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Explainer: सावन में उफान पर रहती थीं झारखंड की ये नदियां, आज क्यों पड़ी है सूखी, जानें वजह

गर्मी के वक्त नदियों का पानी घटने के कारण उनमें प्रवाह कम होने की प्रवृत्ति देखी जाती थी, लेकिन बरसात के दिनों में ऐसा कभी नहीं देखा गया था. वह भी खासतौर पर तब, जब सावन का महीना हो और नदियां सूखी पड़ी हो, ऐसा कभी नहीं हुआ. झारखंड की नदियों का इस कदर सूख जाना, आने वाले वर्षों में खतरे का संकेत है.

Jharkhand Rivers Endangered: गर्मी में नदियों का सूखना तो आम बात है, लेकिन आप यह जानकर हैरान हो जाएंगे कि झारखंड में कई ऐसी नदियां हैं, जो बरसात में भी सूखी पड़ी हैं. सावन में जो नदियां उफान पर रहती थीं, वह आज पक्षियों के प्यास बुझाने के लायक भी नहीं बची है. सावन और मानसून के दौरान भी लोगों को पानी के लिए परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है.

पहले कभी नहीं हुआ ऐसा

गर्मी के वक्त नदियों का पानी घटने के कारण उनमें प्रवाह कम होने की प्रवृत्ति देखी जाती थी, लेकिन बरसात के दिनों में ऐसा कभी नहीं देखा गया था. वह भी खासतौर पर तब, जब सावन का महीना हो और नदियां सूखी पड़ी हो, ऐसा कभी नहीं हुआ. झारखंड की नदियों का इस कदर सूख जाना, आने वाले वर्षों में खतरे का संकेत है. झारखंड की प्रमुख नदियां भी अब नाले में तब्दील हो रही है. प्रकृति प्रेमी की ओर से भी नदियों का बचाने का आवाहन किया जा रहा है.

क्यों बरसात में भी सूखी पड़ी हैं झारखंड की नदियां

मानसून की बेरूखी और नदियों की स्थिति ने किसानों की चिंता बढ़ा दी है. मानसून के दौरान भी अच्छी बारिश नहीं होने और सावन के महीने में बारिश की वजाय तीखी धूप रहने से नदियों की स्थिति भयावह है. इसके अलावा भी कई कारक हैं, जो नदियों के सूखने की वजह बड़ी है. आइए जानते हैं कि आखिर क्या कारण है कि बरसात में भी नदियों में पानी नहीं है-

खेती के तरीके में बदलाव

बताया जाता है कि पिछले कुछ सालों में खेती के तरीके में काफी बदलाव आया है. जिसके कारण राज्य में पहले भू-जल लगभग 60 से 70 फीट पर था, लेकिन अब उन इलाकों में 200 फीट से भी अधिक गहरा बोरिंग करना पड़ रहा है. भू-जल स्तर कम होने की वजह से नदियों का जलचक्र भी प्रभावित हुआ है. यहां जितनी बारिश हो रही है वह भूमिगत जल को रिचार्ज करने के लिए पर्याप्त नहीं है.

नदियों से बालू का अंधाधुंध खनन

नदियों से अंधाधुंध बालू निकाला जा रहा है. इस वजह से नदी का प्राकृतिक प्रवाह अवरुद्ध हो गया. इसके अलावा भूमिगत जलस्तर कम हो रहा है. पर्यावरणविद् प्रोफेसर विमल किशोर सिंह ने बताया है कि भू-जल का दोहन बढ़ता ही जा रहा है और इसे रिचार्ज करने की व्यवस्था नहीं हो रही है. प्रशासन को इस तरफ भी प्रयास करना चाहिए. पौधरोपण और स्टॉपडेम बनाकर नदी को जीवित रखने के प्रयास करने की आवश्यकता है.

बालू ने नदी की वाटर कैपेसिटी को किया कम

विशेषज्ञों के अनुसार, झारखंड में नदियों से अवैज्ञानिक तरीके से बालू का खनन किया गया है. नदियों से बेहिसाब बालू के उठाव को कारण नदी में वाटर कैपेसिटी को कम हौो गई है. बालू के उठाव से नदियों के अधिकांश भागों में मिट्टी निकल आयी है और बालू नहीं रहने से वाटर रीचार्ज की क्षमता घट गयी. पानी की कमी से नदी के जलीय जीव-जंतु भी नष्ट हो गये हैं. साथ नदी का प्राकृतिक संतुलन भी बिगड़ा है.

