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कांग्रेस की यूपी जोड़ो यात्रा से राहुल-प्रियंका गांधी क्यों बना रहे दूरी, अजय राय पर ज्यादा भरोसा या डर है वजह

कांग्रेस की यूपी जोड़ो यात्रा का सारा दारोमदार प्रदेश अध्यक्ष अजय राय के जिम्मे है. कहने को राष्ट्रीय पदाधिकारी इसमें शामिल हुए हैं. लेकिन, गांधी परिवार की गैरमौजूदगी या भविष्य में सीमित सक्रियता से ये यात्रा कोई बड़ा बदलाव लाने में सक्षम होगी, इस पर संशय बना हुआ है.

Congress UP Jodo Yatra: कांग्रेस की यूपी जोड़ो यात्रा का आगाज सहारनपुर से हो चुका है. प्रदेश अध्यक्ष अजय राय ने दावा किया है इस यात्रा के जरिए यूपी में कांग्रेस एक बड़ी ताकत के रूप में उभरेगी और इसका सीधा फायदा पार्टी को लोकसभा चुनाव 2024 में मिलेगा. उन्होंने गुरुवार को सहारनपुर के अगरसया मदरसे पर लोगों के साथ आगे की रणनीति पर चर्चा की. इस दौरान अजय राय ने स्थानीय लोगों से उनकी समस्याओं की भी जानकारी ली. सहारनपुर में इमरान मसूद भी यात्रा में शामिल हुए. वहीं अजय राय और इमरान मसूद ने जमीयत-उलमा-ए हिंद के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी के आवास पर जाकर उनसे मुलाकात की. कांग्रेस के मुताबिक शांति, सद्भाव, समता का संदेश लिए कदम से कदम मिलाकर यूपी जोड़ो यात्रा आगे बढ़ती जा रही है. पार्टी का मकसद पश्चिमी यूपी में अल्पसंख्यक मतदाताओं के बीच यात्रा के जरिए पैठ बनाना भी है. हालांकि बड़ा सवाल अब भी यही है कि इस यात्रा में गांधी परिवार का कोई सदस्य नहीं शामिल हुआ है. कांग्रेस की इस यात्रा को राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा की तर्ज पर पेश किया जा रहा है. ये अलग बात है कि भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गांधी जहां मुख्य चेहरा थे, वहीं पूरे देश से पार्टी के बड़े नेताओं सहित चर्चित हस्तियों के जुड़ने का सिलसिला जारी रहा. प्रियंका गांधी भी इसमें शामिल हुईं. लेकिन, यूपी जोड़ो यात्रा अभी तक प्रदेश नेतृत्व के भरोसे ही चल रही है.

भाजपा अभी से चुनावी रथ पर सवार, कांग्रेस में जोश का अभाव

कांग्रेस की यूपी जोड़ो यात्रा का सारा दारोमदार प्रदेश अध्यक्ष अजय राय के जिम्मे है. कहने को राष्ट्रीय सचिव प्रदीप नरवाल और तौकीर आलम जैसे पदाधिकारी इसमें शामिल हुए हैं. कुछ अन्य नेताओं के भी शामिल होने की बात कही जा रही है. लेकिन, गांधी परिवार की गैरमौजूदगी या भविष्य में सीमित सक्रियता से ये यात्रा कोई बड़ा बदलाव लाने में सक्षम होगी, इस पर संशय बना हुआ है. ये तब है, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यूपी के वाराणसी आ चुके हैं. अयोध्या में रामलला के प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम का सियासी लाभ लेने में भाजपा अभी से जुट गई है. दूसरी ओर जिस यूपी से दिल्ली का रास्ता जाता है, वहां अभी तक गांधी परिवार ने यात्रा में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई है. सियासी विश्लेषक इसे अलग अलग नजरिए से देख रहे हैं.

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चुनाव दर चुनाव प्रियंका गांधी का नाकामी का है रिकॉर्ड

देखा जाए तो यूपी में प्रियंका गांधी को लेकर हर चुनाव में पार्टी की ओर से बड़े-बड़े दावे किए जाते रहे हैं. लेकिन, हर बार नतीजा सिफर ही आया है. विधानसभा चुनाव में भी प्रियंका गांधी ने ही यूपी में मोर्चा संभाला था. टिकट वितरण से लेकर पार्टी का चुनावी घोषणा पत्र सब कुछ प्रियंका गांधी के नेतृत्व में तैयार किया गया. हालांकि महिलाओं को टिकट देने में प्राथमिकता का दांव भी काम नहीं आया. इससे पहले लोकसभा चुनाव में भी प्रियंका गांधी की मेहनत काम नहीं आई. यहां तक की राहुल गांधी को अमेठी से करारी शिकस्त झेलनी पड़ी. प्रियंका गांधी पर सिर्फ चुनाव के दौरान यूपी में सक्रिय होने का आरोप लगता रहा है. चुनाव दर चुनाव उनके नेतृत्व में नाकामी के बाद गांधी परिवार इस बार ये खतरा मोल नहीं लेना चाहता.

