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जेपीएससी के तत्कालीन सदस्य और को-ऑर्डिनेटर प्रोफेसर के कहने पर बढ़ाये गये थे 12 लोगों के नंबर

जांच में यह भी पाया गया कि 28 सफल उम्मीदवारों को इंटरव्यू में मिले वास्तविक नंबरों को बढ़ाया गया है. फॉरेंसिक लैब ने इसकी पुष्टि की है. इंटरव्यू के लिए निर्धारित 200 नंबरों में से इंटरव्यू पैनल में शामिल विशेषज्ञों द्वारा दिये गये नंबरों के औसत को इंटरव्यू में मिले मार्क्स के रूप में जोड़ा गया है.

झारखंड लोक सेवा आयोग (जेपीएससी) की प्रथम और द्वितीय सिविल सेवा परीक्षा में तत्कालीन सदस्य राधा गोविंद नागेश और को-ऑर्डिनेटर प्रोफेसर परमानंद सिंह के कहने पर 12 परीक्षार्थियों के नंबर बढ़ाये गये थे. जेपीएससी प्रथम और जेपीएससी द्वितीय में कॉपी का मूल्यांकन करनेवाले आठ प्रोफेसरों ने यह बात स्वीकार की है. सीबीआइ ने झारखंड हाइकोर्ट में दायर शपथ पत्र में इन तथ्यों का उल्लेख किया है. न्यायालय ने मामले की अगली सुनवाई के लिए नौ नवंबर 2023 की तिथि निर्धारित की है. साथ ही सीबीआइ को निर्देश दिया है कि वह स्पष्ट रूप से यह बताये कि उसने किससे अभियोजन स्वीकृति मांगी है? ‘बुद्धदेव उरांव बनाम राज्य सरकार व अन्य’ के मामले में झारखंड हाइकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश संजय कुमार मिश्रा और न्यायाधीश आनंद सेन की पीठ में सीबीआइ ने शपथ पत्र दायर कर जांच की स्थिति की जानकारी दी है. सीबीआइ की ओर से दायर शपथ पत्र में कहा गया है कि अभी जांच लंबित है. अब तक हुई जांच के दौरान 69 सफल उम्मीदवारों की कापियों में काट-छांट कर नंबर बढ़ाये जाने की पुष्टि हुई है. गुजरात स्थित फॉरेंसिक लैब ने यह पुष्टि की है. जांच में यह भी पाया गया कि 28 सफल उम्मीदवारों को इंटरव्यू में मिले वास्तविक नंबरों को बढ़ाया गया है. फॉरेंसिक लैब ने इसकी भी पुष्टि कर दी है. इंटरव्यू के लिए निर्धारित 200 नंबरों में से इंटरव्यू पैनल में शामिल विशेषज्ञों द्वारा दिये गये नंबरों के औसत को इंटरव्यू में मिले मार्क्स के रूप में जोड़ा गया है.

इस तरह जांच की दहलीज तक पहुंचा मामला

प्रथम व द्वितीय सिविल सेवा परीक्षा में काफी विवाद हुआ था. उस वक्त डॉ दिलीप कुमार प्रसाद आयोग के अध्यक्ष थे. इस नियुक्ति परीक्षा में आयोग के पदाधिकारियों, राजनेताओं व शिक्षा माफिया के रिश्तेदारों की नियुक्ति के आरोप लगे. जम कर पैसे के लेन-देन व नंबर बढ़ाने तक के आरोप लगे. मामले ने जब तूल पकड़ा, तो इसकी फॉरेंसिक जांच करायी गयी. जब हंगामा थमने का नाम नहीं ले रहा था, तो राष्ट्रपति शासन के दौरान वर्ष 2009 में तत्कालीन राज्यपाल सैयद सिब्ते रजी ने पूरे मामले की जांच का जिम्मा निगरानी को सौंप दिया. इस प्रकरण में अध्यक्ष सहित दो सदस्य, सचिव जेल भी गये. बाद में मामला हाइकोर्ट पहुंचा. हाइकोर्ट ने नियुक्ति रद्द कर दी. इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया. इस बीच नियुक्ति में गड़बड़ी की शिकायत पर जांच की जिम्मेदारी सीबीआइ को दे दी गयी. सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए हाइकोर्ट के उस आदेश पर स्टे लगा दिया, जिसमें परीक्षा रद्द करने की बात कही गयी थी. साथ ही मामले की सुनवाई होने तक इसमें नियुक्त लोगों को कार्य करते रहने की अनुमति प्रदान की गयी.

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सीबीआइ ने आठ परीक्षकों से की पूछताछ

सीबीआइ की ओर से दायर शपथ पत्र में कहा गया है कि जांच के दौरान आठ परीक्षकों से पूछताछ की गयी और सीआरपीसी की धारा-164 के तहत बयान दर्ज किया गया है. इन परीक्षकों ने स्वीकार किया है कि आयोग के तत्कालीन सदस्य राधा गोविंद नागेश और को-ऑर्डिनेटर प्रो परमानंद सिंह के कहने पर ही परीक्षार्थियों के नंबर बढ़ाये गये थे. परीक्षकों ने 12 उम्मीदवारों के नंबर बढ़ाये जाने की बात स्वीकार की है.

जेपीएससी की कुल 16 परीक्षाओं की जांच कर रही है सीबीआइ

जेपीएससी द्वारा प्रथम व द्वितीय सिविल सेवा परीक्षा सहित कुल 16 नियुक्ति परीक्षाओं की जांच सीबीआइ कर रही है. इनमें मार्केटिंग सुपरवाइजर, चिकित्सक, इंजीनियर नियुक्ति, फार्मासिस्ट, व्याख्याता नियुक्ति, सहकारिता पदाधिकारी, विवि में डिप्टी रजिस्ट्रार की नियुक्ति आदि शामिल हैं. प्रथम सिविल सेवा परीक्षा 64 पदों के लिए वर्ष 2003 में ली गयी थी. जबकि, द्वितीय सिविल सेवा परीक्षा 172 पदों के लिए वर्ष 2006 में ली गयी थी.

Prabhat Khabar News Desk
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