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UP: रुहेलखंड के बासमती चावल को जहरीला बनाने वाले कीटनाशक की बिक्री पर लगी रोक, PPM बढ़ने पर लिया फैसला

बासमती चावल की खेती करने वाले किसान अधिक पैदावार के चक्कर में अत्याधिक कीटनाशक का प्रयोग कर रहे हैं, जिसके चलते रुहेलखंड का बासमती चावल जहरीला हो रहा है. इसका पीपीएम बढ़ने के कारण विदेशों में रुहेलखंड के बासमती चावल की साख गिर रही है. ऐसे में अब केंद्र के निर्देश पर कृषि विभाग ने...

Pilibhit News: रुहेलखंड के बरेली शाहजहांपुर और लखीमपुर खीरी जनपदों में उत्पादित बासमती चावल की दुनिया भर में मांग है. मगर, बासमती चावल की खेती करने वाले किसान अधिक पैदावार के चक्कर में अत्याधिक कीटनाशक का प्रयोग कर रहे हैं, जिसके चलते रुहेलखंड का बासमती चावल जहरीला हो रहा है. इसका पीपीएम बढ़ने के कारण विदेशों में रुहेलखंड के बासमती चावल की साख गिर रही है. इसके साथ ही निर्यात भी गिरा है.

कीटनाशकों की बिक्री पर रोक के निर्देश

ऐसे में अब केंद्र के निर्देश पर कृषि विभाग ने बासमती चावल को जहरीला बनाने वाले कीटनाशकों की बिक्री पर रोक लगा दी है. इसके साथ ही किसानों को विकल्प दिए गए हैं. बरेली के उप कृषि निदेशक (कृषि रक्षा) विश्व नाथ ने बताया कि, वर्ष 2020-21 की तुलना में 2021-22 में बासमती चावल के निर्यात में 15 प्रतिशत की गिरावट आई है. इसका कारण बासमती चावल में कीटनाशक दवाओं का अवशेष पाया जाना है.

कीटनाशक दवाओं पर लगा 60 दिनों का बैन

उन्होंने बताया कि, बासमती चावल में ट्राईसाईक्लाजोल रसायन का अवशेष अनुमन्य सीमा 0.01 पीपीएम से अधिक पाया जा रहा है. बासमती चावल का निर्यात बढ़ाने के लिए शासन ने बरेली मंडल के सभी जनपदों में दस कीटनाशक दवाओं को 60 दिनों के लिये बैन कर दिया है. इन दवाओं का प्रयोग धान की फसल में कीटनाशक एवं फफूंदी नाशक के रूप में किया जाता हैं. उप कृषि निदेशक ने कहा कि बासमती धान की फसल खेत में जुलाई से नवम्बर तक खड़ी रहती है, सितम्बर के अन्तिम पखवाड़े में फसल पकने लगती है. इन्हीं दिनों में कीट और रोगों का प्रकोप फसल पर अधिक होता है.

इन रसायनों का प्रयोग करते हैं किसान

उन्होंने कहा कि कीट और रोगों के नियंत्रण के लिए ट्राईसाईक्लाजोल, बुप्रोफेजिन, एसीफेट, क्लोरपाइरीफॉस, मेथामिडोफॉस, प्रोपिकोनाजोल, थायोमेथाक्साम, प्रोफेनोफॉस, आइसोप्रोथियोलेन एवं कार्बेन्डाजिम जैसे रसायनों का प्रयोग किसान करते हैं. इन रसायनों का अंश फसल के दानों पर लंबे समय तक बना रहता है.

भारत सरकार ने भी सूचित किया है कि यूरोपीय संघ, संयुक्त राज्य अमेरिका और खाड़ी देश जैसे आयात देशों में कीटनाशकों के अधिकतम अवशेष स्तर के कई मानकों के कारण बासमती चावल के निर्यात को चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. उन्होंने कहा कि धान में झोंका रोग के नियंत्रण के लिए कार्बेन्डाजिम, ट्राइसाइक्लाजोल एवं आइसोप्रोथियोलेन फफूंदनाशक रसायन का प्रयोग किया जाता है, इनका विकल्प स्यूडोमोनास फ्लोरीसेन्स है.

दीमक को मारने के लिए करें इसका प्रयोग

स्यूडोमोनास फ्लोरेसेन्स की 05 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए. उन्होंने कहा कि धान में शीथ ब्लाइट रोग के नियंत्रण के लिए कार्बेन्डाजिम, ट्राईसाईक्लाजोल एवं आइसोप्रोथियोलेन फफूंदनाशक रसायन के विकल्प के रूप में ट्राइकोडर्मा हारजिएनम की 2.5 किग्रा0 मात्रा को 500 लीटर पानी में मिलाकर पर्णीय छिड़काव करना चाहिए. दीमक को मारने के लिए क्लोरोपाइरीफास के स्थान पर ब्यूबेरिया बैसियाना का प्रयोग करना चाहिए.

धान भूरा फुदका एवं हरा फुदका कीट के नियंत्रण के लिए प्रोफेनोफॉस, थायोमेथोक्सम, एसीफेट कीटनाशक रसायनों का प्रयोग किया जाता है, इन रसायनों के स्थान पर नीम आयल 0.15 प्रतिशत ई0सी0 1.5-2.5 लीटर प्रति हेक्टेयर प्रयोग करें. धान में गंधी कीट नियंत्रण के लिए थायोमेथाक्साम रसायन के स्थान पर ब्यूवेरिया बेसियाना का प्रयोग करें. उन्होंने कहा कि किसानों को धान की फसल में कीट प्रबंधन के लिए लाइट/स्टिकी/फेरोमोन ट्रैप का प्रयोग करना चाहिए.

75 फीसद अनुदान पर उपलब्ध

किसानों को बायोपेस्टिसाइड ट्राइकोडर्मा हारजिएनम एवं ब्यूवेरिया बेसियाना मण्डल की सभी कृषि रक्षा इकाइयों पर 75 प्रतिशत अनुदान पर मिलेगा. बायो पेस्टीसाइड वातावरण के अनुकूल है, जिसका फसल एवं मानव स्वास्थ्य पर कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता हैं.उन्होंने सभी किसान भाई से कहा कि सम्बन्धित कृषि रक्षा इकाई से बायोपेस्टिसाइड 75 प्रतिशत अनुदान पर प्राप्त कर लाभ उठायें.

रिपोर्ट: मुहम्मद साजिद,बरेली

Sohit Kumar
Sohit Kumar
Passion for doing videos and writing content in digital media. Specialization in Education and Health Story

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