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रमजान-उल-मुबारक

न सूर्य के बस में है कि वह चांद को जाकर पकड़े और न ही रात, दिन पर वर्चस्व ले सकती है. यह सब एक-एक आकाश में तैर रहे हैं. (कुरआन : सूरा-36, आयत-40)

जिंदगी की हकीकत और मकसद

र्शन और आध्यात्म दोनों ही दृष्टिकोण से यह सवाल काफी शिद्दत से उठाया जाता रहा है कि जिंदगी की वास्तविकता और इसका उद्देश्य क्या है. जीवन में पेश आनेवाली चुनौतियां, कठिनाइयां और विफलताएं अकसर इंसान को कुंठित और हतोत्साहित करती है. ऐसे हालात में धर्म या आस्था उसका संबल बनती है. जहां तक इस्लाम का संबंध है यहां दुनिया की जिंदगी को अपूर्ण तथा गलती का प्रायश्चित बताया गया है. कुरआन के सूरा: अल असर में कहा गया है-बेशक इंसान घाटे में है, सिवाये उन लोगों के जो ईमान लाएं, नेक काम किये और एक-दूसरे को हक बात कहने और सब्र करने का यकीन दिलाते रहे.

यहां बंदे को उसकी गलतियों का एहसास कराने के साथ उसके अंदर सकारात्मक सोच पैदा करने का संदेश भी है. ईमान के साथ अच्छे आमाल पर भी जोर दिया दिया है. हक पर यकीन और सब्र की ताकत को निजी जिंदगी का आधार बनाने का साथ इन्हें सार्वजनिक करने के प्रयास को भी ईमान का हिस्सा बताया गया है. अगर इंसान के अंदर ये एहसास पैदा हो जाये कि संसारिक जीवन ही सब कुछ नहीं, बल्कि मौत के बाद मिलनेवाली जिंदगी का अंशमात्र है, तो फिर उसके अंदर का मायामोह उसे विचलित नहीं होने देगा.

(लेखक एसएस मेमोरियल कॉलेज, रांची में व्याख्याता हैं)

रमजान के रोजे की बारीकियां

ह-ए-रमजान के रोजे हर मुसलमान पर फर्ज (अनिवार्य) है. रमजान के महीने में ही पैगंबर मुहम्मद पर कुरआन नाजिल हुई. अल्लाह रमजान में हर मुसलमान को सवाब का खजाना अता करता है, बशर्ते वह ईमान पर रहे. रमजान के रोजे का नाजुक पहलू यह है कि जिस्म के हर अंग का रोजा होता है. सूर्योदय से डेढ़-दो घंटे पहले से लेकर सूर्यास्त तक भूखे-प्यासे रहने का नाम रोजा हरगिज नहीं है, बल्कि रोजा आंखों का भी होता है. एक रोजेदार को चाहिए कि वह अपनी आंखों का इस्तेमाल अल्लाह की इबादत में और अच्छे कामों में करे.

रोजा रखकर बुरे काम या बुरी चीजों को देखना वर्जित है. मुंह का रोजा है कि वह अपने मुंह का इस्तेमाल अल्लाह की इबादत और अच्छे कामों में करे. बुरी बातें या गाली गलौज न करें. हाथों का रोजा यह है कि कोई बुरे काम न करें. पैर का रोजा है कि अपने कदम अच्छे कामों के लिये उठाये. इसतरह रोजे की बारीकी और नजाकत का ख्याल रखना हर रोजेदार के लिए बहुत जरूरी है, वरना रोजे का खराब होने में कोई शक नहीं है. आज की नयी पीढ़ी के अधिकतर लोगों को धार्मिक ज्ञान न होने के कारण सिर्फ भूखे और प्यासे रहने को ही रोजा समझते हैं. वास्तव में रमजान ट्रेनिंग का महीना है.

(लेखक राष्ट्रीय उर्दू भाषा विकास परिषद, नयी दिल्ली के सदस्य हैं)

Prabhat Khabar News Desk
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