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चंपारण के किसानों के लिए रांची आये थे बापू, देवघर में झेला था विरोधियों का हमला

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका से लौटने के दो साल बाद वर्ष 1917 में रांची आये थे.चंपारण सत्याग्रह के दौराना की गयी इस यात्रा में महत्मा गांधी के साथ उनकी पत्नी कस्तूरबा गांधी और पुत्र देवदास गांधी भी थे.उन्होंने चार जून को आड्रे हाउस में तत्कालीन लेफ्टिनेंट गवर्नर सर एडवर्ड गैट से बात की.

Gandhi Jayanti 2022: राष्ट्रपिता महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका से लौटने के दो साल बाद वर्ष 1917 में रांची आये थे. चंपारण सत्याग्रह के दौराना की गयी इस यात्रा में महत्मा गांधी के साथ उनकी पत्नी कस्तूरबा गांधी और पुत्र देवदास गांधी भी थे. उन्होंने चार जून को गवर्नर हाउस का हिस्सा रहे आड्रे हाउस में तत्कालीन लेफ्टिनेंट गवर्नर सर एडवर्ड गैट से चंपारण की स्थिति पर बात की. छह जून तक चली बैठक में दमनकारी तिनकाठिया प्रणाली के कारण चंपारण के किसानों की दुर्दशा पर वार्ता हुई. अंत में प्रणाली पर विचार करने के लिए एक कमेटी गठित करने का फैसला लिया गया. इस कमेटी में महात्मा भी शामिल थे. कमेटी ने तिनकाठिया प्रणाली समाप्त करने की सिफारिश की.

चंपारण सत्याग्रह में रांची की अहम भूमिका

चंपारण कृषि अधिनियम 1918 तैयार करते हुए अंग्रेज सरकार ने कमेटी की सिफारिश मान ली. चंपारण सत्याग्रह काफी सफल रहा. इस वजह से चंपारण सत्याग्रह की सफलता में रांची की भूमिका महत्वपूर्ण थी. चंपारण सत्याग्रह के बाद गांधी जी दर्जन भर से ज्यादा बार तत्कालीन बिहार और वर्तमान झारखंड आये थे. आजादी की लड़ाई लड़ते हुए उन्होंने अलग-अलग समय और कारणों से रामगढ़, जमशेदपुर, हजारीबाग, गिरिडीह, देवघर, खूंटी, चक्रधरपुर, चाईबासा, कतरास, मधुपुर, पलामू, गोमिया, झरिया और धनबाद की यात्रा की थी.

जसीडीह स्टेशन में हुआ था विरोध

गांधी जी को वर्तमान झारखंड की यात्राओं के दौरान एक कटु अनुभव का भी सामना करना पड़ा था. वर्ष 1934 में छूआछूत के खिलाफ सामाजिक आंदोलन के दौरान आजादी की लड़ाई में महात्मा का समर्थन करने वाले कुछ लोग भी जाति के सवाल पर उनके विरोध में उतर आये थे. 25 अप्रैल 1934 को तत्कालीन बिहार (अब झारखंड) के जसीडीह स्टेशन पर गांधी जी आने वाले थे. उनके स्वागत के लिए जमा भीड़ में ऐसे लोग भी थे, जो गांधी जी की इस यात्रा से खुश नहीं थे. 26 अप्रैल की रात दो बजे महात्मा गांधी की ट्रेन जसीडीह पहुंची. बभमनगामा इस्टेट, सारठ के राय बहादुर जगदीश प्रसाद सिंह की कार से स्टेशन परिसर से बाहर निकलने के दौरान भीड़ ने महात्मा गांधी पर लाठी-डंडों से हमला कर दिया. पथराव भी किया. काले झंडे लहराये. महात्मा गांधी वापस जाओ के नारे भी लगाये. कार का शीशा टूट गया.

ड्राइवर की सूझबूझ से बची जान

ड्राइवर की सूझ-बूझ और सुरक्षा के लिए बनी कमेटी के सदस्यों की तत्परता से गांधी जी की जान बचायी जा सकी. अगले दिन सार्वजनिक बैठक में गांधी जी ने कहा कि वह ईश्वर की कृपा से बच गये. लेकिन, काले और लाल झंडे दिखाने वाले लोगों से वह डरते नहीं हैं. महात्मा ने अपने सभी पूर्व निर्धारित कार्यक्रमों में हिस्सा लिया. बाबा विश्वनाथ मंदिर में हरिजनों को प्रवेश कराया. उनको पूजा का अधिकार दिला समाज में बराबरी का संदेश दिया. इसके पहले देवघर के बाबा बैद्यनाथ मंदिर में हरिजनों के प्रवेश पर रोक थी.

बाबा मंदिर में हरिजनों को प्रवेश कराने पहुंचे थे

गांधी जी पहली बार साल 1925 में देवघर गये थे. तब मंदिर में हरिजनों या किसी अन्य जाति के प्रवेश पर रोक नहीं थी. हरिजनों और आदिवासियों के बीच महात्मा ने तब तीन दिन गुजारे थे. उनको साफ रहने, रोज नहाने, नाखून काटने जैसी नसीहतें दी थी. महात्मा के लौटने के बाद के वर्षों में बाबा मंदिर में हरिजनों के प्रवेश पर पाबंदी लगा दी गयी थी. 1934 में इसकी खबर मिलने पर महात्मा ने दोबारा देवघर जाने का फैसला किया था.

Rahul Kumar
Rahul Kumar
Senior Journalist having more than 11 years of experience in print and digital journalism.

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