Pearl Farming in Jharkhand: झारखंड में मोती उत्पादन एक उभरता हुआ क्षेत्र बनने जा रहा है. आने वाले दिनों में बड़े पैमाने पर युवाओं को इस क्षेत्र में रोजगार मिलेगा. झारखंड तेजी से भारत के मीठे पानी के मोती उत्पादन केंद्र के रूप में उभर रहा है. राज्य और केंद्र सरकार इस विशिष्ट क्षेत्र को ग्रामीण युवाओं और किसानों के लिए आजीविका के एक प्रमुख अवसर में बदलने के लिए व्यापक प्रशिक्षण कार्यक्रम और बुनियादी ढांचे का विकास कर रहे हैं.
केंद्र सरकार ने मोती उत्पादन क्लस्टर की जारी की अधिसूचना
इस परिवर्तन को तब गति मिली जब केंद्र ने झारखंड सरकार के सहयोग से प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई) के तहत 22 करोड़ रुपए के निवेश के साथ हजारीबाग को प्रथम मोती उत्पादन क्लस्टर के रूप में विकसित करने की अधिसूचना जारी की थी.
पायलट प्रोजेक्ट के रूप में शुरू कार्यक्रम अब कौशल विकास पर केंद्रित
राज्य योजना के तहत 2019-20 में एक पायलट (प्रायोगिक) परियोजना के रूप में शुरू हुआ यह कार्यक्रम अब कौशल विकास पर केंद्रित हो गया है. एक संगठित इकोसिस्टम के रूप में विकसित हो गया है. इसमें किसानों को मोती की खेती की जटिल कला सिखाने के लिए राज्य भर में विशेष प्रशिक्षण केंद्र स्थापित किये गये हैं.
132 किसान ले चुके हैं उन्नत मोती उत्पादन का प्रशिक्षण
कॉरपोरेट सामाजिक दायित्व (सीएसआर) कोष से वर्ष 2024 में झारखंड की राजधानी रांची में स्थापित पुर्ति एग्रोटेक प्रशिक्षण केंद्र, इस प्रशिक्षण क्रांति का केंद्र बनकर उभरा है. यह केंद्र अब तक झारखंड के 132 से ज्यादा किसानों को उन्नत मोती उत्पादन तकनीक का प्रशिक्षण दे चुका है. ये प्रशिक्षित किसान अब अपने-अपने जिलों में दूसरों को भी ज्ञान बांट रहे हैं, जिससे कई गुना ज्यादा फायदा हो रहा है.
झारखंड की ताजा खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
डिजाइनर मोती से ज्यादा फायदा देता है गोल मोती
एनआईटी जमशेदपुर से मैकेनिकल इंजीनियर की पढ़ाई करने वाले बुधन सिंह पुर्ति कहते हैं, ‘प्रशिक्षण ही सफल मोती उत्पादन की रीढ़ है. हम गोल मोती के उत्पादन पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं, क्योंकि इससे डिजाइनर मोतियों की तुलना में अधिक लाभ मिलता है.’ पुर्ति प्रशिक्षण केंद्र चलाते हैं और गोल मोती उत्पादन में राज्य में मोती तराशने वाले कुछ विशेषज्ञों में से एक हैं.
बेहतर मोती के लिए जरूरी हैं ये बातें
प्रशिक्षण कार्यक्रम कुशल सर्जिकल ग्राफ्टिंग तकनीक, विशिष्ट उपकरणों के इस्तेमाल और शल्य चिकित्सा के बाद सावधानीपूर्वक प्रबंधन पर जोर देते हैं. ये ऐसे महत्वपूर्ण कारक हैं, जो मोती उत्पादन के सर्वाइवल रेट (उत्तरजीविता दर) और गुणवत्ता निर्धारित करते हैं. तकनीकी विशेषज्ञता जरूरी है, क्योंकि गोल मोतियों की खेती में उच्च उत्तरजीविता दर और गुणवत्तापूर्ण उत्पादन सुनिश्चित करने के लिए सटीकता की आवश्यकता होती है.
सेंट जेवियर्स कॉलेज में मोती उत्पादन पर सर्टिफिकेट कोर्स शुरू
इस क्षेत्र की संभावनाओं को पहचानते हुए, रांची के सेंट जेवियर्स कॉलेज ने मोती उत्पादन में 6 महीने से डेढ़ साल तक के सर्टिफिकेट कोर्स शुरू किये हैं. इनमें अकादमिक शोध को व्यावहारिक क्षेत्रीय अनुभव के साथ एकीकृत किया गया है.
उद्यमशीलता कौशल विकसित करने में मदद मिलेगी – शुक्ला
प्रोफेसर रितेश कुमार शुक्ला ने बताया कि झारखंड में मोती उत्पादन एक उभरता हुआ क्षेत्र बनने जा रहा है और युवाओं को रोजगार के अवसर प्रदान करेगा. विज्ञान के ज्ञान और क्षेत्रीय अनुभव से उद्यमशीलता कौशल विकसित करने में मदद मिलेगी.
इसे भी पढ़ें
‘राजगीर मॉडल’ पर पलामू में बनेगा झारखंड का पहला टाइगर सफारी
झारखंड के इस जिले में 3 तस्कर धराये, 18 किलो गांजा और 160 बोतल शराब बरामद