दिव्यता का स्पर्श है देवघर का बाबा बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग
::: बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग पर महाधिवक्ता राजीव रंजन ने लिखी पहली पुस्तक, जल्द होगा लोकार्पण
::: छह चैप्टर में 300 पृष्ठों की यह पुस्तक ऐतिहासिक, सांस्कृति, धार्मिक और वैधानिक पहलुओं को समेटे हुए है.
:::: बाबा बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग पर पहली विधिवत शोधपरक पुस्तक
रांची. देवघर में शिव लिंग एक ज्योतिर्लिंग है. बाबा बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग, जो राणेश्वर ज्योतिर्लिंग के नाम से भी जाना जाता है. वह दिव्यता का स्पर्श है. भगवान शिव के सबसे पवित्र स्वरूपों में से एक शिव लिंग, महादेव का प्रतीक है, जो देवताओं के देवता हैं, ब्रह्मांडीय चेतना और ऊर्जा का प्रतीक हैं. देवों के देव महादेव ब्रह्मांड के सर्वोच्च निर्माता और पालनकर्ता हैं. देवघर के बाबा बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग की ऐतिहासिकता, सांस्कृतिक, धार्मिक और वैधानिक पहलुओं को समेटते हुए झारखंड हाइकोर्ट के वरीय अधिवक्ता और महाधिवक्ता राजीव रंजन ने पहली पुस्तक ए टच ऑफ द डिवाइन (दिव्यता का स्पर्श) लिखी है. छह चैप्टर में 300 पृष्ठों की यह पुस्तक अपनी ओर खिंचती है. पुस्तक रोचक होने के साथ-साथ ज्ञानवर्द्धक बन पड़ी है. बाबा बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग ए टच ऑफ द डिवाइन पुस्तक का लोकापर्ण जल्द होगा. पुस्तक के लेखक महाधिवक्ता राजीव रंजन ने बाबा बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग पर विस्तार से प्रकाश डाला है. उन्होंने लिखा है कि यह आश्चर्य की बात नहीं है कि विशाल ब्रह्मांड का निर्माता एक मंदिर के गर्भगृह में कैसे निवास कर सकता है, जो 20 फीट x 20 फीट जितनी छोटी जगह में सीमित है, जहां एक साधारण व्यक्ति भी एक घंटे के लिए भी रहने में घुटन महसूस करेगा. वह धूप, जल, तेल और फूलों के प्रसाद और अनुष्ठानों से अभिभूत होगा. इसलिए, सवाल यह होगा कि क्या सर्वोच्च प्राणी जो निराकार और अनंत है, वास्तव में यहां निवास करता है? हमें यह समझना चाहिए कि ””””लिंग”””” लिंग का प्रतिनिधित्व नहीं करता है, जैसा कि गलत तरीके से दावा किया जाता है. भारतीय दर्शन गहरा और जटिल है, खासकर उन लोगों के लिए जो इसकी परंपराओं और रीति-रिवाजों से दूर हैं और जो इसे समझने के लिए सबसे कम योग्य हैं और इस प्रकार इसके सार को समझने के लिए आवश्यक पृष्ठभूमि का अभाव है. स्वामी विवेकानंद ने अगस्त 1900 में धर्म सम्मेलन के दौरान दिये गये अपने संबोधन में अथर्ववेद के एक श्लोक का हवाला देते हुए शिव लिंग को परिभाषित किया, जो अथर्ववेद के 10 कांड के सात सूक्त के 35वें श्लोक में पाये गये युगस्तंभ की बात करता है.बाबा बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग ऊर्जा का एक शक्तिशाली स्रोत
शिव लिंग ऊर्जा और चेतना के अनंत रूप का प्रतिनिधित्व करता है और वह केंद्रीय आकृति है, जिसके चारों ओर देवघर में सब कुछ घूमता है, जहां बाबा बैद्यनाथ का ज्योतिर्लिंग विद्यमान है. देवघर शहर में प्रवेश करते ही कोई व्यक्ति ऊर्जा और उसके कंपन को महसूस कर सकता है.””””शिव पुराण”””” में इसे बैद्यनाथ चिता-भूमौ के रूप में वर्णित किया गया है, अर्थात बैद्यनाथ भगवान शिव के श्मशान में स्थित है. देवघर के मंदिर में केवल एक यात्रा ही किसी को यह विश्वास दिलाने के लिए पर्याप्त है कि बाबा बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग ऊर्जा का एक शक्तिशाली स्रोत हैं. देवघर न केवल देवताओं का घर है, बल्कि इसे हरदपीठ, रावणवन, केतकी-वन, हरीतिकी-वन और बैद्यनाथ के रूप में भी जाना जाता है. जब कोई भगवान शिव बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग के गर्भगृह में प्रवेश करता है, तो उसका उद्देश्य वहां निवास करनेवाले भगवान की खोज करना नहीं होता, बल्कि कंपन और ऊर्जा को महसूस करना होता है, अपने भीतर की चेतना और ऊर्जा को ऊपर उठाना होता है और उसे ब्रह्मांड की ब्रह्मांडीय चेतना और ऊर्जा के साथ जोड़ना होता है.शिव और शक्ति की एक साथ पूजा
