वनोपजों का बढ़ता बाजार, व्यापारी गांवों से खरीद कर शहरों में ला रहे हैं रुगड़ा, खुखड़ी और साग
शहर के बाजारों में रुगड़ा 700 से 800 रुपये किलो, खुखड़ी 1000 से 1200 रुपये किलो
रांची(क्रांति दीप). झारखंड में मॉनसून के दस्तक देते ही जंगल में हरियाली झूम उठती है. इसी बीच जंगल से पोषण और स्वाद की नयी सौगात मिलने लगती है. झारखंड के जंगलों से सालों भर विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थ निकलते हैं. वहीं, बारिश के दिनों में कुछ खास वनोपज निकलते हैं, जो खाने में तो स्वादिष्ट होेते ही हैं, सेहत के लिए भी लाभदायक होते हैं. झारखंड के घने जंगलों में मॉनसून के दस्तक देते ही खुखड़ी, रुगड़ा जैसे मशरूम के विभिन्न प्रकार निकलने शुरू हो गये हैं. इसके साथ ही कई प्रकार के साग, कंद आदि भी जंगलों से निकलते हैं. वन क्षेत्र में रहने वाले ग्रामीण इन वनोपजों को जमा कर न केवल अपने भोजन का प्रबंध करते हैं, बल्कि अब ये उत्पाद शहरों की मंडियों और बाजारों तक भी पहुंचा रहे हैं. मॉनसून के दिनों में ऐसे पारंपरिक खाद्य पदार्थ ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी मजबूत कर रहे हैं.पोषण से भरपूर हैं झारखंड के जंगली मशरूम
पीसीसीएफ सह सदस्य सचिव झारखंड जैव विविधता पार्षद संजीव कुमार ने बताया कि मशरूम की पहचान उनके रंग, गंध, स्वाद और संरचना के आधार पर की जाती है. कुछ प्रजातियां खाने योग्य हैं. इसलिए इन्हें सावधानी से पहचाना जाना चाहिए. ये सभी कवक प्रजातियां जंगलों, आर्द्र स्थानों, शीतल और उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पायी जाती हैं. मशरूम की कुछ प्रजातियों का आयुर्विज्ञान और होम्योपैथी में प्रयोग किया गया है. मशरूम में उपस्थित क्षारीय राख पाचन शक्ति को प्राकृतिक रूप से बढ़ाता है, जिससे भूख लगना शुरू हो जाती है. कब्ज भी ठीक हो जाते हैं. ब्लड प्रेशर वाले रोगियों के लिए कब्ज या अजीर्ण रोग, मोटापा, हृदय रोग, कैंसर रोगियों व कुपोषण रोगियों के लिए मशरूम का सेवन इनके लिए अति लाभप्रद है. मशरूम में प्रचुर मात्रा में प्रोटीन, विटामिन व खनिज उपलब्ध है.बाजार की पहुंच बढ़ाने की जरूरत
‘द ओपन फील्ड’ संस्था के संस्थापक कुमार अभिषेक उरांव कहते हैं कि झारखंड के वन क्षेत्रों में उपजने वाली वन संपदाओं की भरपूर संभावनाएं हैं, लेकिन इन्हें अभी तक व्यवस्थित और स्थायी बाजार नहीं मिल पाया है. यदि इन उत्पादों को सही मूल्य, प्रशिक्षण और प्रोसेसिंग की सुविधा मिले तो यह ग्रामीणों की आय में बड़ा बदलाव ला सकते हैं.
साग-कंद से भी भरपूर है जंगल की रसोई
बरसात के मौसम में केवल मशरूम ही नहीं, बल्कि जंगलों से निकलने वाले पारंपरिक साग और कंद भी लोगों के भोजन और पोषण का अहम हिस्सा बनते हैं. इनमें करमी साग, कोयनार, पाइ साग, ठेपा साग, भटकोंदा, सुरन, खनिया कंदा, पिठृूर कंदा, कचनार की कलियां, चार (चिरौंजी) और बांस की कोपलें (करील, सधना, हड़ुआ) प्रमुख हैं.
ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मिल रहा सहारा
झारखंड के जंगल अब सिर्फ पारंपरिक जीवनशैली का हिस्सा नहीं, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को गति देने वाले स्तंभ भी बनते जा रहे हैं. मॉनसून में निकलने वाली यह वन संपदा, जहां एक ओर ग्रामीणों के लिए रोजगार का साधन बन रही है, वहीं दूसरी ओर शहरी लोगों को भी सेहतमंद विकल्प मुहैया करा रही है.
झारखंड में पाए जाने वाले विभिन्न प्रकार के मशरूमवैज्ञानिक नाम स्थानीय नाम
– रुसूला अलाटोरेटिकुला-सिमदली– लेक्टिरियस राजमहलेंसिस- तोवा फुटका
– लेक्टिफ्लस ट्रोपिकालिस- वालो– रुसूला स्यूडोसायानोंजेथां- कोदे
– रुसूला कनादर- पाता– अमानिटा चिंपाजियाना- सादा- अमानिटा हेमीबाफा- हेडरो
– वोल्वारिएला वोल्वासिया- पुआल छत्तु– फ्लेबोपस पोर्टेंटोसस-जामुन खुखड़ी
– एस्टेरियस एशियाटिकस- फुटका– एस्टेरियस ओडोरोटस- रुगडा
झारखंड में पाये जाने वाले प्रमुख मशरूमों में शामिल हैं :
::: रुसूला अलाटोरेटिकुला जिसे स्थानीय नाम सिमदली से जानते हैं. यह एक मशरूम है, जिसमें उच्च प्रोटीन (28.12% से 42.86%) और कार्बोहाइड्रेट (49.33% से 55%) की मात्रा होती है. इसमें कई औषधीय गुण भी हैं.
