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सारंडा वन क्षेत्र में वाइल्ड लाइफ सेंचुरी की घोषणा से खनन पर संकट, खान विभाग कर रहा डाटा तैयार

Saranda Wildlife Sanctuary: सारंडा वन क्षेत्र में वाइल्ड लाइफ सेंचुरी की घोषणा से खनन कार्य पर संकट आ गया है. इससे खान विभाग की चिंता बढ़ गयी है. इसे लेकर राज्य सरकार ने एक्सपर्ट कमेटी बनाई है.खान विभाग इसका डाटा तैयार कर रहा है.

Saranda Wildlife Sanctuary: झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम जिले के सारंडा वन क्षेत्र में वन्य जीव अभयारण्य (वाइल्ड लाइफ सेंचुरी) की घोषणा सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर 23 जुलाई तक करनी है. लेकिन, खान विभाग इसे लेकर परेशान है. वजह है कि इस सेंचुरी के दायरे में घाटकुरी, अंकुवा, करमपदा माइंस समेत सभी प्रमुख लौह अयस्क खदान आ रहे हैं, जिसका रिजर्व करीब चार बिलियन टन है. इसका मतलब है कि अगर सेंचुरी की घोषणा होती है. तो यहां से लौह अयस्क समेत अन्य खनिजों का खनन कार्य पूरी तरह से प्रतिबंधित हो जायेगा.

4 बिलियन टन लौह अयस्क रिजर्व है

राज्य सरकार ने इस मामले में सुझाव देने के लिए एक उच्चस्तरीय एक्सपर्ट कमेटी बनायी है. विभाग के अधिकारियों के अनुसार, चाईबासा में लौह अयस्क का अभी चार बिलियन टन रिजर्व है. साथ ही आने वाले 20-30 सालों में इन खदानों से लगभग 25 लाख करोड़ रुपये के लौह अयस्क निकलेंगे, जिससे राज्य सरकार को भी करीब पांच लाख करोड़ रुपये बतौर रॉयल्टी प्राप्त हो सकता है.

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NGT ने दिया वाइल्ड लाइफ सेंचुरी बनाने का निर्देश

मालूम हो कि एनजीटी (NGT) ने सारंडा में वन्य जीव अभयारण्य बनाने का निर्देश दिया था. लेकिन राज्य सरकार ने जब इसका पालन नहीं किया, तो मामला सुप्रीम कोर्ट में चला गया. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में राज्य सरकार को हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया था.

वन विभाग ने क्या कहा

इधर, 29 अप्रैल को सुनवाई के दौरान दायर हलफनामे में वन विभाग ने कहा कि अब राज्य सरकार ने 31468.25 हेक्टेयर के मूल प्रस्ताव के स्थान पर 57519.41 हेक्टेयर क्षेत्र को वन्यजीव अभयारण्य के रूप में अधिसूचित करने का प्रस्ताव किया है. 13.06 किमी क्षेत्र को संरक्षण रिजर्व के रूप में अधिसूचित करने का प्रस्ताव किया गया है. मामले के अनुपालन पर 23 जुलाई 2025 को सुनवाई होगी.

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क्यों बढ़ी परेशानी

इस संबंध में खान विभाग के अधिकारियों ने बताया कि पूर्व के 31468.25 हेक्टेयर को लेकर परेशानी नहीं थी. इसे अभयारण्य घोषित कर दिये जाने पर परेशानी नहीं है. इसका दायरा बढ़ाकर 57519.41 हेक्टेयर किये जाने पर परेशानी बढ़ गयी है. इसकी वजह है कि इस बढ़े हुए इलाके में ही लगभग सारे लौह अयस्क खदान और अन्य खनिजों के खदान आ रहे हैं.

इको सेंसेटिव जोन में नहीं हो सकता खनन

अधिकारियों ने बताया कि वाइल्ड लाइफ सेंचुरी के 10 किमी रेडियस को इको सेंसटिव जोन घोषित करना होता है. इको सेंसेटिव जोन में खनन कार्य प्रतिबंधित होता है. पूरे चाईबासा क्षेत्र में 90 से अधिक लौह अयस्क खदान हैं, जिसमें चालू हालत में आठ ही हैं. लेकिन, कई ऐसे खदान हैं, जिन्हें नीलामी के लिए राज्य सरकार तैयार कर चुकी है. पर अब मामला अधर में आ लटका है.

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खान विभाग में चल रहा बैठकों का दौर

सुप्रीम कोर्ट में राज्य सरकार को जवाब देना है कि कितने एरिया में वाइल्ड लाइफ सेंचुरी घोषित की गयी है. लेकिन, जब माइनिंग जोन इसके दायरे में आ रहा है, तो अब इसे बचाने की पहल हो रही है. हर दिन खान विभाग में इसे लेकर बैठकों का दौर चल रहा है. राज्य सरकार ने सीसीएफ वाइल्ड लाइफ की अध्यक्षता में एक एक्सपर्ट कमेटी बना दी है, जिसमें खान निदेशक व भूतत्व निदेशक भी हैं.

कमेटी कर रही डाटा तैयार

वहीं, निदेशक खान ने भी एक कमेटी बनायी है, जिसमें भूतत्व निदेशक, उपनिदेशक खान, उपनिदेशक भूतत्य, उपनिदेशक पश्चिमी सिंहभूम, जीएसआइ, झारखंड स्पेशन एप्लीकेशन सेंटर के अधिकारी भी है. यह कमेटी डाटा तैयार कर रही है कि कितने माइनिंग जोन दायरे में आ रहे हैं और इसे कैसे बचाया जा सकता है.

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Rupali Das
Rupali Das
नमस्कार! मैं रुपाली दास, एक समर्पित पत्रकार हूं. एक साल से अधिक समय से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय हूं. वर्तमान में प्रभात खबर में कार्यरत हूं. यहां झारखंड राज्य से जुड़े महत्वपूर्ण सामाजिक, राजनीतिक और जन सरोकार के मुद्दों पर आधारित खबरें लिखती हूं. इससे पहले दूरदर्शन, हिंदुस्तान, द फॉलोअप सहित अन्य प्रतिष्ठित समाचार माध्यमों के साथ भी काम करने का अनुभव है.

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