22.6 C
Ranchi

लेटेस्ट वीडियो

मिलिए, झारखंड फिल्म एंड थियेटर एकेडमी के संस्थापक राजीव सिन्हा से, ऐसे लगी रंगमंच की लत

Jharkhand Foundation Day: वर्ष 2016 के अंत में नौकरी छोड़कर रांची आ गये. अपने घर. दिल्ली प्रवास के दौरान उन्होंने ‘टोली थियेटर ग्रुप’ की स्थापना की. रांची लौटे, तो ‘झारखंड फिल्म एंड थियेटर एकेडमी’ की स्थापना की. इसके बस दो मकसद हैं.

Jharkhand Foundation Day: झारखंड फिल्म एंड थियेटर एकेडमी के क्रिएटिव डायरेक्टर राजीव सिन्हा रांची के जाने-माने थियेटर एक्टिविस्ट हैं. वह कहते हैं, ‘मेरे लिए रंगमंच एक जुनून है. रगों में बहता खून है. मेरे लिए एकमात्र यही सुकून है.’ राजीव सिन्हा महज 6 साल की उम्र में रंगमंच का हिस्सा बन गये थे. ‘जहांगीर का न्याय’ नाटक में जहांगीर का किरदार निभाया था. इस नाटक का निर्देशन उनके बड़े भाई ने किया था. राजीव कहते हैं कि भैया ने तो नाट्यधर्म त्याग दिया, लेकिन मुझे रंगमंच की लत लग गयी. तब से लेकर आज तक शायद ही कोई ऐसा दिन बीता, जब मैं किसी थियेटर एक्टिविटी में शामिल नहीं हुआ.

15 साल मीडिया में काम करने के बाद रंगकर्म की दुनिया में लौटे

राजीव बताते हैं कि 15 साल तक दिल्ली में रहकर मीडिया जगत में काम किया. एनडीटीवी में बतौर सीनियर एंटरटेनमेंट प्रोड्यूसर 12 साल नौकरी की. वर्ष 2016 के अंत में नौकरी छोड़कर रांची आ गये. अपने घर. दिल्ली प्रवास के दौरान उन्होंने टोली थियेटर ग्रुप’ की स्थापना की. रांची लौटे, तो ‘झारखंड फिल्म एंड थियेटर एकेडमी’ की स्थापना की. इसके बस दो मकसद हैं. पहला फिल्म और नाटकों के माध्यम से समाज में जागरूकता फैलाना और दूसरा नयी पीढ़ी को अभिनय के क्षेत्र में करियर बनाने के लिए मार्गदर्शन करना.

Also Read: झारखंड स्थापना दिवस: रंगशाला बिना कैसे विकसित होगी सांस्कृतिक गतिविधियां, बोले रांची के रंगकर्मी संजय लाल
नोएडा में ली वीडियो एडिटिंग एंड साउंड रिकॉर्डिंग की ट्रेनिंग

दिल्ली प्रवास के दौरान उन्होंने नोएडा स्थित एशियन अकादमी ऑफ फिल्म एंड टेलीविजन से वीडियो एडिटिंग एंड साउंड रिकॉर्डिंग की ट्रेनिंग ली. इसकी बदौलत उन्होंने 50 से भी ज्यादा शॉर्ट फिक्शन के लिए लेखन व निर्देशन किया. इसमें ‘प्रेम जाल’, ‘महासंग्राम’, ‘हेलमेट’, ‘नमक’, ‘द लास्ट होप’, ‘तेरा गम मेरा गम एक जैसा सनम’, ‘जागृति हैट्स मिरर’ शामिल हैं.

100 से ज्याद लघु व पूर्णकालिक नाटक लिख चुके हैं राजीव

राजीव सिन्हा ने 100 से भी ज्यादा लघु व पूर्णकालिक नाटकों का लेखन व निर्देशन करक चुके हैं. इसमें ‘भुक्खड़’, ‘मैं राम बनना चाहता हूं’, ‘जनता दरबार’, ‘कबाड़’, ‘फिर लौट आयी जिंदगी’, ‘हौसला’, ‘खामोशी कब तक’ शामिल हैं. हाल ही में उन्होंने अपनी पहली होम प्रोडक्शन की बाल हिंदी फीचर फिल्म ‘गिलुआ’ की शूटिंग मात्र पांच दिनों में पूरी की, जिसकी एडिटिंग भी पूरी हो चुकी है. इसमें JFTA से 35 स्टूडेंट्स ने न केवल एक्टिंग की है, बल्कि प्रोडक्शन की जिम्मेदारी भी खुद ही संभाली है.

