Rourkela News: एनआइटी राउरकेला के योजना एवं वास्तुकला विभाग की ओर से 21-22 मार्च को ‘कारीगर शिल्प का रचनात्मक आर्थिक भूगोल : भारत में स्थान, संस्कृति और अर्थव्यवस्था के बीच तालमेल की जांच’ विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन हुआ. इस कार्यक्रम का उद्देश्य भारतीय कारीगर शिल्प की संपन्न दुनिया में स्थान, संस्कृति और अर्थव्यवस्था के महत्व का पता लगाना है. यह सम्मेलन भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद द्वारा वित्तपोषित एक चल रही शोध परियोजना का हिस्सा है.
कुल 37 सार आठ सत्रों में प्रस्तुति के लिए चुने गये
शुक्रवार को आयोजित उद्घाटन समारोह की शुरुआत संयोजक डॉ दीपांजन साहा के स्वागत भाषण से हुई, जिन्होंने बताया कि दो दिवसीय कार्यक्रम के दौरान आठ सत्रों में प्रस्तुति के लिए कुल 37 सार चुने गये हैं. प्रो साहा ने सम्मेलन के विषय पर प्रकाश डालते हुए कहा कि स्थान और शिल्प एक दूसरे को विकसित करते हैं, जिससे एक तालमेल बनता है, जो आर्थिक विकास में योगदान देता है. उद्घाटन सत्र में पद्मश्री अद्वैतचरण गड़नायक (कला की दुनिया में अपने उत्कृष्ट योगदान के लिए प्रसिद्ध एक प्रसिद्ध भारतीय मूर्तिकार) बतौर मुख्य अतिथि उपस्थित रहे. राष्ट्रीय ललित कला अकादमी पुरस्कार (1993) और ओडिशा ललित कला अकादमी पुरस्कार (1999) जैसे प्रतिष्ठित पुरस्कारों के प्राप्तकर्ता श्री गड़नायक ने कहा कि कला का सार कारीगर के हाथों में होता है. डिग्री व प्रोग्राम ज्ञान प्रदान करते हैं, लेकिन सच्ची कलात्मकता समर्पण, जुनून और शिल्प कौशल के अभ्यास से आती है. उन्होंने भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने और बढ़ावा देने के महत्व पर भी जोर दिया. कहा कि प्रत्येक शिल्प की अपनी अनूठी कथा होती है, एक विशिष्ट स्थान, उसके इतिहास, उसके भूगोल और उसके लोगों से जुड़ी होती है.
कला की रक्षा का गुण हमें अपने पूर्वजों से सीखना चाहिए : प्रो राव
एनआइटी राउरकेला के निदेशक प्रो के उमामहेश्वर राव ने भारतीय संस्कृति में कला के ऐतिहासिक महत्व पर चर्चा की. उन्होंने कहा कि हमें अपने पूर्वजों से सीखना चाहिए, जिन्होंने कला को बढ़ावा देने के लिए मंदिरों का इस्तेमाल किया, इन कलात्मक रूपों में धार्मिक कहानियों को शामिल किया और उन्हें संरक्षित और बनाये रखा. ओडिशा विशेष रूप से अपने बेहतरीन शिल्प कौशल के लिए जाना जाता है, खासकर इसके आदिवासी कला रूप, जो सुंदर हैं क्योंकि वे पर्यावरण के अनुकूल और टिकाऊ तरीके से बनाये गये हैं. इस कार्यक्रम में बहुमुखी मूर्तिकार और नारी शक्ति पुरस्कार-2017 की प्राप्तकर्ता निवेदिता मिश्रा ने वास्तुकला में सांस्कृतिक कथा को समझने और विरासत को संरक्षित करने में अपनी विशेषज्ञता साझा की. उन्होंने कहा कि हमें ऐसे संस्थान बनाने की जरूरत है, जहां कारीगर, खासकर गांवों और छोटे शहरों के लोग, छात्रों को व्यावहारिक रूप से सिखा सकें, अपनी कला का सार बता सकें. उन्होंने एनआइटीआर परिसर की संरक्षित प्राकृतिक सुंदरता की भी सराहना की.
विभिन्न सत्रों में छात्रों को मिलीं उपयोगी जानकारियां
एनआइटी राउरकेला के रजिस्ट्रार प्रो रोहन धीमान ने सम्मेलन को प्रायोजित करने के लिए भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद को धन्यवाद दिया और इस बात पर जोर दिया कि इस तरह के वस्तु-उन्मुख कार्यक्रम विकसित भारत के निर्माण की दृष्टि से संरेखित हैं. एनआइटी राउरकेला में योजना और वास्तुकला विभाग की प्रमुख डॉ सौमी मुहुरी ने प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए इस बात पर जोर दिया कि 2013 में स्थापित विभाग शहरी और क्षेत्रीय नियोजन में एक नया मास्टर डिग्री कार्यक्रम शुरू करने की कगार पर है. सत्र का समापन संयोजक डॉ नवनीता साहा द्वारा धन्यवाद प्रस्ताव के साथ हुआ. सह-संयोजक विश्वभारती की डॉ तनिमा भट्टाचार्य और एनआइटी के डॉ विकास रंजन मिश्रा ने प्रतिभागियों को कार्यक्रम के उद्देश्यों से अवगत कराया. सम्मेलन में कई आकर्षक मुख्य सत्र शामिल थे, जिनमें प्रो अमिता सिन्हा (आइआइटी-बीएचयू, वाराणसी) ने ””शांतिनिकेतन में हाट: शिल्प और स्थान निर्माण”” पर वार्ता, प्रो जॉय सेन (आइआइटी खड़गपुर) ने ””स्थान और संस्कृति के बीच तालमेल का महत्व”” पर वार्ता, डॉ प्रबीर कुमार चौधरी (विश्वभारती) ने ””शांतिनिकेतन में शिल्प की ऐतिहासिक यात्रा: औपनिवेशिक से टैगोर काल तक”” पर वार्ता और प्रो अनन्या भट्टाचार्य (बंगलानाटक डॉट कॉम की सह-संस्थापक) ने ””क्रेता”” पर वार्ता में शामिल थे.
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