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Ranchi News : धरती की हरियाली, हमारी जिम्मेदारी

मॉनसून पूरे शबाब पर है. राजधानी में हर दिन बारिश हो रही है. पौधा लगाने का मौसम अनुकूल है. वन महोत्सव भी चल रहा है. पूरे जुलाई वन विभाग अभियान चलाकर पौधा लगाता है.

आइए मॉनसून का लुत्फ उठायें, पौधा लगायें, पर्यावरण बचायें

रांची. मॉनसून पूरे शबाब पर है. राजधानी में हर दिन बारिश हो रही है. पौधा लगाने का मौसम अनुकूल है. वन महोत्सव भी चल रहा है. पूरे जुलाई वन विभाग अभियान चलाकर पौधा लगाता है. जमीन की नमी का फायदा उठाता है. लोगों से इस अभियान में शामिल होने का आह्वान करता है. कई सामाजिक संगठन भी इस अभियान में सहभागी होते हैं. इस वर्ष वन विभाग ने करीब 2.5 करोड़ पौधा लगाने का लक्ष्य रखा है. इसके लिए सभी वन प्रमंडलों को निर्देश दे दिया गया है. पौधरोपण किया जा रहा है. आधिकारिक समारोह की तैयारी भी चल रही है. वन विभाग के नर्सरियों में पौधा उपलब्ध है.

कब से मन रहा है वन महोत्सव

पूरे देश में वर्ष 1951 से वन महोत्सव मनाया जाता है. तत्कालीन कृषि मंत्री के मुंशी के आदेश के बाद शुरू हुआ. उस वक्त वन विभाग कृषि विभाग का ही हिस्सा था. वर्ष 1976 तक वन विभाग कृषि विभाग के अधीन रहा. वर्ष 1976 में वन मंत्रालय अलग हो गया था. इसके बाद पूरे राज्य में वन विभाग कृषि विभाग से अलग होकर काम करने लगा. वर्ष 1951 में कृषि विभाग द्वारा शुरू की गयी परंपरा आज तक जारी है. पूरे देश में जुलाई माह में पौधरोपण किया जाता है.

वन विभाग के नर्सरी से ले सकते हैं पौधा

वन विभाग का राजधानी के अलग-अलग रेंज में नर्सरी है. कांके, ओरमांझी, अनगड़ा, नामकुम में भी नर्सरी है. पर्यावरण प्रेमी नर्सरी से वन विभाग द्वारा निर्धारित शुल्क पर पौधा लेकर प्लांटेशन कर सकते हैं. वन विभाग ने अलग-अलग पौधे के लिए अलग-अलग कीमत निर्धारित कर रखा है.

एक पौधा, सौ पुत्र के समान

हर पौधा न केवल एक जीवन है, बल्कि सौ भविष्य का आधार भी है. जैसे एक पुत्र परिवार का सहारा बनता है, वैसे ही एक पौधा धरती का सहारा बनता है. यह छांव देता है, फल देता है, जीवनदायिनी हवा देता है. बदलते पर्यावरण और बढ़ते प्रदूषण के बीच यह संदेश और भी प्रासंगिक हो गया है पौधा लगाइए, जैसे संतान पालते हैं, वैसे ही उसे तैयार कीजिए. यही हमारे कल की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है.

जंगल बचाने के लिए बना है वन अधिकार कानून

वन अधिकार कानून, जिसे अनुसूचित जनजाति और अन्य परंपरागत वन निवासी अधिनियम, वर्ष 2006 कहा जाता है. भारत में वन भूमि पर रहने वाले अनुसूचित जनजातियों और अन्य पारंपरिक वनवासियों के अधिकारों को मान्यता देता है. यह कानून उन समुदायों को वन भूमि और संसाधनों पर अधिकार प्रदान करता है, जिनकी पीढ़ियां वर्षों से वन पर आश्रित हैं. इस कानून के तहत पात्र व्यक्ति वन पट्टा के लिए दावा करता है.

