रांची. पूर्व जिला एवं सत्र न्यायाधीश तथा उत्तर प्रदेश के राज्यपाल के पूर्व विधिक सलाहकार न्यायमूर्ति एसएस उपाध्याय ने कहा कि न्याय ही निर्णय की आत्मा है. जिस प्रकार आत्मा के बिना शरीर मृत हो जाता है, उसी प्रकार न्याय के बिना कोई भी निर्णय निष्प्राण हो जाता है. उन्होंने कहा कि श्रीराम का जन्म त्रेता युग में राज परिवार रघुकुल में हुआ था, लेकिन उनकी न्याय प्रणाली लोकतांत्रिक थी. श्रीराम के निर्णय में पारदर्शिता थी. वे शनिवार को राजकीय शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय कांके और पिस्का मोड़ में भगवान श्रीराम के युग में न्याय नीति विषय पर आयोजित संवाद में बोल रहे थे. उन्होंने अपनी पुस्तक ग्लोबल राम का भी उल्लेख किया, जिसमें भगवान श्रीराम की न्याय प्रणाली का वैश्विक परिदृश्य में विश्लेषण किया गया है. रांची विवि हिंदी विभाग के पूर्व अध्यक्ष डॉ जंग बहादुर पांडेय ने कहा कि राजा राम की न्याय व्यवस्था निष्पक्ष, पारदर्शी और तटस्थ थी. गलती करने पर उन्होंने अपने प्रिय अनुज लक्ष्मण को राज्य से बहिष्कृत कर दिया था और लोक की आराधना के लिए जानकी तक का परित्याग कर दिया था. कार्यक्रम की अध्यक्षता राजकमल सरस्वती विद्या मंदिर धनबाद के संस्थापक प्राचार्य डॉ बसुदेव प्रसाद व धन्यवाद ज्ञापन डॉ प्रशांत गौरव ने किया. कैंब्रियन पब्लिक स्कूल के विनोद गेहरवार ने मां सरस्वती की वंदना की. कार्यक्रम में डॉ हीरानंदन प्रसाद, डॉ चंद्रमणि किशोर, डॉ ओमप्रकाश आदि उपस्थित थे. उक्त विषय पर डॉ जंग बहादुर पांडेय के पिस्का मोड़ स्थित आवास पर भी विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया. इस अवसर पर बालक अन्वित ओझा ने दिनकर की रश्मि रथी के तृतीय सर्ग का पाठ कर सबका मन मोह लिया. अतिथियों का स्वागत डॉ तारामणि पांडेय व संचालन डॉ ओमप्रकाश ने किया.
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