तेलंगाना की तर्ज पर स्थानीय नेताओं से बेहतर नतीजे चाहता है केंद्रीय नेतृत्व

सियासी विश्लेषकों के मुताबिक यही वजह है कि कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व इस बार सोच समझकर काम का रहा है. वह खुद फ्रंट में आने के बजाए प्रदेश नेतृत्व से उम्मीद कर रहा है, कि वह यूपी में पार्टी का पुनर्जीवित करने का काम करे. ठीक उसी तरह जिस तरह तेलंगाना में प्रदेश के नेताओं ने कड़ी मेहनत के दम पर सत्ता हासिल की, वहां पार्टी के लोग केंद्रीय नेतृत्व के भरोसे नहीं रहे. जबकि यूपी में कांग्रेस नेता हर बार गांधी परिवार की ओर मुंंह ताकते नजर आते हैं. उन्हें गांधी परिवार से ही चमत्कार की उम्मीद रहती है. संगठन को कैसे सक्रिय किया जाए या फिर पुराने नेताओं से लेकर युवाओं का कैसे उपयोग किया जाए, धरातल पर प्रभावी कार्यक्रम कैसे बनाएं जाएं, इस पर काम नहीं होता. कांग्रेस के यूपी मुख्यालय में केवल खास मौकों पर ही चहलपहल नजर आती है, वरना यहां वैसा माहौल नहीं दिखाई देता, जैसे भाजपा, सपा में होता है.

यूपी में पार्टी के अंदर उत्साहित नेताओं की कमी

कहा जा रहा है कि लोकसभा चुनाव को लेकर बीते दिनों उत्तर प्रदेश की समीक्षा में राहुल गांधी भी इस बात को जाहिर कर चुके हैं कि प्रदेश में ज्यादा मेहनत करने की जरूरत है. यूपी में पार्टी के अंदर उत्साहित नेताओं की कमी है. वह केंद्रीय नेतृत्व के भरोसे रहना चाहते हैं, जिसकी वजह से यहां पार्टी ठीक तरह से खड़े नहीं हो पा रही है. बैठक के दौरान यूपी में गांधी परिवार की सक्रियता की इच्छा भी नेताओं ने जताई. इसके साथ ही यूपी जोड़ो यात्रा में शामिल होने का अनुरोध भी किया. कहा जा रहा है कि केंद्रीय नेतृत्व इस पर फैसला करेगा. कांग्रेस नेतृत्व जानता है कि यूपी में पार्टी के बेहतर नतीजे हासिल किए बिना वह केंद्र से भाजपा को बेदखल करने में सफल नहीं हो सकती. ऐसे में वह स्थानीय नेताओं की ज्यादा से ज्यादा सक्रियता पर जोर दे रहा है.

कांग्रेस के सामने यूपी में बड़ी चुनौती

कांग्रेस के सामने इस बार जहां रायबरेली का अपना सियासी गढ़ बचाए रखने की चुनौती है, वहीं अमेठी में वापसी भी उसके लिए बेहद मायने रखती है. इन सबके बीच पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के यूपी से लोकसभा चुनाव लड़ने की चर्चा है. हालांकि इस संबंध में स्पष्ट तौर पर कुछ नहीं कहा गया है. लेकिन, केंद्रीय नेतृत्व चाहता है यूपी के नेता-कार्यकर्ता ऐसा माहौल बनाने में सफल हों, जिससे चुनाव में पार्टी को लाभ मिल सके. राहुल गांधी की इच्छा है कि कांग्रेस को चुनाव से पहले यहां मजबूत विपक्ष के तौर पर उभरना होगा, जिससे वह जनता की नजरों में दिखाई दे. जाहिर तौर पर केंद्रीय नेतृत्व ने इस बार गेंद यूपी के नेताओं के पाले में डाल दी है. वह अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं रहा, बल्कि उसकी इच्छा है कि यूपी संगठन इस बार धरातल पर नजर आए. यूपी जोड़ो यात्रा इसके लिए बेहतर मौका हो सकती है, ऐसे में पार्टी की कोशिश इसके जरिए माहौल बनाने की है. इसका आकलन करते हुए केंद्रीय नेतृत्व यात्रा के बीच में या समापन के वक्त इसमें शामिल हो सकता है.

Sanjay Singh
Sanjay Singh
working in media since 2003. specialization in political stories, documentary script, feature writing.

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