(योगदा सत्संग आश्रम)
श्रीमदभागवत गीता के आठवें अध्याय पर स्वामी प्रज्ञानंद ने किया विस्तृत प्रवचन
रांची. योगदा सत्संग आश्रम के श्रवणालय में रविवार को आयोजित प्रवचन में स्वामी प्रज्ञानंद ने श्रीमदभागवत गीता के आठवें अध्याय पर विशेष रूप से प्रकाश डालते हुए ब्रह्म, अध्यात्म और कर्म के रहस्यों पर विस्तृत चर्चा की. उन्होंने बताया कि जिस ब्रह्म की चर्चा गीता में की गयी है, वह परम अक्षर ‘ॐ’ ही है, जो सच्चिदानंद स्वरूप है और समस्त प्राणियों में व्याप्त और अविनाशी तत्व है. उन्होंने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को समझाया कि जीवात्मा ही अध्यात्म है और भूतों के भाव को उत्पन्न करने वाला त्याग ही कर्म कहलाता है. स्वामी प्रज्ञानंद ने कहा कि जीवन के अंत समय में जो व्यक्ति ईश्वर को स्मरण करते हुए शरीर त्यागता है, वह भगवान के स्वरूप को प्राप्त करता है. उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि यह साधना सरल नहीं है, क्योंकि अंतिम क्षण में परमात्मा का स्मरण उसी के लिए संभव है, जिसने जीवनभर निष्काम कर्म और भक्ति का अभ्यास किया हो. प्रवचन में उन्होंने कहा कि कोई व्यक्ति अच्छा है या बुरा, इसके लिए कोई और नहीं बल्कि वह स्वयं जिम्मेदार होता है, क्योंकि हमारे कर्म ही हमारे भविष्य का निर्धारण करते हैं. उन्होंने कहा कि निःस्वार्थ भाव से ईश्वर को समर्पित कर्म ही प्रभु को प्रिय होते हैं, जैसे यज्ञ में आहुति देते समय उच्चारित मंत्रों का उद्देश्य होता है कि यह आहुति केवल ईश्वर के लिए है, न कि हमारे स्वार्थ के लिए. स्वामी जी ने कहा कि कर्म का वास्तविक अर्थ है आत्मा के स्वरूप को पहचानकर सांसारिक इच्छाओं से स्वयं को मुक्त करना, जो भी व्यक्ति प्रयाण काल में ‘ॐ’ का जप करता हुआ प्रभु को स्मरण करता है, वह जन्म-मृत्यु के बंधन से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त करता है. भगवान श्रीकृष्ण ने स्पष्ट कहा है कि जो शरणागत होकर मेरी भक्ति करता है, उसे पुनर्जन्म नहीं लेना पड़ता और वह परम सिद्धि को प्राप्त करता है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है