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My Mati: मुंडाओं का हजारों वर्ष पुराना बारेंदा ‘ससनदिरी’ ऐतिहासिक धरोहर है

बारेंदा से करीब 10 किमी आगे चोकाहातु (शोक का स्थान) में विस्तृत समाधि स्थल है. यह भारत में सबसे बड़ा पत्थर कब्र है. इसमें लगभग सात एकड़ जमीन में हजारों पत्थर का कब्रगाह है.

डॉ मोहम्मद ज़ाकिर :

मुंडारी में ‘ससनदिरी’ (मेगलिथ-पत्थर कब्र), सदानी में हड़गड़ी, सोनाहातु के बारेंदा गांव में हाड़साली उस स्थल को कहते हैं, जहां मुंडा प्रथा के अनुसार मुंडाओं को अपने मृतकों की राख-हड्डियों को कब्रगाह में दफनाने और उपर से बड़े-बड़े पत्थर से ढ़कने की प्रथा रही है. मुंडा लोगों की एक कहावत है: ‘ससनदिरी को, होड़ो होन कोआ: पटा’ – (कब्र-शिला ही मुंडाओं का पट्टा है). शरत चंद्र रॉय की बुक “द मुंडा एंड देयर कंट्रीज” में ने चोकाहातु के साथ बारेंदा ससनदिरी का उल्लेख मिलता है.

बारेंदा से करीब 10 किमी आगे चोकाहातु (शोक का स्थान) में विस्तृत समाधि स्थल है. यह भारत में सबसे बड़ा पत्थर कब्र है. इसमें लगभग सात एकड़ जमीन में हजारों पत्थर का कब्रगाह है. चोकाहातु ससनदिरी करीब 2000 साल पुराना है. बारेंदा की ससनदिरी इसके समकालीन हैं. इस ससनदिरी का परिसर लगभग डेढ़ एकड़ है, जिसमें सैकड़ों पत्थर के कब्र हैं. चोकाहातु ससनदिरी में मिशनरी के आने के बाद पत्थरों में मृतकों के नाम, तिथि, पता लिखने का चलन शुरू हुआ. बारेंदा का ससनदिरी में पत्थरों में मृतकों के नाम, तिथि, पता नहीं लिखा जाता है. मुंडाओं के गांव में इमली, कटहल का पेड़ हुआ करता है. उनके सांस्कृतिक इमली का एक विशाल पेड़ के छांवों तले यह ससनदिरी अवस्थित है.

गांव के मुखिया के ससुर 80 वर्ष के बुजुर्ग माधव सिंह मुंडा बताते हैं कि जब गांव की बहन-बेटी को कहीं शादी दे देते हैं और वहां जब उसकी मृत्यु हो जाती है, तब वहां के लोग नया चुक्का में उनकी हड्डियां यहां पहुंचाते हैं. उल्टा पीढ़ा में बैठ के उसे खाना दिया जाता है. नया चूल्हा बनाया जाता है. चुक्के और चूल्हा को ससनदिरी ले जाया जाता है. चुक्के को चूल्हा के नीचे रखा जाता है.

उसके नाती-पोता तीर से चुक्के को छेदता है, फिर पीठ नहीं दिखाते वापस लौटता है. मान्यता है कि पीठ दिखने से अनहोनी होती है. हड्डियों को पत्थर के नीचे दफन किया जाता है. धान का खोई ससनदिरी के सभी पत्थरों के ऊपर खाने के रूप में दिया जाता है. अगर गांव का कोई बुजुर्ग मरता है तो उसकी भी हड्डियां यहां दफन की जाती है. गांव का कोई जवान व्यक्ति मरता है तो उसे बिना जलाए नदी के किनारे मिट्टी में दफन कर देते हैं. मुंडाओं की मान्यता है कि इन पत्थरों में उनके पुरखों की आत्मा निवास करती है. ससनदिरी मुंडाओं के ऐतिहासिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक धरोहर है. साथ ही हजारों साल पुराने ससनदिरी उनकी आदिवासी होने का भी प्रमाण देता है.

बारेंदा की ससनदिरी में बाउंड्री नहीं होने के कारण अतिक्रमण का शिकार हो रहा है. इस ससनदिरी को बचाने का प्रयास होना चाहिए. आदिवासी सभ्यता एवं संस्कृति विलुप्त हो रही है. इसके लिए सरकार-पुरातत्व विभाग को पहल कर चारदीवारी का निर्माण किया जाना चाहिए. यह स्थल शोध एवं पर्यटन का केंद्र बन सकता है.

Prabhat Khabar News Desk
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