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Rourkela News: एनआइटी की टीम ने औद्योगिक अपशिष्ट जल की सफाई को फोटोकैटलिटिक गोलाकार कंक्रीट बीड्स विकसित किया

Rourkela News: एनआइटी की शोध टीम ने औद्योगिक अपशिष्ट जल की सफाई को फोटोकैटलिटिक गोलाकार कंक्रीट बीड्स विकसित किया है.

Rourkela News: राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआइटी), राउरकेला की शोध टीम ने एक पुन: उपयोग योग्य फोटोकैटलिस्ट प्रणाली विकसित की है, जो प्राकृतिक सूर्य प्रकाश का उपयोग कर औद्योगिक अपशिष्ट जल की सफाई करने में सक्षम है. गोलाकार कंक्रीट मोतियों (बीड्स) पर आधारित यह नवीन तकनीक औद्योगिक अपशिष्ट से होने वाले जल प्रदूषण के लिए एक कम लागत और पर्यावरण के अनुकूल समाधान प्रदान कर सकती है. इस शोध के निष्कर्ष प्रतिष्ठित जर्नल ऑफ वाटर प्रोसेसिंग इंजीनियरिंग में प्रकाशित हुए हैं. यह शोध पत्र एनआइटी राउरकेला के बायोटेक्नोलॉजी और मेडिकल इंजीनियरिंग विभाग के प्रो शुभंकर पॉल, शोध स्नातक डॉ सोहेल दास और शोधार्थी उमा शंकर मंडल द्वारा सह-लेखित है. शोध टीम ने विकसित की गयी तकनीक पर दो पेटेंट भी दायर किये हैं, जिनका आविष्कार प्रो शुभंकर पॉल, उमाशंकर मंडल, आशुतोष सिंह और डॉ सोहेल दास द्वारा किया गया है.

वैश्विक चिंता का विषय है जल स्रोतों में रासायनिक अपशिष्ट का प्रवाह

जल स्रोतों में रासायनिक अपशिष्ट का प्रवाह एक वैश्विक चिंता का विषय है. वस्त्र, चमड़ा, पेंट, दवा और धातु प्रसंस्करण जैसे उद्योगों से निकलने वाले सिंथेटिक डाई और कार्बनिक कम्पाउंड जैसे हानिकारक रसायन जल स्रोतों के लिए गंभीर खतरा उत्पन्न करते हैं और मनुष्यों में कैंसर या अंगों में विषैलेपन का कारण बन सकते हैं. जहां एक ओर वैश्विक स्तर पर किफायती उत्प्रेरक (कैटेलिस्ट) या विधियां विकसित करने के प्रयास किये जा रहे हैं, वहीं अधिकतर प्रयास ऐसे उत्प्रेरक पदार्थों पर केंद्रित हैं, जो सूर्य के प्रकाश का उपयोग करके रासायनिक अभिक्रियाओं को संचालित करते हैं. हालांकि, अधिकांश फोटो कैटेलिस्ट को दोबारा उपयोग करना कठिन होता है, जिससे उन्हें बड़े पैमाने पर प्रयोग के लिए व्यावहारिक बनाना चुनौतीपूर्ण हो जाता है. इसके अतिरिक्त, इन उत्प्रेरकों को अभिक्रिया संचालित करने के लिए अल्ट्रावायलेट (यूवी) प्रकाश की आवश्यकता होती है, जिससे विशेष यूवी स्रोतों की जरूरत पड़ती है, जो प्रणाली की जटिलता और लागत को बढ़ा देती है.

एनआइटी की टीम ने निकाला समाधान

इन चुनौतियों से निबटने के लिए एनआइटी राउरकेला के शोधकर्ताओं ने प्रो एस पॉल के नेतृत्व में एक इनोवेटिव फोटोकैटलिस्ट प्रणाली विकसित की है. इस प्रणाली में आयरन-डोप्ड नैनो-टाइटेनिया (Fe-nTiO₂) को ग्रैफीन ऑक्साइड के साथ जोड़ कर विशेष रूप से डिजाइन किये गये गोलाकार कंक्रीट मोतियों पर स्थिर किया गया है. यह बीड्स कोयले की छाई (फ्लाई ऐश) से प्राप्त जिओलाइट का उपयोग कर ग्रीन कंक्रीट से बनाये गये हैं, जो औद्योगिक अपशिष्ट के पुनः उपयोग का एक सतत तरीका है और उच्च यांत्रिक मजबूती, छिद्रता तथा अवशोषण क्षमता प्रदान करता है. यह कंपोजिट सूर्य के प्रकाश का उपयोग करके अपशिष्ट जल में मौजूद विषैले प्रदूषकों को प्रभावी ढंग से तोड़ने में सक्षम है.

बड़े पैमाने पर अपशिष्ट जल के तेजी से उपचार का स्थायी समाधान दे सकती है तकनीक

विकसित फोटो कैटलिस्ट की व्यावहारिक उपयोगिता पर बात करते हुए एनआइटी राउरकेला के बायो टेक्नोलॉजी और मेडिकल इंजीनियरिंग विभाग के प्रो शुभंकर पॉल ने कहा कि जब इस प्रणाली का परीक्षण अत्यधिक रासायनिक ऑक्सीजन मांग (सीओडी) वाले कृत्रिम अपशिष्ट जल पर सूर्य प्रकाश की उपस्थिति में किया गया, तो इस सिस्टम ने सीओडी को 82 प्रतिशत से अधिक कम कर दिया, जो जल गुणवत्ता का एक प्रमुख सूचक है. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह फोटो कैटलिस्ट प्रणाली 15 बार पुनः उपयोग के बाद भी 90% से अधिक कार्यक्षमता बनाये रखने में सक्षम रही. प्रो पॉल ने यह भी बताया कि यह तकनीक बड़े पैमाने पर अपशिष्ट जल के तेजी से उपचार का स्थायी समाधान दे सकती है. विकसित किये गये फोटो कैटलिस्ट मोतियों को सूर्य प्रकाश के संपर्क में आने वाले अपशिष्ट जल भंडारण टैंक में डाला जा सकता है और जल शोधन की प्रक्रिया पूर्ण होने पर आसानी से निकाला जा सकता है. क्योंकि यह तकनीक किसी बाहरी ऊर्जा स्रोत पर निर्भर नहीं करती, इसलिए इसे ग्रामीण और संसाधन-सीमित क्षेत्रों में भी आसानी से उपयोग में लाया जा सकता है. विकसित की गयी तकनीक औद्योगिक अपशिष्ट, नगरपालिका अपशिष्ट जल और प्रदूषित प्राकृतिक जल स्रोतों के उपचार की क्षमता रखती है. जैसे-जैसे जल प्रदूषण को लेकर वैश्विक चिंताएं बढ़ती जा रही हैं, एनआइटी राउरकेला का यह नवाचार इस चुनौती का समाधान करने के लिए एक समयानुकूल और सतत प्रतिक्रिया प्रदान करता है.

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