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गुजरात चुनाव 2022: व्यारा सीट पर पहली बार आमने-सामने दो ईसाई उम्मीदवार, जानें क्या है समीकरण

कांग्रेस ने अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित इस सीट से अपने मौजूदा विधायक पूनाभाई गामित को टिकट दिया है, तो वहीं भाजपा ने चार बार से विधायक गामित से मुकाबले के लिए पहली बार ईसाई उम्मीदवार मोहन कोंकणी को मैदान में उतारा है.

गुजरात की व्यारा विधानसभा सीट पर पहली बार दो ईसाई उम्मीदवारों के बीच मुकाबला देखने को मिलेगा. सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और विपक्षी कांग्रेस दोनों ने इस सीट पर ईसाई उम्मीदवार उतारे हैं. बता दें कि यह सीट कांग्रेस का गढ़ माना जाता है. इस सीट से गुजरात को अमरसिंह चौधरी के रूप में पहला मुख्यमंत्री मिला था.

कांग्रेस और भाजपा ने इन उम्मीदवारों को दिया टिकट

कांग्रेस ने अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित इस सीट से अपने मौजूदा विधायक पूनाभाई गामित को टिकट दिया है, तो वहीं भाजपा ने चार बार से विधायक गामित से मुकाबले के लिए पहली बार ईसाई उम्मीदवार मोहन कोंकणी को मैदान में उतारा है. गामित का कहना है कि ईसाई मतदाता फिर से कांग्रेस को वोट देंगे, जबकि कोंकणी का दावा है कि राज्य में भाजपा सरकार द्वारा किए गए विकास के कारण लोग उनकी पार्टी के पक्ष में मतदान करेंगे.

भाजपा को करनी पड़ सकती है मशक्कत

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि कमजोर वर्गों को साथ लेकर चलने के कांग्रेस के दृष्टिकोण ने जनजातीय बहुल सीटों पर जीत हासिल करने में उसकी मदद की है, जबकि इस विधानसभा क्षेत्र में सामाजिक पहलुओं को देखते हुए भाजपा को जीत हासिल करने के लिए मशक्कत करनी पड़ सकती है.

व्यारा सीट पर ईसाई की संख्या 20 प्रतिशत

कांग्रेस का गढ़ माने जाने वाली और दक्षिण गुजरात के जनजातीय बहुल तापी जिले में स्थित व्यारा सीट पर कुल 2.20 लाख मतदाताओं में से लगभग 40,000 यानि 20 प्रतिशत ईसाई हैं. अधिकांश ईसाई गामित, चौधरी और कोंकणी जनजाति समुदायों से परिवर्तित हुए हैं. एक दिसंबर को पहले चरण में इस सीट पर मतदान होना है. कांग्रेस के दिग्गज नेता अमरसिंह चौधरी ने 1972 से 1985 के बीच चार बार इस सीट पर जीत हासिल की थी.

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कांग्रेस को इसलिए मिल सकती है सफलता

समाज शास्त्री गौरांग जानी ने समाचार एजेंसी पीटीआई-भाषा से कहा कि कमजोर समुदायों को साथ लेकर चलने के अपने दृष्टिकोण के कारण जनजातीय सीटों पर कांग्रेस को सफलता मिली है, जिससे भाजपा को अपनी रणनीति पर फिर से विचार करने को मजबूर होना पड़ा है. उन्होंने दावा किया कि इस क्षेत्र में जनजातीय समुदायों का धर्मांतरण करके ईसाई धर्म अपनाना लंबे समय से जारी है, जिससे इसके सामाजिक समीकरण जटिल हो गए हैं.

(भाषा- इनपुट के साथ)

Piyush Pandey
Piyush Pandey
Senior Journalist, tech enthusiast, having over 10 years of rich experience in print and digital journalism with a good eye for writing across various domains.

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