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नदी की क्षमता घटने से नष्ट होंगे अन्य जलस्रोत

जल संसाधन विभाग के शोध के अनुसार, साल भर में होने वाली कुल बारिश का कम से कम 31 प्रतिशत पानी धरती के भीतर जमा होना चाहिए, तभी संबंधित क्षेत्र की नदियों, जल स्रोतों आदि में पर्याप्त पानी रहेगा. वहीं बारिश नहीं होने के कारण नदी के नीचे भी पानी सूख रहे हैं. मानसून में भी अगर नदियों में निरंतर पानी का बहाव नहीं रहा, तो आसपास के तालाब, कुआं सहित अन्य जलस्रोत धीरे-धीरे नष्ट हो जायेंगे. विशेषज्ञों के अनुसार, नदियों में बालू की वजह से बारिश के बाद जलस्तर लंबे समय तक बना रहता है, जिससे आसपास के जलस्रोत को भी पानी मिलता है. नदियों के सूखने से सिंचाई, पेयजल व अन्य जलापूर्ति का भी काम प्रभावित होने लगा है.

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झारखंड की प्रमुख नदियों में पतली धार

झारखंड की प्रमुख नदियां जैसे- स्वर्णरेखा, दामोदर, मयुराक्षी, कोयल नदी, अजय नदी, डढ़वा नदी, पतरो नदी, चांदन नदी, मोतिहारा, सिद्धेश्वरी, पुसारो सहित आदि जो पानी के मामले में समृद्ध माना जाता है, लेकिन अब यह नदियां भी सूख रही है. बड़ी-बड़ी नदियों में भी केवल पतली धार दिख रही है. वह भी बारिश होने के चंद घंटे बाद या दूसरे दिन तक दिखती है, नहीं तो रेत ही रेत या मिट्टी ही नजर आती है. जलस्तर कम रहने की वजह से पेयजलापूर्ति की योजनाओं में भी कई बार दिक्कतें आ चुकी हैं. अजय नदी के नवाडीह घाट से इस मानसून में भी चैनल काटकर जलापूर्ति हो रही है. बरसात के मौसम में नदी का जलश्रोत कम रहने से किसानों के साथ साथ ग्रामीणों को भी चिंता सताने लगी है.

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  • देवघर, दुमका, गोड्डा, जामताड़ा और अन्य जिलों की जिन नदियों का ऊपरी सतह का जलस्तर हमेशा दो से तीन फीट पूरे नदी में रहता था और पानी का बहाव भी रहता था. चांदन नदी में एक बूंद पानी तक नहीं है. अजय नदी में तो इस बरसात में पानी के अभाव में बड़े-बड़े घास उग आये हैं.

  • गोड्डा जिले में छोटी-बड़ी 12 नदियां हैं. प्राय: सभी नदियां बरसाती है. सावन के मौसम में जुलाई महीने में गोड्डा की नदियां उफान पर रहा करती थी लेकिन इस साल मानसून के बेरूखी के कारण नदियों में पक्षियों के प्यास बुझाने लायक ही पानी है.

  • गेरुआ नदी बसंतराय से होकर महागमा होते हुए कहलगांव में गंगा की सहायक नदी के रूप में मिलती है. इस नदी से झारखंड और बिहार के किसानों को खेती में सिंचाई की सुविधा मिलती थी, आज इस नदी में भी नाम मात्र का ही पानी है.

  • सुंदर नदी की बात करें तो पथरगामा व बसंतराय से बहकर गेरुआ नदी में मिलती है. यह नदी भी पानी के लिए तरस रहा है.

  • मेहरमा प्रखंड की ढोलिया नदी राजमहल पहाड़ियों से निकलकर ठाकुर गंगटी व मेहरमा होते हुए गेरुआ नदी में जाकर मिलती है. यह नदी जिले की सबसे गहरी नदी के रूप में जाना जाता है. इस नदी में भी नाम मात्र का ही पानी है.

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  • ठाकुर गंगटी की झमरिया नदी भी बरसात में आक्रामक स्थिति में रहने वाली नदी की तरह है, मगर अभी नदी में पानी का बहाव गर्मी के मौसम की तरह ही दिख रहा है.

