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रियासत की स्थापना के बाद से सरायकेला में हो रही दुर्गा पूजा, पहले राजा और अब राज्य सरकार करती है आयोजन

सरायकेला राजपरिवार की 64 पीढ़ियां निर्वाध रूप से मां दुर्गा की पूजा आराधना करते आ रहे हैं. सन् 1620 में राजा विक्रम सिंह द्वारा सरायकेला रियासत की स्थापना के बाद से ही राजमहल परिसर में मां दुर्गा की पूजा की शुरुआत हुई थी.

सरायकेला-खरसावां, शचिंद्र कुमार दाश : सरायकेला में दुर्गा पूजा का आयोजन करीब 400 वर्ष पुरानी है, तभी से लेकर अब तक यहां माता की पूजा पूरे विधि विधान व परंपरा के साथ होता आ रहा है. सरायकेला राजपरिवार की 64 पीढ़ियां निर्वाध रूप से मां दुर्गा की पूजा आराधना करते आ रहे हैं. सन् 1620 में राजा विक्रम सिंह द्वारा सरायकेला रियासत की स्थापना के बाद से ही राजमहल परिसर में मां दुर्गा की पूजा की शुरुआत हुई थी. सरायकेला रियासत के स्थापना से लेकर भारत की आजादी तक सिंह वंश के 61 पीढ़ियों ने राजा के रूप में राजपाट चलाया और माता दुर्गा की पूजा की. देशी रियासतों के विलय के बाद राजभवन के बहार आम जनता के सहयोग से पब्लिक दुर्गा पूजा समिति गठित कर पूजा अर्चना की जाती है. सरायकेला के वर्त्तमान राजा प्रताप आदित्य सिंहदेव बताते हैं कि उस वक्त दुर्गा पूजा के आयोजन के लिए राज कोषागार से राशी खर्च होती थी. दुर्गा पूजा के लिए प्रत्येक वर्ष जनता से एक अतिरिक्त टैक्स लिया जाता था. टैक्स के रूप में वसूल की गयी राशी से ही पूजा का आयोजन होता था.

आज भी पूर्व की परंपरा के साथ होती है पूजा

वर्ष 1948 में देशी रियासतों का भारत देश में विलय हुआ, तब स्थानिय लोगों की और से पूजा कमेटी गठित की जाने लगी. हालांकि लोगों ने परपरा का कायम रखते हुए पूजा कमेटी के अध्यक्ष राजा को ही रखा, जो भी राजा बनेंगे कमेटी के अध्यक्ष वहीं रहेंगे. वर्त्तमान में राजा प्रताप आदित्य सिंहदेव कमेटी के अध्यक्ष हैं.

तांत्रिक विधि से होती है माता की पूजा

पब्लिक दुर्गा मंदिर में मां की पूजा तांत्रिक मतानुसार होती है. मंदिर में तीन-तीन दिनों तक चंडीपाठ चलता है. तांत्रिक मतानुसार पूजा होने के कारण यहां कुष्मांड(भतुआ) की बली चढ़ाई जाती है, जो नर बलि के समान है, इसलिए यहां कुष्मांड की बलि चढ़ाई जाती है.

20 अक्टूबर को बेलवरण के साथ शुरू होगी पूजा

पब्लिक दुर्गा मंदिर में 20 अक्टूबर को बेलवरण के साथ माता दुर्गा की पूजा शुरू होगी. 21 अक्टूबर को सप्तमी, 22 अक्टूबर को अष्टमी पूजा, 23 अक्टूबर को नवमी पूजा व 24 अक्टूबर को विजयाजशमी के साथ पूजा का समापन होगा. 22 अक्टूबर से 24 अक्टूबर तक कई सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा. इस दौरान संबलपुरी नृत्य, छापल छापल नृत्य, कुड़माली झूमर का आयोजन किया जाएगा.

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Nutan kumari
Nutan kumari
Digital and Broadcast Journalist. Having more than 4 years of experience in the field of media industry. Specialist in Hindi Content Writing & Editing.

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