Rourkela News: ओडिशा में हर साल धूमधाम से मनाया जानेवाला तीन दिवसीय रजो पर्व (उत्सव) इस साल भी 13 जून से शुरू हो रहा है. इसके लिए शहरभर में तैयारियां शुरू कर दी गयी हैं. कुंआरी कन्याओं को समर्पित यह तीन दिवसीय उत्सव ओड़िशा में बड़े ही आनंद व उमंग के साथ मनाया जाता है. इस दिन घर की बालिकाएं, युवतियां और बड़ी-बूढ़ी महिलाएं मौज-मस्ती करतीं हैं. प्रत्येक वर्ष 14 से 16 जून तक ओडिशा में रजो उत्सव धूमधाम से मनाया जाता है. तीनों दिनों तक महिलाएं कोई काम नहीं करती हैं. खाना भी पुरुष ही बनायेंगे. महिलाएं नये-नये कपड़े व आभूषण पहनेंगी. झूला झूलेंगी और नाच-गान करेंगी.
भगवान सूर्यदेव की पूजा का है विशेष महत्व
मान्यता है कि जिस प्रकार महिलाओं का प्रतिमास मासिक धर्म होता है, जो उनके शारीरिक विकास का प्रतीक होता है. ठीक उसी प्रकार कुमारी कन्याओं के रजोत्सव का यह पर्व तीन दिनों तक आनंद-मौज के साथ ओडिशा में मनाया जाता है. इस दिन भगवान सूर्यदेव की पूजा का विशेष महत्व है. ऐसी मान्यता है कि इससे भावी लोक जीवन में शांति तथा अमन-चैन आता है. इस साल रज उत्सव को भव्य आकार देते हुए सिविल टाउनशिप के मॉडर्न फील्ड में आमो ओडिशा की ओर से आयोजन किया जायेगा. जिसमें ओडिशा के व्यंजनों की पूरी शृंखला प्रदर्शित की जायेगी. हनुमान वाटिका ट्रस्ट के पदाधिकारी शुभ पटनायक ने बताया कि ओडिशा की संस्कृति को साझा करने के मकसद से आयोजन किया जा रहा है. जिसमें विविध गतिविधियों को शामिल किया जा रहा है.
युवतियां नाच-गाना और मस्ती में बिताती हैं पूरा दिन
रजो उत्सव का अपना सामाजिक महत्व है. यूं तो यह पर्व कुंवारी कन्याओं के लिए होता है. लेकिन, इसे सभी उम्र की महिलाएं धूमधाम से मनाती हैं. पहली रज को घर की बालिकाएं, युवतियां, महिलाएं तथा बुजुर्ग महिलाएं दिनभर मिलकर मौज-मस्ती करतीं हैं. नाच-गान करती हैं. लूडो खेलती हैं. पान खाती हैं. झूला झूलती हैं. परंपरागत साड़ी और पहनावा धारण करती हैं. अपने हाथों में मेहंदी रचाती हैं. मान्यता कि जिस प्रकार धरती वर्षा के आगमन के लिए अपने आपको तैयार करती है, ठीक उसी प्रकार पहली रज को कुमारी कन्याएं अपने आपको तैयार करतीं हैं. सुबह उठकर अपने शरीर पर हल्दी-चंदन का लेप लगाती हैं. स्नान करती हैं. महाप्रभु श्री जगन्नाथ की पूजा करती हैं. साथ ही सुखमय जीवन के लिए भगवान जगन्नाथ से प्रार्थना करती हैं.
विशेष होता है खान-पान
रजो उत्सव में महिलाएं मौसमी फल कटहल का कोवा, आम, केला, लीची और अन्ननास का सेवन करती हैं. वे ओडिशा के परंपरागत भोजन पोड़ पीठा खाती हैं. पैरों में चप्पल तक नहीं पहनतीं. लगातार तीन दिनों तक घर में किसी प्रकार के काटने व छीलने का काम भी नहीं करती हैं. सबसे रोचक बात यह है कि इन तीन दिनों तक ओडिशा में धरती में कोई खुदाई का कार्य भी नहीं होता है.
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