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रथ यात्रा पर विशेष : 300 साल बाद ध्वस्त हो गया रांची के जगन्नाथपुर मंदिर का गर्भगृह, ट्रस्ट ने किया जीर्णोद्धार

Rath Yatra, Ranchi: निर्माण के 300 साल बाद वर्ष 1991 में सावन पूर्णिमा के दिन मंदिर का गर्भगृह स्वत: ध्वस्त हो गया. जगन्नाथपुर मंदिर न्यास समिति ने एक जगन्नाथपुर मंदिर पुनर्निर्माण समिति का गठन किया और मंदिर के जीर्णोद्धार का काम शुरू हुआ. इसमें रांची शहर के सामाजिक कार्यकर्ताओं, प्रबुद्ध जनों, मेकॉन ,सीसीएल एवं एचइसी के अभियंताओं, पुरी मंदिर के व्यवस्थापकों एवं रांची के तत्कालीन उपायुक्त सुधीर प्रसाद व अन्य ने महती भूमिका निभायी.

रांची (मुक्ति शाहदेव) : रांची नगर से 10 किलोमीटर दूर दक्षिण की ओर स्थित 250 फीट ऊंची पहाड़ी पर 101 फीट ऊंचा जगन्नाथ मंदिर है. सन् 1691 के अंत में ठाकुर एनी नाथ शाहदेव ने सुंदर एवं वनाच्छादित पहाड़ी पर इस भव्य मंदिर का निर्माण कराया था. आधा किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक अन्य पहाड़ी पर मौसी बाड़ी बनवाकर पावन रथ यात्रा का शुभारंभ किया था. मौसी बाड़ी में वर्ष में 9 दिन तक जगन्नाथ स्वामी अपने भाई बलराम एवं बहन सुभद्रा के साथ विराजते हैं.

प्रतिवर्ष यहां आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को चलती रथ मेला का आयोजन होता है. हरि शयन एकादशी को घुरती रथ यात्रा निकलती है. इस मेला में दूर-दराज से लाखों आदिवासी, गैर-आदिवासी एवं हरिजन रंग-बिरंगे परिधान में जगन्नाथ स्वामी के दर्शन तथा उनकी पूजा-अर्चना करने के लिए आते हैं. यह परंपरा सैकड़ों वर्षों से चली आ रही है. जब यातायात की व्यवस्था नहीं थी, सुदूर ग्रामों में से जंगल, पहाड़ और नदियों को लांघकर लोग रथ मेला से 2-3 दिन पहले ही यहां पहुंच जाते थे. मंदिर के आस-पास, घने वृक्षों के तले पड़ाव डालते थे.

जगन्नाथ स्वामी के मंदिर के निर्माण के संबंध में कहा जाता है कि 21 पुत्रों के पिता एनी नाथ शाहदेव जब वृद्ध हुए, तो उन्हें संसार से विरक्ति हो गयी. जगन्नाथ स्वामी के दर्शन के लिए एक नौकर के साथ पुरी की यात्रा पर निकल पड़े. उन दिनों यात्रा सुगम और निरापद नहीं थी. उन दिनों तीर्थ यात्री अपने तमाम सामान लेकर चला करते थे. एनी नाथ ने सारी सुविधाएं होते हुए कष्टकर यात्रा को चुना.

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घनघोर पहाड़ और नदियों को लांघकर यात्रा करनी पड़ी. तब जाकर ठाकुर एनी नाथ पुरी पहुंचे. भगवान के दर्शन किये और वहां शांति का अनुभव किया. कहा जाता है कि उन्हें स्वप्न में स्वयं भगवान जगन्नाथ ने बड़कागढ़ में जगन्नाथ मंदिर बनाने के लिए कहा. ठाकुर एनी नाथ ने इस सपने को भगवान का आदेश माना और बड़कागढ़ में जगन्नाथ मंदिर के निर्माण का संकल्प लिया. ऐसा लगता है मानो प्रकृति ने इस मंदिर के लिए ही दो पहाड़ियों का निर्माण कर रखा था.

इन्हीं पहाड़ियों पर ठाकुर एनी नाथ शाहदेव ने दोनों मंदिरों का निर्माण करवाया. पुरी के मंदिर की तरह ही काष्ठ के विग्रह बनवाये गये. व्यवस्था के लिए जगन्नाथपुर, आनी एवं भुसुर तीन गांवों को जगन्नाथ मंदिर के नाम दान कर दिया. पुरी मंदिर की तर्ज पर और उन्हीं तिथियों पर रथ यात्रा निकालने की व्यवस्था की गयी. सन 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के नायक बड़कागढ़ के ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव को अंग्रेजों ने फांसी दे दी. बड़ाकागढ़ के सभी 97 गांवों को ब्रिटिश सरकार ने अपने कब्जे में ले लिया.