  • वहीं बसंतराय प्रखंड के अलावा महागामा में बहने वाली ऐंचा नदी आज मैदानी भूभाग में तब्दील है. कुल मिलाकर देखा जाये तो गोड्डा जिले की 12 नदियों में एकाध को छोड़ दें तो शेष सभी नदियां सूख गयी हैं.

  • अमूमन दुमका जिले में जुलाई महीने में सभी छोटी बड़ी नदियों का जलस्तर बढ़ा हुआ रहता है. इधर एक पखवारे से भी ज्यादा समय तक भारी बारिश नहीं होने से नदियों का जलस्तर घट गया है.

  • रानीश्वर के इलाके में पटवन का एक बड़ा साधन नदी है. उससे संबंधित नहर है. नदी का जलश्रोत कम रहने से नदी से पंप लगाकर भी किसान खेती नहीं कर पा रहे है.

  • सिद्धेश्वरी नदी के भरोसे नदी किनारे दर्जनों गांवों के लोग निर्भर है. सिंचाई के लिए पानी का उपयोग करने के साथ साथ मवेशियों को पानी पिलाने, स्नान करने तथा कपड़ा साफ करने का काम आता है. ग्रामीणों को यह चिंता सता रही है कि बरसात के मौसम में नदी की यही स्थिति है तो ठंड व गर्मी के दिनों पानी के लिए हाहाकार मच जायेगा.

  • देवघर में महेशपुर प्रखंड के प्रमुख नदी बांसलोई नदी और पगला नदी सूख गयी है. प्रखंड की दो प्रमुख नदियां बांसलोई नदी और पगला नदी है. इन दिनों बांसलोई नदी नाले का रूप ले चुकी है. नदी में घना घास और पौधा उग चुका है. बांसलोई और पगला नदी में जगह-जगह जलजमाव भी हो गया है.

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मानसून की बेरूखी के कारण नदियां जलविहीन

बरसात में भी नदियों के सूखे रहने का सबसे बड़ा कारण है झारखंड में मानसून का कमजोर होना. मौसम विभाग के आंकड़ों के अनुसार, झारखंड में अब भी 49 प्रतिशत कम बारिश हुई है. जबकि, झारखंड में मानसून आये करीब एक माह हो गया है. इसके बावजूद अब सामान्य से आधा के करीब ही बारिश हो पायी है. एक जून से 28 जुलाई तक 245.8 मिमी बारिश हुई है. जबकि, इस समय सामान्य बारिश रिकॉर्ड 478.3 मिमी है.

अब तक चतरा में सबसे कम और साहिबगंज में सबसे अधिक बारिश

झारखंड के 24 जिलों में चतरा जिला में सबसे कम बारिश हुई है. यहां अब भी 79 प्रतिशत बारिश कम हुई है. उसके बाद जामताड़ा है, जहां 70 फीसदी कम बारिश हुई है. फिर गिडिडीह और धनबाद जहां 68 फीसदी कम बारिश हुई है. फिर लोहरदगा, जहां 64 प्रतिशत और लातेहार जहां अब तक 62 प्रतिशत कम बारिश हुई. इसी तरह राज्य के लगभग सभी जिलों में बारिश का प्रतिशत काफी कम है. जबकि, सबसे अधिक बारिश साहिबगंज में हुई है. हालांकि, वह भी सामान्य से कम ही है. साहिबगंज में सामान्य से 9 प्रतिशत कम बारिश हुई है. आज को भी कई जगहों पर रुक-रुक कर बारिश हुई है. उम्मीद की जा रही है कि झारखंड में मानसून के दोबारा सक्रिय होने के बाद बारिश की कमी दूर हो जाएगी और राज्य की नदियों में भी पानी जमा हो पाएगा. हालांकि, नदियों के सूखने के पीछे जो मानवीय कारक हैं, जैसे अंधाधुध खनन, बालू का अवैज्ञानिक तरीके से उठाव, खेती की तकनीक में बदलाव उसे हम मानव को ही सुधारना होगा.

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Jaya Bharti
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This is Jaya Bharti, with more than two years of experience in journalistic field. Currently working as a content writer for Prabhat Khabar Digital in Ranchi but belongs to Dhanbad. She has basic knowledge of video editing and thumbnail designing. She also does voice over and anchoring. In short Jaya can do work as a multimedia producer.

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