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रिम्स डेंटल कॉलेज घोटाला मामले में दो पूर्व निदेशक समेत 1 वरिष्ठ अधिकारी पर गिर सकती है गाज, केस दर्ज करने की तैयारी

रिम्स डेंटल कॉलेज घोटाला मामले की जांच रिपोर्ट आगामी शासी परिषद के समक्ष कार्रवाई के लिए रखी जायेगी. यह मामला वर्ष 2015 का है.

बिपिन सिंह, रांची : रिम्स डेंटल कॉलेज में करीब 37 करोड़ रुपये के उपकरण खरीद घोटाले में अब आपराधिक कृत्य के तहत मामला दर्ज करने की तैयारी हो रही है. अगर ऐसा हुआ, तो इस मामले में रिम्स के दो पूर्व निदेशक व रिम्स डेंटल कॉलेज के एक वरिष्ठ अधिकारी पर कार्रवाई हो सकती है. रिम्स प्रबंधन ने पक्षकारों को अंतिम मौका देते हुए मामले में स्पष्टीकरण मांगा है.

इन लोगों पर हो सकती है कार्यवाही

सेवानिवृत्त पूर्व निदेशक डॉ बीएल शेरवाल (वर्तमान में राजीव गांधी सुपर स्पेशियालिटी अस्पताल, दिल्ली के निदेशक), पूर्व निदेशक डॉ सत्येंद्र कुमार चौधरी व रिम्स डेंटल कॉलेज के प्राध्यापक एवं विभागाध्यक्ष, मैक्सिलोफेसियल सर्जरी डॉ वीके प्रजापति को पत्र लिखकर वित्तीय अनियमितता की इस कार्रवाई में शामिल होने को कहा गया है. साथ ही यह भी कहा गया है कि इस मामले में जिस तरह से टाल-मटोल की नीति अपनायी जा रही है, ऐसे में क्यों न आप सभी के ऊपर आपराधिक कृत्य के तहत कार्रवाई को आगे बढ़ाया जाये. शासी परिषद में भी इस बात पर चर्चा हुई थी, जिसमें नये सिरे से कार्रवाई शुरू करने पर सहमति बनी थी.

शासी परिषद के सामने रखी जाएगी रिपोर्ट

आंतरिक जांच रिपोर्ट आगामी शासी परिषद के समक्ष कार्रवाई के लिए रखी जायेगी. यह मामला वर्ष 2015 का है. लेकिन, मामले में अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है. महालेखाकार की जांच टीम ने 28 सितंबर 2020 को गड़बड़ी पकड़ी थी. जांच टीम ने अपने ऑडिट में पाया था कि उस वक्त उपकरणों की खरीद 200 से 250 फीसदी ज्यादा कीमत पर की गयी थी.

200% से भी ज्यादा कीमत पर खरीदे गये थे डेंटल चेयर और अन्य उपकरण

जांच रिपोर्ट में इस बात का जिक्र है कि इस मामले में टेंडर प्रक्रिया को नजरअंदाज करते हुए मनमाने तरीके से चहेती एजेंसी को ठेका दिया गया. शासी परिषद, रिम्स की बैठक में 5.80 करोड़ की खरीद पर सहमति बनी थी. बाद में उसे 9.29 करोड़ किया गया. इसके बाद 37.42 करोड़ का प्रस्ताव तैयार किया गया. खरीदारी के समय बाजार में डेंटल चेयर की कीमत 6.25 लाख थी, लेकिन उसे 200 फीसदी से अधिक कीमत पर 14.28 लाख में खरीदा गया. वहीं, डेंटल वैन की कीमत उस समय 23 से 41 लाख थी, जिसे 1.48 करोड़ में खरीदा गया.

क्या कहा प्रबंधन ने

रिम्स ने मामले को लेकर कहा कि विभागीय कार्यवाही शुरू करने के पहले आरोपी को अभिलेख की अभिप्रमाणित प्रति उपलब्ध कराने का कोई नियम नहीं है. स्पष्टीकरण प्राप्त नहीं होने पर यह समझा जायेगा कि इस संबंध में आपको कुछ नहीं कहना है. इसके बाद प्राप्त साक्ष्य के आधार पर सभी के विरुद्ध अनुशासनिक कार्रवाई शुरू कर दी जायेगी.

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Prabhat Khabar Digital Desk
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