रांची. राज्य के सबसे बड़े अस्पताल रिम्स में पारा मेडिकल के विभिन्न कोर्स संचालित किये जाते हैं. विद्यार्थियों का नामांकन जेसीइसीइ की परीक्षा में सफल होने और कट ऑफ मार्क्स के आधार पर होता है. हर साल 250 छात्र-छात्राओं का नामांकन दो साल के कोर्स में होता है. यानी 500 विद्यार्थी कोर्स करते हैं. वहीं, एक साल की इंटर्नशिप भी होती है. यानी करीब 750 विद्यार्थी पारा मेडिकल में रहते हैं. हालांकि इन विद्यार्थियों के लिए रिम्स परिसर में रहने के लिए हॉस्टल नहीं है. ऐसे में छात्र-छात्राओं को रिम्स से बाहर कमरा लेकर रहना पड़ता है.
अस्पताल से छात्राओं को देर शाम तक लौटना पड़ता है
इधर, कोर्स में प्रशिक्षण का कार्य भी पढ़ाई के साथ-साथ चलता है. इनका प्रशिक्षण ओपीडी, जांच घर, और वार्ड में दिया जाता है. इसके लिए छात्र-छात्राओं को देर शाम तक अस्पताल में रहना पड़ता है. इससे छात्राओं को परेशानी होती है. शाम में मनचलों द्वारा छेड़खानी भी की जाती है. हालांकि हॉस्टल के लिए रिम्स स्टूडेंट एंड वेलफेयर द्वार शासी परिषद की 59 वीं बैठक में मुद्दा रखा गया था. जीबी में बताया गया था कि 300 बेड के ब्वॉयज और 300 बेड के गर्ल्स हॉस्टल के लिए जगह चिह्नित कर नक्शा भी पास कराया गया था, लेकिन, समिति के सदस्यों ने इसे री-डेवलपमेंट योजना में लाने के लिए कहते हुए अस्वीकृत कर दिया. इस साल भी नये सत्र के लिए विद्यार्थियों का नामांकन होना है, जिसमें 250 विद्यार्थी आयेंगे.तीन साल पहले विद्यार्थियों ने किया था आंदोलन
रिम्स में पारा मेडिकल कोर्स 13 साल से संचालित हो रहा है. हॉस्टल की समस्या को लेकर तीन साल पहले विद्यार्थियों ने धरना दिया था. हॉस्टल नहीं होने से असुरक्षित महसूस होने की शिकायत प्रबंधन से की गयी थी. हॉस्टल नहीं होने से कई तरह की परेशानी से अवगत कराया गया था. कमरा के लिए अनावश्यक रूम भाड़ा देने की जानकारी भी दी थी. जिसके बाद प्रबंधन ने इसके समाधान का आश्वासन दिया था.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है