…क्यों न मुंबई को अपने पास लाया जाये

राजीव सिन्हा कहते हैं, ‘मैंने जब नौकरी छोड़ी, तो अपने होम टाउन रांची आने की बजाय मुंबई की तरफ भी कदम बढ़ा सकता था. लेकिन, रांची आना पसंद किया. पत्नी ज्योति सिन्हा ने मुझसे कहा कि मुंबई जाने की बजाय क्यों न मुंबई को अपने पास लाया जाये. इसके अलावा शायद झारखंड को मेरी जरूरत थी. यहां अभिनय में अपना करियर बनाने का सपना देख रहे नौजवानों को सही मार्गदर्शन की जरूरत थी. झारखंड का नाम सिनेमा जगत में उठाने की जरूरत थी, जिसके लिए मैं ईमानदारी से अपना योगदान दे रहा हूं.’

हर रविवार होता है नाटक का मंचन

राजीव ने बताया कि हमने अपने एकेडमी प्रांगण में ही एक स्टूडियो ऑडिटोरियम का निर्माण कर दिया, ताकि हमारे स्टूडेंट्स थियेटर परफॉर्मेंस के लिए मंच के मोहताज न रहें. अब हर रविवार की शाम अपने इनहाउस थिएटर में एक नये नाटक का मंचन होता है. इसके अलावा स्ट्रीट थियेटर प्रैक्टिस के लिए प्रत्येक रविवार की सुबह मोरहाबादी स्थित ऑक्सीजन पार्क के मंच पर एक नुक्कड़ नाटक का मंचन होता है.

झारखंड की फिल्मों को करना होगा अपग्रेड

झारखंड में फिल्म को अपग्रेड करने की जरूरत है. कहानी लिखने से लेकर फिल्म की शूटिंग और उसके प्रस्तुतिकरण को अपग्रेड करना होगा. हमें पुराने ढर्रे को छोड़कर नयी चीजों को अपनाना होगा. राज्य सरकार को स्थानीय सिनेमा के उत्थान के लिए चुनिंदा फिल्मकारों की फ्रेश लिस्ट तैयार करनी चाहिए. इसमें उनकी शिक्षा और अनुभव का आकलन करना चाहिए. युवा फिल्मकारों को मौका देना चाहिए. फिर उन चुनिंदा फिल्मकारों को झारखंड सिनेमा के उत्थान की जिम्मेदारी देनी चाहिए, जिसमें प्रशिक्षण से लेकर फिल्म मेकिंग तक की ट्रेनिंग शामिल हो. झारखंड के मल्टीप्लेक्स को निर्देश देना चाहिए कि वे लोकल फिल्मों का भी प्रदर्शन करें.

रंगमंच करने के बाद बढ़ायें मुंबई की ओर कदम

आज जब पैशन को प्रोफेशन में बदलते हुए जीवन गुजर रहा है, तो लगता है कि इससे बड़ा सुकून कहां. नयी पीढ़ी के रंगकर्मियों के लिए बस एक ही संदेश है, ‘रंगमंच कभी भी पैसा कमाने के लिए नहीं किया जाता. यह एक ऐसा जुनून है, जो अभिनय की बारीकियों को समझाता है. इसीलिए अगर आप अभिनय में अपना करियर बनाना चाहते हैं, तो कम से काम तीन से चार साल तक बड़ी ही तल्लीनता से रंगमंच करें. उसके बाद आप मुंबई की तरफ कदम बढ़ा सकते हैं. इसमें जल्दबाजी करना अपने भविष्य से खिलवाड़ होगा.

Mithilesh Jha
Mithilesh Jha
प्रभात खबर में दो दशक से अधिक का करियर. कलकत्ता विश्वविद्यालय से कॉमर्स ग्रेजुएट. झारखंड और बंगाल में प्रिंट और डिजिटल में काम करने का अनुभव. राजनीतिक, सामाजिक, राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय विषयों के अलावा क्लाइमेट चेंज, नवीकरणीय ऊर्जा (RE) और ग्रामीण पत्रकारिता में विशेष रुचि. प्रभात खबर के सेंट्रल डेस्क और रूरल डेस्क के बाद प्रभात खबर डिजिटल में नेशनल, इंटरनेशनल डेस्क पर काम. वर्तमान में झारखंड हेड के पद पर कार्यरत.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

संबंधित ख़बरें

Trending News

जरूर पढ़ें

वायरल खबरें

ऐप पर पढें
होम आप का शहर
News Snap News Reel