रांची. एआइ यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस हमारे लिए नयी चुनौती है. इस एआइ वर्ल्ड में अपनी शिक्षण प्रणाली को एआइ के अनुरूप कैसे बनायें, यह जिम्मेवारी शिक्षकों की है. स्कूलों में बोर्ड को स्मार्ट नहीं, बल्कि टीचर्स को क्लास रूम में खुद स्मार्ट बनना पड़ेगा. ये बातें सीयूजे के प्रोफेसर डॉ विमल कृष्ण ने कहीं. वह शनिवार से बेथेसदा बीएड कॉलेज में शुरू हुए दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार में बतौर मुख्य वक्ता बोल रहे थे. सेमिनार का विषय हार्मोनाइजिंग सस्टेनेबल डेवलपमेंट एंड एजुकेशनल एक्सीलेंस इन एन एआइ-ड्रीवन वर्ल्ड है.
शिक्षा का उद्देश्य ग्लोबल लाइन पर होना चाहिए
डॉ विमल ने आगे कहा कि शिक्षा का उद्देश्य ग्लोबल लाइन पर होना चाहिए. हमें टीचिंग एडवांस्मेंट लानी होगी. बच्चों का एसेसमेंट भी हमें करना होगा. उन्हें उसके अनुसार खुद को तैयार करना होगा. ये सभी काम एक शिक्षक के हैं. ऐसे में शिक्षकों को भी अपग्रेड होना पड़ेगा, उन्हें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से किस तरह से सवाल पूछने हैं, इसके लिए अपने भीतर क्रेडिबिलिटी लानी होगी.
एआइ के साथ सामंजस्य बनाकर देनी होगी शिक्षा
मौके पर रांची विवि के कुलपति डॉ अजीत कुमार सिन्हा ने शिक्षा में हो रहे बदलाव व देश के भविष्य में शिक्षकों के योगदान की महत्ता पर प्रकाश डाला. उन्होंने एआइ के साथ सामंजस्य स्थापित कर शिक्षा प्रदान करने की बात की. इस दौरान डॉ संजय भुइयां ने सामाजिक, आर्थिक व पर्यावरण में हो रहे विकास पर बातें रखीं. सेमिनार के पहले दिन कुल 20 शोधार्थियों ने अपने शोध पत्र पेश किये. वहीं, 14 शोधार्थियों ने पोस्टर प्रेजेंट किये. इस अवसर पर कॉलेज की पत्रिका का भी लोकार्पण किया गया. मौके पर आइडी कंडूलना, डॉ वीणा तिरू व डॉ दीपशिखा बाखला सहित कॉलेज की छात्राएं और शिक्षक मौजूद थे.
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