:::: एस्टेरियस एशियाटिकस (एशियाई अर्थस्टार मशरूम) जिसे स्थानीय भाषा में फुटका के नाम से भी जानते हैं. यह एक जंगली, खाने योग्य मशरूम है, जिसमें मध्यम प्रोटीन, उच्च कार्बोहाइड्रेट, उच्च कच्चा फाइबर और कम वसा होता है.:::: वोल्वारिएला वोल्वासिया (धान का भूसा मशरूम) इसे पुआल छत्तु के नाम से भी जानते हैं. यह एक पौष्टिक, खाने योग्य कवक है. यह प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और फाइबर का एक अच्छा स्रोत है. इसमें विभिन्न प्रकार के विटामिन और खनिज होते हैं.
:::: अमानिटा हेमीबाफा जिसे स्थानिय भाषा में हेडरो भी कहते हैं. यह एक खाने योग्य मशरूम है जो कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और कैल्शियम, आयरन जैसे आवश्यक खनिजों का एक अच्छा स्रोत है. इसमें विभिन्न अमीनो एसिड भी होते हैं, जिनमें एलेनिन, ग्लाइसिन, ग्लूटामिक एसिड और सेरीन शामिल हैं.:::: टर्मिटोमाइसेस यूराइजस (दीमक मशरूम): यह मशरूम प्रोटीन, फाइबर और खनिजों का एक अच्छा स्रोत है. यह विशेष रूप से आयरन, पोटेशियम, जिंक और मैग्नीशियम से भरपूर है.
:::: फ्लेबोपस पोर्टेंटोसस जिसे जामुन खुखड़ी के नाम से जानते हैं. यह मशरूम अपने पोषक तत्वों के लिए जाना जाता है, विशेष रूप से इसका प्रोटीन अंश, जो सूखे वजन के आधार पर 19-35% तक हो सकता है. इसमें आवश्यक अमीनो एसिड, पॉलीसेकेराइड, कच्चा फाइबर और खनिज तत्व भी होते हैं. मॉनसून में मिलने वाले ये कंद और साग न केवल स्वादिष्ट होते हैं, बल्कि इनमें औषधीय गुण भी भरपूर होते हैं.:::: करमी साग (औषधीय गुण) : पाचन शक्ति बढ़ाता है, अपच और पेट दर्द में लाभकारी.
उपयोग : हर्बल दवाइयों में पाचन सुधारने के लिए उपयोग होता है.:::: कोयनार साग (औषधीय गुण) : त्वचा रोगों में उपयोगी, संक्रमण और सूजन कम करता है.
उपयोग : एंटीसेप्टिक के रूप में काम आता है.:::: पाइ साग (औषधीय गुण) : रक्त शुद्धिकरण में मददगार, मांसपेशियों को मजबूत करता है.
उपयोग : आयुर्वेदिक दवाओं में प्रोटीन और विटामिन स्रोत के रूप में उपयोग होता है.:::: ठेपा साग (औषधीय गुण) : ज्वर (बुखार) कम करने वाला, कफ और सर्दी में राहत.
उपयोग : घरेलू नुस्खों में सर्दी-खांसी के लिए उपयोग किया जाता है.:::: खपड़ा साग (औषधीय गुण) : मधुमेह नियंत्रण में सहायक, रक्त शर्करा को नियंत्रित करता है.
उपयोग : डायबिटीज में सेवन किया जाता है.:::: भटकोंदा (औषधीय गुण) : सूजन और गठिया में राहत देता है, दर्द निवारक.
उपयोग : दर्द कम करने वाली हर्बल दवाइयों में प्रयोग किया जाता है.:::: सुरन (औषधीय गुण) : पाचन में सुधार, गैस्ट्रिक समस्याओं में लाभकारी.
उपयोग : पेट की बीमारियों के लिए पारंपरिक उपयोग.:::: बांस की कोपलें (करील, सधना, हड़ुआ)
औषधीय गुण : हड्डियों को मजबूत बनाता है. प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ाता है.उपयोग : जोड़ों और हड्डियों की समस्याओं में उपयोग होता है.
:::: कचनार की कलियां (औषधीय गुण) : थायराइड और हाइपरथायराइडिज्म में लाभकारी, सूजन कम करती हैं.
उपयोग : थायराइड संबंधी बीमारियों में उपयोग होता है.
:::: चार (चिरौंजी) औषधीय गुण : हृदय स्वास्थ्य में सहायक, बालों और त्वचा के लिए बेहतर.
उपयोग : पोषण और सौंदर्य के लिए उपयोग किया जाता है.
:::: पिठृूर कंदा (औषधीय गुण) : मूत्र विकारों में उपयोगी, किडनी और ब्लैडर के लिए खास.
उपयोग : मूत्र संबंधी दवाइयों में उपयोग.
:::: खनिया कंदा (औषधीय गुण) : ज्वर और संक्रमण में राहत, प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है.
उपयोग : वायरल और बैक्टीरियल संक्रमणों में उपयोग किया जाता है.
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