रांची (संवाददाता). झारखंड के 32 आदिवासी समुदायों की आदिवासी प्रतिनिधिसभा का आयोजन सोमवार को पुराना विधानसभा स्थित विधायक क्लब में हुआ. इसका आयोजन आदिवासी क्षेत्र सुरक्षा परिषद्, दरबार और आदिवासी समन्वय समिति द्वारा किया गया. इस दौरान आदिवासियों के 32 मुद्दों पर चर्चा करने के बाद कई प्रस्ताव भी पारित किये गये. कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए बिहार विधानसभा के पूर्व उपाध्यक्ष देवेंद्रनाथ चांपिया ने कहा कि यह सही मायने में 32 आदिवासी समुदायों की विधानसभा है. यह आदिवासी समाज रूढ़ि-प्रथा से सुसज्जित है. इन्हीं विशेषताओं के कारण ब्रिटिश हुकूमत ने आदिवासी क्षेत्रों को नाॅन रेग्यूलेशन एरिया घोषित किया है. पूर्व विधायक सूर्य सिंह बेसरा ने कहा कि हम भारत देश के आदिवासी प्रथम भूमिपुत्र हैं, लेकिन भारत सरकार ने संयुक्त राष्ट्र में कहा था कि भारत में आदिवासी नहीं हैं. अब तो सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है कि आदिवासी ही भारत देश के मालिक हैं. पूर्व विधायक लोबिन हेंब्रम ने कहा कि झारखंड के सभी आदिवासी मुख्यमंत्री, मंत्री व विधायक सिर्फ नाम के हैं. जेपीआरए 2001 और नगरपालिका कानून 2011 झारखंड के अनुसूचित क्षेत्रों में नहीं चलेगा. आदिवासी क्षेत्र सुरक्षा परिषद् के अध्यक्ष ग्लैडसन डुंगडुंग ने कहा कि झारखंड के अनुसूचित क्षेत्रों में विगत 24 वर्षों से असंवैधानिक तरीके से झारखंड पंचायत राज अधिनियम 2001 एवं नगरपालिका अधिनियम 2011 लागू है. संवैधानिक कानून पेसा अधिनियम 1996 लागू नहीं होना आदिवासियों के लिए दुर्भाग्य है. आदिवासी समन्वय समिति के संयोजक लक्ष्मी नारायण मुंडा ने कहा कि झारखंड विधानसभा विगत एक महीने से चल रही है, लेकिन उसमें आदिवासी मुद्दों पर कोई चर्चा नहीं है, इसलिए आदिवासी प्रतिनिधिसभा आयोजित कर उसमें आदिवासी मुद्दों पर चर्चा हो रही है. पड़हा राजा सनिका भेंगरा ने कहा कि जब हमारी सरकार हमारी बात नहीं सुनती है तो फिर हमारे पास उलगुलान करने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचता है. मौके पर पड़हा राजा सनिचारय सांगा, जनार्दन मानकी, सुषमा बिरूली, अधिवक्ता सुरेश सोय सहित अन्य लोगों ने भी विचार रखे.
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