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झारखंड का सबसे बड़ा अस्पताल खुद बीमार, 40 गंभीर मरीजों का फर्श पर चल रहा इलाज, देखें PHOTOS

राजधानी रांची के रिम्स की स्थिति इन दिनों बहुत ही दयनीय है. इस अस्पताल में असुविधाओं का फुल पैकेज है. यहां मरीजों को अपनी इलाज कराने के लिए काफी जद्दोजहद करनी पड़ती है. बेड नहीं मिलने के कारण करीब 40 गंभीर मरीजों का इलाज फर्श पर चल रहा है. यहां कई वार्ड का फर्श टूटा-फूटा है.

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रांची, राजीव पांडेय : राजेंद्र इंस्टीट्यूृट ऑफ मेडिकल साइंस यानी रिम्स, झारखंड का सबसे बड़ा अस्पताल है लेकिन यह खुद बीमार है. अव्यवस्था का आलम है. कहीं अत्याधुनिक कार्डियेक एंबुलेंस धूल फांक रही हैं, तो कहीं कबाड़ का ढेर पड़ा है. रिम्स में प्रवेश करेंगे, तो जगह-जगह टूटे-फूटे फर्श दिखेंगे. इस कारण मरीजों को एक जगह से दूसरी जगह ले जाना किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है. वार्ड के फर्श पर टाइल्स लगे हैं, लेकिन टूट चुके हैं. यानी पैसे की बर्बादी. यह हाल तब है जब रिम्स को हर वर्ष सरकार करीब 450 करोड़ रुपये का फंड देती है. बावजूद इसके रिम्स अव्यवस्था का मार झेल रहा है. वहीं, न्यूरो विभाग में बेड नहीं मिलने के कारण करीब 40 गंभीर मरीजों का इलाज फर्श पर चल रहा है. स्थिति यह है कि एक स्टैंड पर पांच-छह मरीजों का स्लाइन लटका हुआ है. जुगाड़ सिस्टम से तार या रस्सी बांध कर स्लाइन को लटकाया गया है.

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रिम्स के न्यूरो आइसीयू के मुख्य द्वारा पर तार का गुच्छा लटका हुआ है. बेतरतीब तरीके से लटके हुए तार से यह पता ही नहीं चलता कि यह रिम्स का आइसीयू है. इसी लटके हुए तार के नीचे फर्श पर गंभीर मरीजों का इलाज चल रहा है. आने-जाने में डॉक्टरों और पारा मेडिकल स्टाफ को परेशानी हो रही है. ओपीडी और सेंट्रल इमरजेंसी से मरीज को वार्ड में शिफ्ट करना भी किसी खतरे से कम नहीं है. खतरा यह रहता है कि ट्रॉली से नीचे गिरकर कहीं मरीज की हड्डी-पसली न टूट जाये. तीमारदार और वार्ड ब्वाॅय किसी तरह ट्रॉली और व्हीलचेयर को खींचकर बेड तक लेकर जाते हैं.

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रिम्स के ओपीडी में प्रतिदिन करीब 3,000 मरीज परामर्श के लिए आते हैं. वहीं, सेंट्रल इमरजेंसी में 200 गंभीर मरीजों का इलाज होता है. इन दोनों जगहों से करीब 15 फीसदी मरीजों को विभिन्न वार्डों में भर्ती किया जाता है. यही से शुरू हो जाती है मुश्किलों की कहानी. वार्ड में शिफ्ट करने की प्रक्रिया शुरू होते ही मरीजों और तीमारदारों की परेशानी बढ़ जाती है. भर्ती पर्ची बनानी हो या मरीज के लिए ट्रॉली की व्यवस्था, काफी मुश्किल भरा काम है. परिजन चक्कर लगाते-लगाते परेशान हो जाते हैं. वहीं, अस्पताल के फर्श का हाल ही अलग है. फर्श की ऐसी स्थिति की मरीज बेड तक पहुंचते-पहुंचते अपनी बीमारी भूल, टूटे फर्श से मिले आंतरिक दर्द से कराहने लगते हैं. इधर, बिल्डिंग की भी हालत खराब है. समय पर मरम्मत नहीं होने से बिल्डिंग के कई हिस्से धीरे-धीरे टूट रहे हैं. जबकि रिम्स प्रबंधन पीडब्लूडी और पीएचइडी को हर वर्ष 40-50 लाख रुपये मेंटेनेंस के लिए देता है.

पांच वर्षों में रिम्स को मिले फंड

  • वर्ष फंड

  • 2019 500 करोड़

  • 2020 400 करोड़

  • 2021 300 करोड़

  • 2022 300 करोड़

  • 2023 450 करोड़

नोट: हाल ही में स्वास्थ्य विभाग ने रिम्स को अतिरिक्त

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रिम्स को राष्ट्रीय खेल से दो कार्डियेक एंबुलेंस दी गयी है. वहीं, एक कार्डियेक एंबुलेंस एनएचआइ से मिली है. खास बात है कि तीनों एंबुलेंस अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस हैं. आज तीनों एंबुलेंस कबाड़ बन गयी हैं. इसपर धूल की मोटी परत जम गयी है. रिम्स निदेशक डॉ राजीव कुमार गुप्ता ने कहा कि फर्श टूटने और बाथरूम की जर्जर की स्थिति की जानकारी के बाद रिम्स इंजीनियरिंग सेल को खर्च का आकलन कर प्रस्ताव तैयार करने को कहा गया है. हर स्तर पर व्यवस्था सुधारने का प्रयास किया जा रहा है. उम्मीद है कि स्थिति शीघ्र बेहतर होगी.

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रिम्स की पुरानी बिल्डिंग की मरम्मत पर किसी का ध्यान नहीं है. यही कारण है कि भवन का कई हिस्सा टूट-टूट कर गिर रहा है. मेडिसिन, सर्जरी और हड्डी विभाग का छज्जा टूट कर नीचे गिरा हुआ है. महीनों से बिल्डिंग मटेरियल पड़े हुए हैं, बावजूद इसके मरम्मति नहीं हो रही. न ही बिखरे पड़े बिल्डिंग मटेरियल को हटाया जा रहा है. रिम्स की पुरानी बिल्डिंग के अलावा सुपर स्पेशियलिटी बिल्डिंग में लगी लिफ्ट बंद पड़ी हुई है. यहां की अधिकतर लिफ्ट खराब हैं. पुरानी बिल्डिंग के मेडिसिन आइसीयू और इसके बाद लगी लिफ्ट खराब है. इन्हें लोहे की चादर से ढक दिया गया है. वहीं, दो लिफ्ट के ग्रिल में जंग लग गयी है. सुपर स्पेशियलिटी बिल्डिंग की छह में चार लिफ्ट काम नहीं कर रही हैं. पेइंग वार्ड की दो लिफ्ट भी खराब हैं.

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Nutan kumari
Nutan kumari
Digital and Broadcast Journalist. Having more than 4 years of experience in the field of media industry. Specialist in Hindi Content Writing & Editing.

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