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सट्टा मटका की तरह ही झारखंड में लोकप्रिय है यह खेल, लाखों की लगती है बोली, दक्षिण भारत से मंगाये जाते हैं…

इस खेल के आयोजन से बहुत पहले ही लोग जंगली मुर्गे खरीद लेते हैं और उसे बहुत जतन से पालते हैं. उनके खाने पीने का खास ध्यान रखा जाता है. इस बार तो दक्षिण भारत से लड़ाकू नस्ल के मुर्गे मंगवाये जाते हैं

झारखंड में हब्बा डब्बा, मुर्गा लड़ाई समेत कई अवैध खेल सट्टा मटका की तरह ही लोकप्रिय हो चुका है. खास कर मुर्गा लड़ाई का क्रेज इतना है कि इसमें इसकी तैयारी लोग बहुत पहले से शुरू कर देते हैं. हालांकि, पुलिस इस खेल में शामिल होने वाले लोगों पर कड़ी कार्रवाई करती है. लेकिन बावजूद इसके, सप्ताहिक बाजार हाट में चोरी छिप्पे मुर्गा लड़ाई जैसे खेल का आयोजन होता रहता है. कभी मनोरंजन के रूप में खेला जाने वाला यह खेल अब जुआ का रूप ले लिया है. जहां पर एक-एक मुर्गे पर लाखों रुपये की बोली लगती है. बता दें कि अदालत ने कई साल पहले ही पशु क्रूरता निवारण अधिनियम के तहत इस पर प्रतिबंध लगा दिया है.

कैसे की जाती है तैयारी

इस खेल के आयोजन से बहुत पहले ही लोग जंगली मुर्गे खरीद लेते हैं और उसे बहुत जतन से पालते हैं. उनके खाने पीने का खास ध्यान रखा जाता है. इस बार तो धनबाद में मुर्गा लड़ाई के लिए दक्षिण भारत से लड़ाकू नस्ल के मुर्गा मंगवाया गया था. इनमें से कई मुर्गे का तो 30-40 किलो तक वजन का था. जिन्हें हजारों रुपये खर्च कर मंगाये गये थे. बता दें कि मुर्गे को हिंसक बनाने के लिए तो लोग कई बार लोग जड़ी बूटी का इस्तेमाल करते हैं.

लाखों का लगता है दांव :

मुर्गा लड़ाई दुनिया भर के अलग-अलग देशों में एक खास शगल है. इसकी परंपरा काफी पुरानी है. क्रेज इतना कि हर दांव में लाखों रुपए लगते हैं. मुर्गा लड़ाई का कोई खास सीजन नहीं हैं. यहां के गांवों में लगने वाले साप्ताहिक बाजारों में मुर्गे लड़ाए जाते है. वहीं खुले मैदान में इस लड़ाई का आयोजन होता है. लोग घेरा बना कर इसका लुत्फ उठाते हैं.

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कैसे होती है लड़ाई

इस खेल खेलने से पहले ही आयोजक लोगों को जगह और समय की सूचना दे देता है. इसे एक खुले मैदान में खेला जाता है. मैदान को रस्सी से घेर दिया जाता है. जिसके चारों ओर लोग खड़े रहते हैं. लड़ाई शुरू करने से पहले ही सट्टेबाज मुर्गे को लेकर चारों ओर घूमते है और लोगों को अपने पसंदीदा मुर्गे पर दांव लगाने के लिए उकसाते हैं.

न सिर्फ लोगों को उकसाया जाता है बल्कि मुर्गा का मालिक मुर्गा को हिंसक बनाने के लिए एक खास तरह की आवाज निकालता है जिससे कि मुर्गा और खतरनाक हो जाये. लड़ाई के लिए तैयार मुर्गे के एक पैर में एक खास तरह का हथियार बांधा जाता है. लेकिन मुर्गे को बांधने के लिए भी एक खास कला और इसमें माहिर व्यक्ति की ही जरूरत पड़ती है. यह खेल तब तक चलता है जब इस खेल में किसी मुर्गे की मौत न हो जाये.

Disclaimer: इस खबर को प्रभात खबर प्रोत्साहित नहीं करता है. साथ ही यह खेल झारखंड राज्य में पूरी तरह बैन है. कृपया इस खेल का हिस्सा बनने से बचे.

Sameer Oraon
Sameer Oraon
A digital media journalist having 3 year experience in desk

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