रांची (मनोज सिंह). लोहरदगा शहर से करीब 25 किलोमीटर दूरी पर स्थित है बढ़चोराई गांव. यह किस्को प्रखंड की हिसरी पंचायत में पड़ता है. बगड़ु पहाड़ के नीचे स्थित इस गांव के लोग जंगल बचाने और बढ़ाने से प्रयास में जुटे हैं. इस गांव में करीब 200 घर हैं. दो टोला है. यहां सीड बॉल से जंगलों में पौधा उगाने का प्रयास हो रहा है. यह प्रयास अब रंग लाने लगा है.
बीते साल गिराये गये सीड बॉल से इस वर्ष सैकड़ों पौधे तैयार हो गये हैं. इन पौधों को बचाने के लिए ग्रामीणों ने नियम तय किया है कि जिनके घर का जानवर पौधा बर्बाद करेगा, उन्हें जुर्माना भरना होगा. हाल ही में एक परिवार की बकरी पौधा चर गयी थी. गांव वालों ने सर्वसम्मति से उस पर पांच हजार रुपये का फाइन लगाया. इस वर्ष भी सीड बॉल गिराया जा रहा है. लोगों को पौधारोपण के लिए जागरूक भी किया जा रहा है. 2021 से गांव के लोग जंगलों पर अपना अधिकार भी मांग रहे हैं. इनको सामुदायिक वन पट्टा (सीएफआर) मिलने की प्रक्रिया अंतिम चरण में है. गांव के प्रधान बिगन खेरवार बताते हैं कि करीब 769 एकड़ जंगल पर सामुदायिक वन पट्टा का दावा किया गया है. गांव वालों को उम्मीद है कि जनजातीय दिवस के दिन गांव वालों को पट्टा मिल जायेगा. गांव वालों को जंगल बचाने का लीगल अधिकार मिल जायेगा. इससे चीजें और बदलेगी. जंगल बचाने का अभियान और जोर पकड़ेगा.एक साल पहले हुई थी सीड बॉल की शुरुआत
लोहरदगा जिले में एक साल पहले सीड बॉल से जंगलों को हरा-भरा करने की शुरुआत हुई थी. बीते साल संस्था प्रदान की टीम के साथ समाजसेवी सह फिल्मकार मेघनाथ की मौजूदगी में इसकी शुरुआत हुई थी. गांव वालों का कहना है कि सीड बॉल लगाने की शुरुआत पारंपरिक पूजा-पाठ और नाच-गान के साथ होती है. मेघनाथ कहते हैं कि बीते साल सैकड़ों ग्रामीणों के साथ इसकी शुरुआत हुई थी. कई पौधे दो-तीन फीट तक के हो गये हैं. इसको बचाने का गांव वालों का प्रयास सराहनीय है. इसका एक अध्ययन भी होना चाहिए. अगर 50-60 फीसदी पौधा भी बच जाता है, तो यह वन विभाग के लिए एक उदाहरण हो सकता है.क्या होता है सीड बॉल
ग्रामीण गर्मी के दिनों में जंगलों में उपलब्ध पेड़ों से गिरने वाले बीज जमा करते हैं. बीज वनोपज के होते हैं. इसमें ज्यादातर करंज, गम्हार, जामून, आम आदि के होते हैं. इसमें मिट्टी और नीम के पाउडर का लेप बनाकर एक गोला के रूप में तैयार किया जाता है. यह काम गर्मी के दिनों में किया जाता है. बरसात के मौसम में थोड़ा गड्ढा बनाकर इसे डाल दिया जाता है. यह बरसात के बाद पौधा के रूप में तैयार हो जाता है. नीम के साथ कोटिंग होने के कारण इसकी गुणवत्ता बरकरार रहती है.
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