रांची. डीएसपीएमयू के संताली विभाग की ओर से सोमवार को सम्मेलन का आयोजन किया गया. यह सम्मेलन संताली भाषा की लिपि ””ओल चिकी’ के निर्माण के 100 वर्ष पूरे होने के अवसर पर किया गया था. इस अवसर पर विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ तपन कुमार शांडिल्य मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे. उन्होंने अपने संबोधन में ओल चिकी लिपि के आविष्कारक पंडित रघुनाथ मुर्मू के जीवन संघर्ष और कार्यों के बारे में बताया.
पंडित रघुनाथ मुर्मू का अद्वितीय योगदान रहा
कुलपति ने कहा कि संताली भाषा को राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने एवं स्थापित करने में पंडित रघुनाथ मुर्मू का अद्वितीय योगदान रहा है. ओल चिकी लिपि के माध्यम से ही संताली जैसी आदिवासी भाषा सरकारी तंत्र पर स्थापित हो सकी. इससे पूर्व डॉ बिनोद कुमार ने कहा कि ओलचिकी लिपि की अपनी गरिमा, मान-मर्यादा है, यह हमारे लिए गर्व की बात है कि हमारे विश्वविद्यालय में ओलचिकी का शताब्दी समारोह मनाया जा रहा है.
ओलचिकी एक सांस्कृतिक लिपि है
इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि हिंदी के विभागाध्यक्ष डॉ जिंदर सिंह मुंडा ने कहा कि ‘गोमके’ की उपाधि से अभी तक दो लोगों को विभूषित किया गया है. इनमें जयपाल सिंह मुंडा और पंडित रघुनाथ मुर्मू शामिल हैं. उन्होंने कहा कि ओलचिकी एक सांस्कृतिक लिपि है. संताली विभाग की सहायक प्राध्यापक डॉ डुमनी माई मुर्मू ने ओलचिकी के इतिहास और पंडित रघुनाथ मुर्मू के जीवन पर कहा कि जिस प्रकार मां अपने बच्चों के लिए कभी गरीब नहीं होती, उसी प्रकार मातृभाषा भी कभी गरीब नहीं होती है. इस अवसर पर डॉ शकुंतला बेसरा, डॉ जय किशोर मंगल, बाबूलाल मुर्मू और विनय टुडू सहित अन्य ने भी संबोधित किया.
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