रांची. वित्त मंत्री राधाकृष्ण किशोर ने झारखंड शिक्षक पात्रता परीक्षा (जेटेट) में जिलावार जनजातीय व क्षेत्रीय भाषाओं की अनिवार्यता पर सवाल उठाये हैं. जिला के आधार पर भाषा के निर्धारण में हुई गलतियों की ओर सरकार का ध्यान खींचा है. श्री किशोर ने पलामू और गढ़वा जिले के लिए तय की गयी भाषा को लेकर सीएम हेमंत सोरेन को पत्र लिखा है. उन्होंने पलामू और गढ़वा जिले के लिए भोजपुरी को शामिल करने की मांग रखी है. उन्होंने कहा कि पलामू और गढ़वा जिले की जनजातीय भाषा के रूप में कुडुख और क्षेत्रीय भाषा के लिए नागपुरी तय करना सही नहीं है. नियमावली में सुधार होना चाहिए.
पलामू और गढ़वा में
कुडुखभाषा का कम होता है प्रयोग
वित्त मंत्री ने सीएम को लिखे पत्र में कहा है कि शिक्षक पात्रता के लिए वहां की स्थानीय भाषा को अनिवार्य किया गया है. पलामू सहित कई जिलों में स्थानीय भाषा की अनिवार्यता है. इन जिलों में नागपुरी, कुडुख, खड़िया, मुंडारी, खोरठा, बांग्ला और कुरमाली आदि भाषाओं की जानकारी होना अनिवार्य होगा. श्री किशोर ने कहा है कि नागपुरी एक इंडो-आर्यन भाषा है. इसे सादरी के रूप में जाना जाता है. इसकी अपनी कोई लिपि नहीं है. यह झारखंड, छत्तीसगढ़ और ओडिशा में बोली जाती है. उन्होंने कहा है कि जहां तक पलामू और गढ़वा का सवाल है, पात्रता परीक्षा में कुडुख भाषा को अनिवार्य करना विवेकपूर्ण निर्णय नहीं होगा. दोनों ही जिलों में कुडुख भाषा का प्रयोग बहुत कम होता है.
सामान्य क्षेत्र के लिए नागपुरी भाषा की अनिवार्यता पर सवाल
सामान्य क्षेत्र के लिए नागपुरी भाषा की अनिवार्यता पर भी मंत्री ने सवाल उठाये. उन्होंने कहा कि इन दोनों जिलों में नागपुरी लिपि का प्रयोग देवनागरी लिपि में करते हैं. वैसे भी दोनों जिलों में हिंदी और भोजपुरी भाषा का ही प्रयोग होता है. वित्त मंत्री श्री किशोर ने मुख्यमंत्री से आग्रह किया है कि भाषा के निर्धारण में देवनागरी का स्पष्ट उल्लेख हो और भोजपुरी भाषा को शामिल करें.
डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है