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Ranchi News : शिक्षाविद और मानवशास्त्री डॉ करमा उरांव को श्रद्धांजलि दी गयी

शिक्षाविद डॉ करमा उरांव की दूसरी पुण्यतिथि पर बुधवार को उन्हें श्रद्धांजलि दी गयी. श्रद्धांजलि कार्यक्रम मोरहाबादी स्थित जनजातीय शोध संस्थान के सभागार में हुआ.

रांची (संवाददाता). शिक्षाविद और मानवशास्त्री डॉ करमा उरांव की दूसरी पुण्यतिथि पर बुधवार को उन्हें श्रद्धांजलि दी गयी. धर्मेंश उरांव मेमोरियल फाउंडेशन के तत्वावधान में यह श्रद्धांजलि कार्यक्रम मोरहाबादी स्थित डॉ रामदयाल मुंडा जनजातीय शोध संस्थान के सभागार में हुआ. इस अवसर पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता बंधु तिर्की ने कहा कि डॉ करमा उरांव गुमला के बिशुनपुर स्थित एक गांव से निकल कर रांची आए. यहां उन्होंने पढ़ाई की. शिक्षा के क्षेत्र में उनका बड़ा योगदान रहा. दूसरी ओर वे सामाजिक क्षेत्र में भी काफी सक्रिय रहे. कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे साहित्यकार महादेव टोप्पो ने कहा कि डॉ करमा उरांव शिक्षाविद होने के अलावा समाजसेवी, बुद्धिजीवी और आदिवासी भाषा संस्कृति के लिए काम करनेवाले व्यक्ति थे. सरहुल पूर्व और करमपूर्व संध्या समारोहों में निकलनेवाली पत्रिका के लेखकों को वो काफी प्रोत्साहित करते थे. जुझारूपन उनके व्यक्तित्व का हिस्सा था. अपनी बातों और सिद्धांतो पर वो हमेशा अडिग रहे. अब उनके बिना सरहुल पूर्व और करम पूर्व संध्या समारोह सूना लगता है. सेवानिवृत पुलिस अधिकारी रेजी डुंगडुंग ने कहा कि डॉ करमा उरांव सिर्फ आदिवासी समाज के लिए नहीं बल्कि सभी समाजों के लिए सोचते थे. वो हमेशा युवाओं को प्रोत्साहित करते थे. अपने विचारों से वे प्रगतिशील विचारों के थे. जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग के डॉ हरि उरांव ने कहा कि डॉ करमा उरांव विलक्षण प्रतिभा के धनी थे. रांची विश्वविद्यालय में आकर उन्होंने पहली बार छात्र संघ को जनता के बीच पहुंचाया. वे समाज के सभी वर्गों के बीच समान रूप से लोकप्रिय थे. उन्होंने 40 देशों की यात्राएं की और विभिन्न सेमिनारों में अध्यक्षता की. रांची विश्वविद्यालय के सेवानिवृत कुलपति प्रो डॉ रमेश कुमार पांडे ने कहा कि जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग का वर्तमान स्वरूप डॉ करमा उरांव की ही देन है. अभय सागर मिंज ने कहा कि डॉ करमा उरांव की उपलब्धियों के मद्देनजर उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया जाना चाहिए. पूर्व मंत्री गीताश्री उरांव, परमेश्वर भगत सहित अन्य लोगों ने भी संबोधित किया. मंत्री शिल्पी नेहा तिर्की ने भी डॉ करमा उरांव को श्रद्धांजलि दी. उन्होंने कहा कि समाज में उनका काफी बड़ा योगदान था. कम संसाधन में अपने मुकाम को कैसे हासिल किया जा सकता है, इसके वह उदाहरण थे. प्रोफेसर होने के बाद भी वे सामाजिक मुद्दों पर हमेशा मुखर रहे.

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