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नेपाल में धूम-धाम से मनाया जाएगा करम पर्व, बांग्लादेश में नहीं दिख रहा उल्लास

Karam Parab 2024: डॉ हरि उरांव ने भी कहा कि बांग्लादेश में जो हालात हैं, उससे लगता नहीं है कि वे लोग करम पर्व मना सकेंगे. बांग्लादेश के दिनागपुर के मुलीन सरदार आदिवासी समुदाय से हैं.

Karam Parab 2024, रांची : करम पर्व (Karam Parab) आदिवासी-मूलवासी दोनों ही समुदायों के लोग मनाते हैं. झारखंड, छत्तीसगढ़, बंगाल, ओडिशा, असम में इसकी समृद्ध परंपरा रही है. दिल्ली, कोलकाता, बेंगलुरु जैसे महानगरों में भी आदिवासी समुदाय ने करम महोत्सव मनाने की पहल की है. साथ ही नेपाल और बांग्लादेश में बसे आदिवासी समुदाय के लोग भी धूमधाम से करम व सरहुल पूजा का आयोजन करते हैं. नेपाल में इस बार भी करम पर्व मनाया जायेगा. वहीं बांग्लादेश में पिछले दिनों हुई हिंसा के बाद से आदिवासी समुदाय सहमा हुआ है. इस बार वहां उल्लास नहीं दिख रहा है.

बांग्लादेश में उथल पुथल का दौर, इसका असर पर्व-त्योहारों पर भी दिख रहा

बांग्लादेश में भी बड़ी संख्या में आदिवासी समुदाय के लोग रहते हैं. धर्मगुरु बंधन तिग्गा कहते हैं : बांग्लादेश में कुड़ुख भाषियों की संख्या करीब दो लाख है. अन्य समुदायों के लोग भी हैं. बांग्लादेश में रहनेवाले आदिवासी समुदाय के लोग करम और सरहुल पर्व मनाते रहे हैं. लेकिन इस बार हिंसा और उथल-पुथल के दौर में शायद ही करम पर्व (Karam Parab) मनेगा. लोग सहमे हुए हैं.

बांग्लादेश के हालात की वजह से लोग नहीं मना सकेंगे करम पर्व

बंधन तिग्गा ने कहा कि पिछले कुछ समय से बांग्लादेश में रहनेवाले आदिवासी समुदाय के लोगों के साथ फोन पर भी संपर्क नहीं हो पा रहा है. डॉ हरि उरांव ने भी कहा कि बांग्लादेश में जो हालात हैं, उससे लगता नहीं है कि वे लोग करम पर्व मना सकेंगे. बांग्लादेश के दिनागपुर के मुलीन सरदार आदिवासी समुदाय से हैं. वे ढाका में नौकरी करते हैं. मुलीन से मिली जानकारी के अनुसार बांग्लादेश में नयी सरकार के आने के बाद से परिस्थितियां बदल गयी हैं. पहले सरहुल और करमा पर्व धूमधाम से मनाया जाता था, लेकिन इस बार खुलकर पर्व मनाने की छूट नहीं है. लोग डरे हुए हैं. फिर भी करम है तो मनायेंगे ही. भले ही कोई सार्वजनिक उत्सव नहीं हो.

नेपाल में 18 सितंबर को मनेगा करम पर्व, झारखंड के प्रतिनिधि शामिल होंगे

जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग के सेवानिवृत विभागाध्यक्ष डॉ हरि उरांव ने कहा कि नेपाल में झारखंड के संताल, मुंडा और कुड़ुख समुदायों के लोग बसे हैं. सिर्फ कुड़ुख भाषी की आबादी ही करीब तीन लाख है. हाल ही में कुड़ुख को राजभाषा का दर्जा मिला है. नया नेपाल नामक अखबार में हर 15 दिन में कुड़ुख भाषा पर कॉलम प्रकाशित होता है. नेपाल के सुनसरी जिला और विराटनगर में आदिवासी समुदाय के लोग बसे हुए हैं. वे अपनी भाषा और संस्कृति से अच्छी तरह से जुड़े हुए हैं. हर साल नेपाल में बसे लोग झारखंड आकर यहां के महोत्सव में शामिल होते हैं. इसी तरह झारखंड से भी आदिवासी समुदायों के लोग नेपाल के सरहुल और करम पूजा समारोह में शामिल होते हैं.

नेपाल में भी करम पूजन पद्धति एक जैसी

इस बार नेपाल में 18 सितंबर को करम पर्व मनाया जायेगा. इसमें भाग लेने के लिए डॉ हरि उरांव, जगदीश उरांव, बंदे, लखन उरांव, सरिता कुमारी, प्रियंका उरांव, पुष्पा तिग्गा सहित अन्य 16 सितंबर को नेपाल रवाना होंगे. डॉ हरि उरांव ने कहा कि नेपाल में पहले भी उत्सवों में शामिल हुआ हूं. पूजन पद्धति एक जैसी ही है. नेपाल में भी करम वृक्ष मिल जाता है, जिसकी डालियों का उपयोग पूजा में होता है. करम गीत और नृत्य होते हैं. नेपाल में आदिवासी समुदाय ने अपनी भाषा व संस्कृति को बहुत अच्छी तरह से सहेजा है.

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Prabhat Khabar Digital Desk
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