एक लाख पौधों का रोपण लक्ष्य : पद्मश्री चामी मुर्मू

पद्मश्री चामी मुर्मू ने कहा कि इस वर्ष वन महोत्सव के अवसर पर एक लाख पौधे लगाने का संकल्प लिया गया है. यह पौधे पश्चिमी सिंहभूम और सरायकेला क्षेत्र में रोपे जायेंगे. इन पौधों को विशेष रूप से तैयार कर किसानों और आमजनों को निःशुल्क वितरित किया जायेगा. उन्होंने कहा कि जहां हरियाली होती है, वहीं खुशहाली आती है. हर पौधा न केवल प्रकृति की देन है, बल्कि हमारी जड़ों की पहचान भी है. वन महोत्सव के दौरान हर किसान, हर नागरिक से आह्वान किया कि वे कम से कम पांच से 10 पौधे अवश्य लगायें. इससे न केवल हमारा परिवेश स्वच्छ रहेगा, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए हराभरा भारत का निर्माण होगा.

इस वर्ष अच्छी बारिश हो रही है. हर साल पूरे जुलाई में वन महोत्सव मनाया जाता है. इस दौरान प्रयास होता है कि खाली जगहों पर अधिक से अधिक पौधे लगाये जायें. यह क्रम शुरू हो गया है. फिलहाल थोड़ी बारिश कम होगी तो तेजी से पौधे लगाये जायेंगे.

एक नजर में झारखंड में वनों की स्थिति

कुल वन क्षेत्र : 23765.78 वर्ग किलोमीटरकुल भौगोलिक क्षेत्र का : 29.81 फीसदीबहुत घना क्षेत्र : 2635.35 वर्ग किलोमीटरमध्यम घना वन क्षेत्र : 9640.99 वर्ग किलोमीटरखुला वन क्षेत्र : 11489.44 वर्ग किलोमीटर—–

पर्यावरण योद्धा. ये हैं असली वन रक्षक

589 एकड़ में जंगल बचाकर बने ‘जंगल पुरुष’

अनगड़ा (रांची). पर्यावरण संरक्षण की दिशा में अनूठी पहल करते हुए अनगड़ा के बेंती गांव के ग्रामीणों ने ग्राम वन प्रबंधन व संरक्षण समिति का गठन कर 589 एकड़ जंगल की सफलतापूर्वक रक्षा की है. 318 परिवारों ने सहयोग और सामूहिक प्रयासों से इस अभियान को आकार दिया है. समिति के अध्यक्ष प्रो सत्यदेव मुंडा ने बताया कि बेंती के पैना पहाड़ जंगल को खेत की तरह संरक्षित किया जा रहा है. 18 लोगों की विशेष टीम जंगल की निगरानी करती है. बिना अनुमति लकड़ी काटने पर 5051 का जुर्माना लगाया जाता है. समिति के सदस्य यदि घरेलू उपयोग के लिए लकड़ी लेना चाहे तो पूर्व अनुमति अनिवार्य होती है. इस जंगल में बड़ी संख्या में जीव-जंतु और औषधीय पौधे हैं. अब तक हजारों पौधे रोपे जा चुके हैं, जिससे जंगल को हरा-भरा स्वरूप प्राप्त हुआ है. इस वर्ष जुलाई में 1000 पौधों का रोपण लक्ष्य निर्धारित किया गया है. पांच जून को ‘विश्व पर्यावरण दिवस’ के अवसर पर ‘पैना पहाड़ मेला’ का आयोजन किया जाता है. 50 हजार से अधिक लोग पर्यावरण संरक्षण का संकल्प लेते हैं. इसके लिए सत्यदेव मुंडा को राज्यपाल द्वारा उन्हें ‘जंगल पुरुष’ की उपाधि दी गयी है. वन विभाग की ओर से एक लाख का पुरस्कार दिया गया.

‘रक्षाबंधन’ पर्व पर पेड़ों की पूजा कर लेते हैं संरक्षण का संकल्प

ओरमांझी (रांची). पर्यावरण संरक्षण की दिशा में ओरमांझी के केरम के ग्रामीणों ने अनुकरणीय पहल करते हुए 400 एकड़ वन भूमि की रक्षा का बीड़ा उठाया है. ग्रामीणों ने ग्राम वन प्रबंधन व संरक्षण समिति का गठन कर न केवल जंगल को कटने से बचाया है, बल्कि उसे हरा-भरा बनाने में भी सफलता पायी है. रक्षाबंधन पर्व पर 70 एकड़ क्षेत्र में मौजूद वृक्षों की पूजा करते हैं और राखी बांध कर संरक्षण का संकल्प लेते हैं. यह आयोजन पूरे गांव के लिए उत्सव का रूप ले चुका है. वनों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए गांव में प्रत्येक माह बैठक होती है. आठ लोगों की निगरानी टीम जंगल की स्थिति का जायजा लेती है. वन विभाग द्वारा गठित समिति के अध्यक्ष टुंडाहुली पंचायत के मुखिया रमेश बेदिया हैं. जबकि सचिव पद पर क्षेत्रीय वनपाल को नामित किया गया है. आज इन वनों में मोर, बंदर, भालू, लकड़बग्घा, हिरण जैसे अनेक वन्य जीवों की सक्रिय उपस्थिति देखी जाती है, जो यह प्रमाणित करता है कि जंगलों की प्राकृतिक जीवनशैली फिर से बहाल हो रही है.

