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मकर संक्रांति पर हजारों लोग सरायकेला के बोंबोगा नदी में लगायेंगे आस्था की डुबकी, महाभारत काल से जुड़ा है इतिहास

Makar Sankranti 2025: सरायकेला में बोंबोगा नदी के तट पर स्थित भीमखंदा में मकर संक्रांति के मौके पर अस्था की डुबकी लगाने के लिए हजारों की संख्या में लोग यहां जुटते हैं. दूसरे दिन यहां पर एक मेले का आयोजन होता है.

सरायकेला, (शचिंद्र कुमार दाश, ऋषि तिवारी) : सरायकेला-खरसावां जिले की माटी, संस्कृति और यहां का इतिहास काफी गौरवशाली रहा है. यहां महाभारत काल का विस्तृत उल्लेख मिलता है. जिला मुख्यालय सरायकेला से करीब 20 किमी की दूरी पर स्थित है राजनगर प्रखंड का भीमखंदा. बोंबोगा नदी के तट पर स्थित भीमखंदा में मकर संक्रांति के मौके पर अस्था की डुबकी लगाने के लिए हजारों की संख्या में लोग यहां जुटते हैं. लोग यहां स्नान कर शिव मंदिर में पूजा अर्चना करते हैं. कहा जाता है कि द्वापर युग में यहां पांडवों ने भगवान शिव की पूजा की थी. मान्यता है कि मकर संक्रांति के दिन यहां पूजा करने से पुण्य मिलता है. मकर संक्रांति के दूसरे दिन आखान यात्रा से यहां मेला का आयोजन होता है. बोंबोगा नदी की कल कल बहती धारा यहां आए लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती है.

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कई गहन रहस्यों को समेटे हुए है भीमखंदा

सरायकेला का भीमखंदा खुद में कई गहन रहस्यों को समेटे हुए हैं. इस जगह का संबंध महाभारत काल का जुड़ी हुआ है. गांव के बुजुर्ग और स्थानीय लोग इस स्थान पर पांडवों के ठहरने की बात करते हैं. ऐसी मान्यता है कि पांडवों ने पत्थरों के बीच चूल्हा बनाया, जिस पर द्रौपदी ने खाना बनाया था. यहां भीम के पैरों के निशान भी मौजूद है. सरकार के पर्यटन स्थलों में नामित इस जगह को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा रहा है.

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भीम के पांव के निशान लोगों की कौतुहल बढ़ाता है

भीमखंदा में पत्थरों के बीच बना छोटा चूल्हा और भीम के पांव के निशान और शिलालेख लोगों की कौतुहल बढ़ाता है. हालांकि, पत्थरों पर लिखे वाक्य को कोई पढ़ नहीं पाया है. रख-रखाव के अभाव में पत्थरों पर लिखे शब्द धीरे-धीरे मिटते जा रहे हैं.

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अर्जुन का पेड़ श्रद्धालुओं को आकर्षित करती है

भीमखंदा स्थित ‘श्री श्री एकता संकल्प वृक्ष’ (अर्जुन का पेड़ )श्रद्धालुओं को आकर्षित करती है. इस वृक्ष की दो शाखायें पुनः संयोजित होकर एक से तीन और दूसरी से दो उपशाखायें निकलती हैं. यह पांचों शाखाएं पांच पांडवों का और दो शाखाएं माता कुंती और माद्री का प्रतिनिधित्व करते हैं. यह वृक्ष पांडू पुत्रों के अटूट एकता का संकल्प को दर्शाता है.

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क्या है किवंदती ?

क्षेत्र में प्रचलित एक किंबदंती के अनुसार महाभारत काल में जब पांडव वनवास में थे, तब पांडव सरायकेला के मिर्गी चिंगडा होते हुए यहां पहुंचे थे. स्थानीय लोगों में ऐसी मान्यता है कि पांडवों ने यहां बोंबोगा नदी के तट पर विश्राम किया था. पंडावों ने अपने भोजन तैयार करने के लिए एक चूल्हा बनाया गया था. यह चुल्हा आज भी भीमखंदा में मौजूद हैं. मान्यता है कि भीम-हिडिंबा विवाह के दौरान यहां भोजन तैयार किया गया था.

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Sameer Oraon
Sameer Oraon
A digital media journalist having 3 year experience in desk

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