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झारखंड में सरस्वती पूजा की तैयारी अंतिम चरणों में लेकिन मूर्तिकारों पर नहीं हो रही लक्ष्मी की कृपा

झारखंड में हर साल की भांति इस साल भी सरस्वती पूजा धूमधाम से मनायी जाएगी. जिसकी तैयारी लगभग हो चुकी है, लेकिन मां सरस्वती को बनाने वाले मूर्तिकारों की स्थिति खराब है.

पांच फरवरी को सरस्वती पूजा है. इसकी तैयारी अंतिम चरण में है. चौक-चौराहों और मोहल्ले-टोलों में मंडप बनाये जा रहे हैं. कई बड़े क्लब गुरुवार से ही मंडप में मां सरस्वती की प्रतिमा स्थापित करते दिखे. कोरोना के कारण इस वर्ष भी पहले की तुलना में मंडप नहीं बन रहे. स्कूल और कॉलेज नहीं खुलने से सरस्वती पूजा नहीं हो रही है.

कई मंडपों में प्रतिमा की जगह प्रतिकात्मक फोटो से ही पूजा की तैयारी है. इसका सीधा असर मूर्तिकारों के जीवन पर पड़ रहा है. शहर के मूर्तिकारों का कहना है कि इस वर्ष सरस्वती पूजा का बाजार बिलकुल ठप है. कोरोना काल की वजह से राेजगार प्रभावित हुआ है. यही कारण है कि मूर्तिकार, कारीगर और साज-सज्जा के काम से जुड़े कर्मियों को राेजगार के दूसरे विकल्पों को अपनाना पड़ रहा है.

किसी कारीगर ने सब्जी बेची तो कोई बन गया राजमिस्त्री

कोरोना काल ने मूर्तिकला से जुड़े कारीगरों के रोजगार का काफी प्रभावित किया है़ वर्षों से प्रतिमा निर्माण में जुटे कारीगर बेरोजगार हो गये. यहीं कारण है कि परिवार का पेट पालने के लिए किसी ने सब्जी बेची, तो किसी ने समोसा-आलू चॉप का ठेला लगाया़ कई कारीगरों को राजमिस्त्री का काम सीखना पड़ा. कइयों ने दूसरे के खेत में मजदूरी की़

कोरोना काल में मूर्ति निर्माण का काम बंद हो गया था. विवश होकर अपने घर कोलकाता लौटना पड़ा. परिवार का पेट पालने के लिए ठेला पर समोसा-आलू चॉप बेचने लगा था़

– समीर पाल

काली पूजा के बाद काम बंद हो गया था. रोजगार का कोई विकल्प नजर नहीं आ रहा था. इस कारण परिवार के बीच नवोदीप लौटना पड़ा. घर का खर्च निकालने के लिए राजमिस्त्री का काम किया़

– आनंद पाल

25 वर्षों से मूर्तिकला के काम से जुड़ा हुआ था. कभी भी रोजगार की कमी नहीं महसूस की, लेकिन कोरोना ने नया संकट खड़ा कर दिया है़ परिवार का खर्च चलाने के लिए दूसरे के खेतों में मजदूरी करनी पड़ी़

– सुकुमार पाल

दो वर्ष बाद मूर्तिकला से जुड़े काम की तलाश में वापस रांची आया हूं. कोरोना काल की वजह से रोजगार ठप हो गया था. काम नहीं मिलने से मेदिनीपुर लौट गया था़ वहीं कभी खेत में मजदूरी की, तो कभी राजमिस्त्री का काम किया.

– शुभो

कोरोना काल की वजह से मूर्तिकला का काम ठप हो गया है. पहले सरस्वती पूजा में 300 बड़ी और 200 से अधिक छोटी प्रतिमाएं गढ़ी जाती थी़ इन्हें तैयार करने में 12-14 कारीगर की जरूरत पड़ती थी़ स्वरोजगार के साथ दूसरों को भी रोजगार मिलता था, लेकिन कोरोना ने सबकुछ बदल दिया है़ इस वर्ष छोटी-बड़ी मिलकार सिर्फ 164 प्रतिमाएं ही बन सकी हैं. आयोजन समिति के सदस्य देर से ऑर्डर देने पहुंच रहे हैं. इतना कम समय में प्रतिमा निर्माण संभव नहीं है़ कई लोग दुर्गा पूजा के समय बनी सरस्वती प्रतिमा को ही ले जा रहे हैं.

– अजय पाल, मूर्तिकार

छोटी प्रतिमा की जगह तस्वीर ने ली है

पहले सभी स्कूल-काॅलेज और हॉस्टल में धूमधाम से सरस्वती पूजा की जाती थी़ पिछले वर्ष 300 प्रतिमा बनायी गयी थी़ इस वर्ष सरस्वती पूजा से पहले शिक्षण संस्थान बंद रहने से बड़ा ऑर्डर प्रभावित हुआ है. गली-मोहल्ले में होनेवाली पूजा के लिए छोटी-बड़ी 150 प्रतिमाएं बन पायी है़ं बड़े आयोजन नहीं होने से बड़ी प्रतिमा का निर्माण सीमित संख्या में हुआ है़ साथ ही पहले लोग घर के लिए मां की छोटी प्रतिमा लेकर जाते थे, अब उसकी जगह तस्वीर ने ले ली है. इससे रोजगार प्रभावित हो रहा है.

Posted By : Sameer Oraon

Prabhat Khabar News Desk
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