैसे चिकित्सकों की सूची पेश करने का निर्देश दिया. खंडपीठ ने कहा कि 1100 करोड़ रुपये की लागत से आधारभूत संरचना का निर्माण होना है. इसके लिए टेंडर हुआ, तो उसका कैबिनेट से अप्रूवल क्यों नहीं लिया गया. रिम्स में गवर्निंग बॉडी (जीबी) की बैठक नियमित रूप से क्यों नहीं होती है, ताकि कमियों पर विचार कर उसे दूर किया जा सके. नाराज खंडपीठ ने स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव, भवन निर्माण निगम के प्रबंध निदेशक व रिम्स निदेशक को सशरीर हाजिर होने का निर्देश दिया. साथ ही मामले की अगली सुनवाई के लिए खंडपीठ ने 28 जून की तिथि निर्धारित की.

रिम्स के निदेशक हुए उपस्थित

मामले की सुनवाई के दाैरान रिम्स के निदेशक डॉ राजकुमार सशरीर उपस्थित हुए. इससे पूर्व रिम्स की ओर से शपथ पत्र दायर किया गया. रिम्स के अधिवक्ता डॉ अशोक कुमार सिंह ने खंडपीठ को बताया कि वर्तमान निदेशक ने रिम्स को बेहतर बनाने के लिए कई पहल की है, लेकिन अधिकारियों की दखलंदाजी के कारण रिम्स की स्थिति बेहतर नहीं हो पा रही है. रिम्स में लगभग 2600 बेड हैं. दूरदराज व पड़ोसी राज्यों से प्रतिदिन रिम्स में 2500 मरीज पहुंचते हैं. मरीजों को देखते हुए यहां बेड की संख्या बढ़ाने की जरूरत है. गर्वनिंग बॉडी की बैठक वर्ष में एक-दो बार ही होती है. रिम्स को लेकर बड़े फैसले बहुत ही कम हो पाते हैं. रिम्स निदेशक ने बताया कि एक करोड़ से अधिक की राशि खर्च करने के लिए रिम्स की गवर्निंग बॉडी की अनुमति की जरूरत होती है, लेकिन इसकी बैठक कम होने से बहुत सारे निर्णय नहीं हो पाते हैं. खराब पड़े मेडिकल उपकरण को बदलने के लिए टेंडर की प्रक्रिया लंबी हो जाती है. समय पर उसकी मरम्मत नहीं हो पाती है.वहीं प्रार्थी की ओर से अधिवक्ता दीपक कुमार दुबे ने खंडपीठ को बताया कि रिम्स में मेडिकल उपकरणों की भारी कमी है. नये उपकरण नहीं खरीदे जा रहे हैं. उपकरण खवाब पड़े हैं, उसकी मरम्मत नहीं की जा रही है. सैकड़ों पद खाली हैं, नियुक्ति नहीं हो रही है..उल्लेखनीय है कि प्रार्थी ज्योति शर्मा ने जनहित याचिका दायर कर रिम्स की व्यवस्था में बेहतर बनाने की मांग की है.

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Sameer Oraon
Sameer Oraon
A digital media journalist having 3 year experience in desk

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