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अमेरिका से आकर असली मां-बाप की तलाश में लखनऊ भटक रही महोगिनी, मन में सवाल- क्यों छोड़ा लावारिस, ऐसे मांगी मदद

महोगिनी ने बताया कि जब लखनऊ के अनाथालय लीलावती मुंशी बालगृह में उसे अमेरिकी महिला कैरोल ने गोद लिया था तब उसका नाम रेखा था. वर्ष 2003 में कैरोल उसे लेकर अमेरिका चली गई. महोगिनी के मुताबिक, शुरुआत में कैरोल का व्‍यवहार सही था. बाद में वह उसे परेशान करने लगीं.

Lucknow News: लखनऊ में 23 वर्ष पहले चारबाग रेलवे स्टेशन पर जीआरपी को एक चार साल की बच्ची मिलती है. जीआरपी उसे बालगृह पहुंचा देती है. बच्‍ची करीब एक साल वहां रहती है. इसके बाद अमेरिका की रहने वाली एक महिला उसे गोद ले लेती है और अपने साथ अमेरिका लेकर चली गई. कुछ समय पहले अमेरिकी महिला की मौत हो गई. मरने से पहले उसने बच्‍ची को पूरी हकीकत बता दी. आज वह बच्‍ची 26 साल की युवती महोगिनी है, जो अमेरिका से अपने असली माता-पिता की तलाश में लखनऊ की गलियों की खाक छान रही है.

गोद लेने वाली मां ने बाद में किया प्रताड़ित

महोगिनी ने बताया कि जब लखनऊ के अनाथालय लीलावती मुंशी बालगृह में उसे अमेरिकी महिला कैरोल ने गोद लिया था तब उसका नाम रेखा था. वर्ष 2003 में कैरोल उसे लेकर अमेरिका चली गई. महोगिनी के मुताबिक, शुरुआत में कैरोल का व्‍यवहार सही था. बाद में वह उसे परेशान करने लगीं. उसके बारे में अपमानजनक बातें करने लगी. इसीलिए अपना हाई स्कूल पूरा करने के बाद उसने घर छोड़ दिया था और कुछ समय बाद महिला की मौत हो गई. मरने से पहले कैरोल ने गोद लेने से जुड़े सारे कागजात उसे सौंप दिए.

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अमेरिका से आकर असली मां-बाप की तलाश में लखनऊ भटक रही महोगिनी, मन में सवाल- क्यों छोड़ा लावारिस, ऐसे मांगी मदद 3
30 दिन के वीजा में अभी तक तलाश नहीं हुई पूरी

महोगिनी अमेरिका में एक कैफे में काम करती हैं. इसी दौरान उनकी मित्रता आर्टिस्‍ट क्रिस्‍टोफर से हो गई. महोगिनी ने अपनी पूरी कहानी क्रिस्‍टोफर को बताई. इसके बाद दोनों ने भारत आने की योजना बनाई. दोनों पिछले 15 दिनों से लखनऊ में एक लोकल कैब ड्राइवर की मदद से महोगिनी के असली माता-पिता को तलाश रहे हैं. महोगिनी का कहना है कि वह 30 दिन के वीजा पर भारत आई हैं. इसमें आधे दिन बीत चुके हैं, पर कोई सफलता नहीं मिल पाई है. अगर वह इस बार कामयाब नहीं होती हैं तो दोबारा फिर से आएंगी. महोगिनी के पास अपने बचपन से जुड़ी कुछ तस्‍वीरें हैं, जिनकी मदद से वह अपने माता-पिता को खोज रही हैं.

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महागनी ने बताया कि वर्ष 2000 में वह लखनऊ के चारबाग रेलवे स्टेशन पर जीआरपी को लावारिस अवस्था में मिली थीं. जीआरपी ने उन्हें लखनऊ के मोती नगर स्थित लीलावती मुंशी बालिका बालगृह में रखवा दिया था. इसी में एडॉप्शन केयर सेंटर चलता है, यहीं से उसे अमेरिका की रहने वाली महिला ने गोद ले लिया था. अभी तक की तलाश में कई रिकॉर्ड खंगालने के बाद भी उसे अपने परिवार का कुछ पता नहीं चला है. उसने सबसे पहले चारबाग रेलवे स्टेशन को जाकर देखा, वहां पर जीआरपी के रिकॉर्ड खंगाले लेकिन, कुछ नहीं मिला. इसके बाद लीलावती मुंशी बालिका बालगृह भी जाकर रिकॉर्ड देखे. लेकिन, वहां से भी कोई जानकारी नहीं मिल सकी. वह कहती है कि उसका परिवार अगर यहां मिल गया तो वह उनसे पूछेंगी कि आखिर उसे क्यों लावारिस अवस्था में छोड़ दिया था.

कैब ड्राइवर कर रहा मदद

महागनी ने बताया कि अपनों को तलाशने के लिए वह यहां पर अपने दोस्त क्रिस्टोफर के साथ ही कैब ड्राइवर राज का सहारा ले रही है. वकीलों से भी वह मिल चुकी है. मीडिया के जरिए वह चाहती है कि उनका परिवार उन्हें देखे और उनसे संपर्क करे. वह कहती है कि उन्हें उम्मीद है की यह सारी खबरें उनके भाई-बहन या माता-पिता तक पहुंचेगी और वो उनसे संपर्क जरुर करेंगे. महागनी ने बताया कि अमेरिका में खुद को पालने के लिए उन्होंने कैफे मैनेजर की नौकरी की. पेशे से वह कलाकार भी हैं और तो और मॉडलिंग भी वह करती हैं. इसी से वह रुपए कमाती है और जो भी रुपए उसने अब तक इकट्ठा किए थे. उसी के जरिए वह लखनऊ लौटी हैं और यहां पर इंदिरानगर में ठहरी है.

साथी क्रिस्टोफर की सलाह पर पहुंची लखनऊ

क्रिस्टोफर ने बताया कि लगभग छह साल पहले अमेरिका में उनकी मुलाकात महागनी से हुई थी. महागनी ने उनको बताया था कि उनका कोई भी नहीं है, उन्हें अपना असली नाम भी नहीं पता है और जन्म की तारीख भी नहीं जानती हैं. सारी कहानी जानने के बाद उन्होंने महागनी को यह सलाह दी कि क्यों न वह भारत लौटकर अपनों की तलाश करें. इसके बाद महागनी ने भारत आने का फैसला किया और वह भी उनके साथ आए हैं.

Sanjay Singh
Sanjay Singh
working in media since 2003. specialization in political stories, documentary script, feature writing.

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