अद्वैत दर्शन में भी चेतना और ऊर्जा एक ही हैं. दोनों हमारे भीतर हैं. कोई भी व्यक्ति देवघर यानी कंपन के केंद्र बाबा बैद्यनाथ के मंदिर में ब्रह्मांड की ब्रह्मांडीय ऊर्जा के साथ एक होने और इसकी असीम व असीम ऊर्जा को पहचानने के लिए जाता है. तंत्र की पूजा परंपरा भी इसे स्वीकार करती है. शक्ति की पूजा के साथ-साथ यह शैव पूजा और शाक्त पूजा का भी शुद्ध रूप है, शिव और शक्ति की एक साथ पूजा. यह शक्तिशाली ऊर्जा हमारे भीतर है. चेतना भी हमारे भीतर है. हम एक ही हैं और जिस क्षण हमारी चेतना उस स्तर तक ऊपर उठती है, वह ब्रह्मांड की ऊर्जा यानी ब्रह्मांडीय ऊर्जा के साथ जुड़ जाती है जो शिव लिंग ज्योतिर्लिंग है. बैद्यनाथ का शिव लिंग ज्योतिर्लिंग एक ही काले पत्थर से बना है, जो पिछले कुछ वर्षों में थोड़ा दबा हुआ और अवतल जैसा हो गया था. काले पत्थर के शिवलिंग के अवतल रूप को हालांकि एक अतिरिक्त जोड़ द्वारा संशोधित किया गया था जैसा कि हम आज, वर्ष 1947 में देखते हैं, इसकी भव्यता और शक्ति लाखों लोगों को देवघर बाबा के मंदिर में खींचती है, जो जाति, पंथ या धर्म की परवाह किये बिना सभी के लिए खुला है.…और क्या है पुस्तक में खास
अथर्ववेद, शिवपुराण, मत्स्य पुराण, स्कंद पुराण सहित कई ग्रंथों में बाबा बैद्यनाथ का उल्लेखपुस्तक के दूसरे चैप्टर में देवघर के बारे में विस्तार से चर्चा की गयी है. 1983 में जिला बनने से लेकर उसकी पाैराणिकता का भी वर्णन किया गया है, जबकि तीसरे चैप्टर में पैराणिक और ऐतिहासिक तथ्यों का उल्लेख है. कहा गया है कि 1860 के जेडी बेगलर की रिपोर्ट में बाबा बैद्यनाथ का वर्णन है. 1901 के ब्रेडली, 1838 में मांडगो मेरिन मार्टिन, सर विलियम विलसन हंटर 1868 में बाबा बैद्यनाथ पर रिपोर्ट की थी. मत्स्य पुराण, शिव पुराण, स्कंद पुराण में बाबा बैद्यनाथ का वर्णन मिलता है. बाबा बैद्यनाथ का ज्योतिर्लिंग देवघर में है. शिव पुराण में कहा गया है ज्योतिर्लिंग चिता भूमि (देवघर) में है. यहां सती का हृदय गिरा था. इसलिए इसे हृदयपीठ भी कहते हैं. पूर्वोतरे प्रज्वलिका निधाने सदा वसंत गिरजा समेतम.अंतिम चैप्टर में बाबा की पूजा पद्धति की रोचक जानकारी का वर्णन
चतुर्थ चैप्टर में बाबा मंदिर के बारे में वर्णन है. प्राचीन से लेकर वर्तमान में मंदिर की स्थिति, दुलर्भ चित्रों का संकलन पुस्तक में दिखता है. पांचवें चैप्टर में 1596 से चली आ रही सरदार पंडा प्रथा का जिक्र है. इस प्रथा को हटाने के लिए 1897 में वर्दमान कोर्ट में केस दायर हुआ था. जज योगेश चंद्र मित्तल ने 1901 में फैसला दिया था. बाबा मंदिर के संचालन के लिए योजना बनाया. सरदार पंडा काैन होगा. विवाद होने पर कैसे उसका समाधान होगा, इसे भी तय किया गया था. हाइकोर्ट का फैसला आने के बाद अब बाबा बैद्यनाथ मंदिर श्राइन बोर्ड बन गया. पुस्तक में कोर्ट के फैसलों को भी दर्शाया गया है. छठे व अंतिम चैप्टर में बाबा बैद्यनाथ की पूजा पद्धति का जिक्र है. सुबह चार बजे और सावन में तीन बजे सुबह पूजा शुरू होती है. सरदार पंडा पूजा कराते हैं. कब-कब काैन-सी पूजा होती है, इसका पूरा वर्णन है. कुल मिलाकर यह पुस्तक ए टच ऑफ द डिवाइन में ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, धार्मिक व बाबा मंदिर से जुड़े वैधानिकता समाहित है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है