सांस्कृतिक धरोहर को सुरक्षित रखने के लिए सन् 1977 के प्रथम चरण में जगन्नाथपुर मंदिर न्यास समिति का सार्वजनिक तौर पर गठन हुआ. नामांकित पदधारी एवं सदस्यों ने अपना कार्यभार संभाला. मंदिर न्यास समिति की ओर से बैंक में खाते खोले गये. दान पात्र रखा गया. दान-अनुदान मिलने लगे. पीने के लिए पानी आदि की व्यवस्था की गयी और कई निर्माण कार्य कराये गये. समिति का प्रथम अध्यक्ष राम रतन राम को बनाया गया. वह आजीवन इस पद पर रहे और मंदिर का सुचारु रूप से संचालन किया.

1991 में ध्वस्त हो गया मंदिर का गर्भगृह

निर्माण के 300 साल बाद वर्ष 1991 में सावन पूर्णिमा के दिन मंदिर का गर्भगृह स्वत: ध्वस्त हो गया. जगन्नाथपुर मंदिर न्यास समिति ने एक जगन्नाथपुर मंदिर पुनर्निर्माण समिति का गठन किया और मंदिर के जीर्णोद्धार का काम शुरू हुआ. इसमें रांची शहर के सामाजिक कार्यकर्ताओं, प्रबुद्ध जनों, मेकॉन ,सीसीएल एवं एचइसी के अभियंताओं, पुरी मंदिर के व्यवस्थापकों एवं रांची के तत्कालीन उपायुक्त सुधीर प्रसाद व अन्य ने महती भूमिका निभायी.

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निर्माण समिति ने परिश्रम व लगन से वर्तमान भव्य मंदिर का निर्माण पूरा हुआ. दान में मिले पैसे से ही मंदिर का निर्माण होना था. नये मंदिर के निर्माण की लागत करोड़ों में थी. दूसरी तरफ, मंदिर न्यास समिति को दान में सीमित मात्रा में धन मिलता था. इसलिए निर्माण समिति के सदस्यों ने चंदा एकत्र कर यह राशि जुटायी. स्वतंत्रता सेनानी राम रतन राम, श्याम किशोर साहू, ज्ञान प्रकाश बुधिया, रघुराज सिंह, पुजारी सोमनाथ तिवारी, ब्रजभूषण नाथ मिश्र, तत्कालीन उपायुक्त सुधीर प्रसाद, डीके तिवारी एवं मंदिर के कोषाध्यक्ष सह सचिव ठाकुर राधेश्याम नाथ शाहदेव का विशेष योगदान रहा.

रांची के तत्कालीन सांसद सुबोधकांत सहाय ने सांसद निधि से एक लाख रुपये एवं गीता आश्रम दिल्ली कैंट के स्वामी हरिहर जी महाराज ने एक लाख रुपये की आर्थिक सहायता मंदिर निर्माण के लिए दी. वर्तमान मंदिर की ऊंचाई 101 फीट है, जो ओड़िशी शैली में निर्मित है. मेला की व्यवस्था के लिए न्यास समिति के तहत ही रथ मेला सुरक्षा समिति का भी गठन किया गया है, जो नौ दिन तक लगने वाले मेला की सभी व्यवस्था करती है.

नौ दिन तक चलने वाला क्षेत्रीय मेला

तीन सौ से अधिक वर्ष पुराने रथ मेला की खासियत यह है कि आज भी यह क्षेत्रीय मेला है. मेला में खेती-बाड़ी से जुड़े उपकरण व साज-ओ-सामान की बिक्री बहुतायत में होती है. झारखंडी संस्कृति से जुड़ी कई बहुमूल्य वस्तुएं मेला की शोभा होती हैं. आधुनिक झूले से लेकर सौंदर्य प्रसाधन व घरेलू उपयोग की चीजें व मिठाइयों के लिए भी यह मेला प्रसिद्ध है. यह पहला अवसर है, जब महामारी के कारण यह धार्मिक व ऐतिहासिक मेला नहीं लग रहा है.

Posted By : Mithilesh Jha

Prabhat Khabar Digital Desk
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