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धनबाद के सिंदरी में ब्रिटिश शासन में विस्थापित हुए 355 लोगों को आज तक न नौकरी मिली न जमीन वापस हुई

ब्रिटिश हुकूमत में विस्थापित हुए. देश आजाद हुआ. तीन राज्य बदला. लेकिन, नहीं बदली सिंदरी के लगभग दो हजार विस्थापित परिवारों की किस्मत. वर्ष 1946 में सिंदरी खाद कारखाना के लिए साढ़े छह हजार एकड़ भूमि का अधिग्रहण हुआ था. तब कहा गया था कि विस्थापितों को नियोजन व मुआवजा मिलेगा. लेकिन अब तक नहीं मिला.

संजीव झा, धनबाद

Dhanbad News : ब्रिटिश हुकूमत में विस्थापित हुए. देश आजाद हुआ. तीन राज्य बदला. लेकिन, नहीं बदली सिंदरी के लगभग दो हजार विस्थापित परिवारों की किस्मत. वर्ष 1946 में सिंदरी खाद कारखाना के लिए साढ़े छह हजार एकड़ भूमि का अधिग्रहण हुआ था. उस वक्त सिंदरी के 24 मौजा की जमीन ली गयी थी. कहा गया था कि विस्थापितों को नियोजन व मुआवजा मिलेगा. लेकिन, 76 वर्ष से अधिक समय बीतने के बाद भी सिंदरी के पूर्ण रूप से विस्थापित चार मौजा के 355 लोगों को नियोजन देने का समझौता अपूर्ण है. यहां के लोग आज भी अपने हक के लिए संघर्ष कर रहे हैं.

बंगाल से झारखंड तक नहीं मिला न्याय

धनबाद जिला के झरिया, बलियापुर अंचल में वर्ष 1946 में जब सिंदरी खाद कारखाना के लिए जमीन अधिग्रहण हुआ था. उस वक्त यह मॉनभूम जिला का हिस्सा था. जिसका मुख्यालय बंगाल के पुरुलिया में था. बाद में यह क्षेत्र अविभाजित बिहार का हिस्सा बना. 22 वर्ष पहले यह झारखंड राज्य बन गया. यानी तीन राज्य में रहने के बाद भी लोगों का संघर्ष कम नहीं हुआ. सबसे बड़ी बात है कि जिस खाद कारखाना के लिए जमीन अधिग्रहण हुआ. वह बन कर खुला. तथा 20 वर्ष पहले बंद भी हो गया. अभी सिंदरी तथा आस-पास के लगभग दो हजार परिवार जमीन वापसी तथा नियोजन की लड़ाई लड़ रहे हैं. सिंदरी, रोड़ाबांध, शहरपुरा एवं डोमगढ़ मौजा के लोग पूरी तरह विस्थापित हो गये. घर बनाने तक के लिए जमीन तक नहीं बची. इन मौजा के लोग आज भी वहीं रह रहे हैं. विस्थापित परिवार के सदस्यों का कहना है कि आजादी से पहले जिस जमीन ली गयी थी. उस वक्त कुछ लोगों को मुआवजा की राशि मिली थी. उस वक्त बैंकिंग प्रणाली नहीं के बराबर थी. किस-किस परिवार को कितना नकद मिला. यह बता नहीं सकते. लेकिन, किसी परिवार के सदस्य को नौकरी नहीं मिली.

पांच वर्ष के अंदर करना है उपयोग

जमीन अधिग्रहण अधिनियम 1894 के तहत यहां जमीन अधिग्रहण हुआ था. उक्त अधिनियम के तहत अगर अधिग्रहण के पांच वर्ष के अंदर काम शुरू नहीं होने पर रैयत जमीन वापसी के अधिकारी हैं. रैयत को स्वत: वापस जमीन करने का प्रावधान है. लेकिन, सिंदरी में इस अधिनियम के तहत भी किसी की जमीन वापसी नहीं हुई.

क्या कहते हैं विस्थापित

हम लोग न्याय के लिए पिछले सात दशक से संघर्ष कर रहे हैं. जिस समय जमीन लिया गया था. उस वक्त जो वादे किये गये थे. वह पूरा नहीं हुआ. कई पीढ़ी यहां से लेकर धनबाद तक का दौड़ लगाते-लगाते थक गयी है. विस्थापित परिवारों को एफसीआइ के तरफ से नौकरी तो नहीं दी गयी. विस्थापितों को पानी-बिजली की सुविधा भी नहीं दी गयी. बार-बार कानून का धौंस दिखा कर चुप करा दिया जाता है. अभी जमीन वापसी के लिए संबंधित कोर्ट में आवेदन दिये हुए हैं. हर तरह की लड़ाई लड़ने को तैयार हैं.

भक्ति पद पाल, अध्यक्ष, सिंदरी फर्टिलाइजर विस्थापित मोर्चा.

हम लोगों की अधिग्रहित जमीन पर न घर बनाने दिया जाता है. न ही परती भूमि पर खेती की अनुमति मिलती है. जब भी कोई विस्थापित खेती करने की कोशिश करते हैं. वहां पुलिस भेज दिया जाता है. कई बार दंडाधिकारी तैनात कर परती जमीन पर की गयी खेती को नष्ट कराया गया. नियोजन के लिए भी कोई पहल नहीं हो रही है. न्याय मिलने तक संघर्ष जारी रहेगा.

संतोष कुमार सिंह, सचिव, सिंदरी फर्टिलाइजर विस्थापित मोर्चा.

यहां पर खेती लायक जमीन पर ओबी डंप गिराया जा रहा है. इससे खेत पूरी तरह बर्बाद हो जायेगा. जमीन वापस नहीं होने के कारण यहां के विस्थापितों को आय, आवासीय, जाति प्रमाणपत्र बनाने में परेशानी होती है. पीएम आवास सहित किसी भी सरकारी आवास योजनाओं का लाभ नहीं मिल रहा है. जबकि बगल के पंचायतों में रहने वालों को दो-तीन बार आवास योजनाओं का लाभ मिल चुका है.

पारो सोरेन, कोषाध्यक्ष, सिंदरी फर्टिलाइजर विस्थापित मोर्चा.

Rahul Kumar
Rahul Kumar
Senior Journalist having more than 11 years of experience in print and digital journalism.

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