‘मेरी धरती, मेरी जिम्मेवारी’ अभियान चलाकर बने ‘बरगद बाबा’

हजारीबाग. वन संरक्षण को जन आंदोलन का रूप देने के लिए ‘बरगद बाबा’ के नाम से प्रसिद्ध मनोज कुमार वर्ष 2006 से ‘वन रक्षा बंधन अभियान’ से जुड़े हुए हैं. वे लोगों को आस्था, परंपरा और प्रकृति के साथ जोड़कर पर्यावरण बचाने की प्रेरणा दे रहे हैं. मनोज कुमार बताते हैं कि लोगों को अपने धर्म और सांस्कृतिक मान्यताओं से जोड़ते हुए लाल सालू कपड़े से पेड़ों को राखी बांधकर पूजा-अर्चना की जाती है और संरक्षण का संकल्प लिया जाता है. यह परंपरा अब एक हरियाली आंदोलन का रूप ले चुकी है. वन संरक्षण के लिए मनोज कुमार ने ‘मेरी धरती, मेरी जिम्मेवारी’ नामक अभियान शुरू किया है, जिसमें लगभग 30 सदस्यों की टीम सक्रिय रूप से कार्य कर रही है. नुक्कड़ नाटक, जनसभा, वृक्ष पूजन और सांस्कृतिक आयोजनों के माध्यम से लोगों को पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक किया जा रहा है. मनोज कुमार की विशेषता यह है कि वे संरक्षण को केवल एक वैज्ञानिक या प्रशासनिक पहल तक सीमित नहीं रखते, बल्कि उसे आस्था और संस्कारों से जोड़कर आम जनमानस तक पहुंचाते हैं. यही कारण है कि अब लोग पेड़ों को केवल लकड़ी नहीं, बल्कि ‘परिवार के सदस्य’ मानने लगे हैं.

””वन रक्षा बंधन”” बना पर्यावरण संरक्षण का जन महोत्सव

कोडरमा. पर्यावरण संरक्षण की दिशा में कोडरमा जिला स्थित लक्ष्मीपुर गांव में वर्ष 1999 से आरंभ की गयी ‘वन रक्षा बंधन’ की परंपरा आज वन महोत्सव का रूप ले चुकी है. महादेव महतो द्वारा शुरू किये गये इस अभियान ने न केवल जंगलों को बचाने का सामाजिक आंदोलन खड़ा किया है, बल्कि धार्मिक आस्था और सामुदायिक सहभागिता को भी एक नयी दिशा दी है. वन रक्षा बंधन उत्सव के तहत गांव के लोग पूर्व निर्धारित दिन पर पास के जंगल में एकत्र होते हैं. सामूहिक बैठक होती है, पूजन सामग्री एकत्र की जाती है, और फिर लाल रंग के कपड़े से पेड़ों को राखी की तरह बांधा जाता है. इस दौरान वृक्षों की पूजा-अर्चना कर उनके संरक्षण की शपथ ली जाती है. इस अभियान की विशेष बात यह है कि इसमें सांप्रदायिक सौहार्द्र की अनूठी मिसाल भी देखने को मिलती है. वन संरक्षक मनोज दांगी के अनुसार, हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों के लोग एक साथ एक ही वेदी पर बैठकर पेड़ों की पूजा करते हैं. साधना और आराधना के इस साझा मंच पर सभी लोग जीव-जंतुओं को हानि न पहुंचाने और वनों की आजीवन रक्षा करने का संकल्प लेते हैं. वन विभाग के सहयोग से यह परंपरा अब 1000 से अधिक गांवों तक फैल चुकी है.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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