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Independence Day 2020 : आजादी के लिए नीलांबर-पीतांबर ने हंसते – हंसते चूम लिया था फांसी का फंदा, जबरन धर्म परिवर्तन के थे खिलाफ

देश की आजादी के लिए हंसते-हसंते फांसी के फंदे को चूमने वाले अमर स्वतंत्रता सेनानी नीलांबर-पीतांबर की सभी धर्मों में आस्था थी. वे जबरन धर्म परिवर्तन के खिलाफ थे. वे अंग्रेजों से कहा करते थे कि आपको जिस किसी भी धर्म को मानना हो या जिसकी पूजा करनी हो, करें, लेकिन उनसे उनका धर्म नहीं छीनें और ना ही उन्हें अपना धर्म अपनाने के लिए बाध्य करें. यही कारण था कि दोनों भाई अंग्रेजों की आंखों में खटकते थे.

लातेहार (आशीष टैगोर) : देश की आजादी के लिए हंसते-हसंते फांसी के फंदे को चूमने वाले अमर स्वतंत्रता सेनानी नीलांबर-पीतांबर की सभी धर्मों में आस्था थी. वे जबरन धर्म परिवर्तन के खिलाफ थे. वे अंग्रेजों से कहा करते थे कि आपको जिस किसी भी धर्म को मानना हो या जिसकी पूजा करनी हो, करें, लेकिन उनसे उनका धर्म नहीं छीनें और ना ही उन्हें अपना धर्म अपनाने के लिए बाध्य करें. यही कारण था कि दोनों भाई अंग्रेजों की आंखों में खटकते थे.

नीलांबर-पीतांबर के परपौत्र रामनंदन सिंह लातेहार प्रखंड के कोने गांव में रहते हैं. आज उनकी उम्र तकरीबन 80 वर्ष है. आज भी वे अपने पूर्वजों की कहानी गर्व से सुनाते हैं. कहते हैं कि उन्हें इस बात पर गुमान है कि वे वर्ष 1857 में आजादी के पहले स्वतंत्रता संग्राम के नायक नीलांबर-पीतांबर के परपौत्र हैं.

रामनंदन सिंह बताते हैं कि उस समय आदिवासी असंगठित थे. उन्हें आसानी से बरगलाया जा सकता था. अंग्रेज उन्हें जमीन व संपति का प्रलोभन दे कर आपस में लड़वाते थे और उनका धर्म परिवर्तन कराते थे. ऐसे में नीलांबर-पीतांबर दोनों भाइयों ने आदिवासियों को संगठित करने का प्रयास किया. इस कारण वे वैसे आदिवासियों के भी दुश्मन बन गये जो अंग्रेजों के प्रलोभन में उनकी दासता स्वीकारते थे और दूसरे आदिवासियों के बीच अपना रौब जमाना चाहते थे.

नीलांबर-पीतांबर अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोल चुके थे. लातेहार जिले के गारु प्रखंड के सीमा अवस्थित कुरुंद घाटी में अंग्रेजों ने अपना कैंप कार्यालय बनाया था. कई हजार फीट की ऊंचाई पर बसी कुंरूद घाटी की आबोहवा काफी अच्छी थी और यहां से अंग्रेज बनारी गांव होते हुए नेतरहाट तक आसानी से पहुंच जाते थे. अंग्रेज आवाज उठाने वालों को पकड़ कर इसी कैंप शिविर में रखते थे. नीलांबर-पीताबंर ने भी कुरूंद घाटी एवं इसके आसपास के क्षेत्रों में अपना ठिकाना बनाया था.

दोनों भाई गुरिल्ला युद्ध में माहिर थे और कई बार उन्होंने अंग्रेजों के कुरुंद शिविर में धावा बोला था. कई वर्षों तक दोनों भाई पारंपरिक हथियार तीर-धनुष के बल पर अंग्रेजों से लोहा लेते रहे. कोने एवं आसपास की आदिवासियों को एकजुट करके उन्होंने फिरंगियों के खिलाफ विद्रोह का बिगूल फूंक दिया. इन दोनो भाईयों ने अंग्रेजों को पलामू में रहना दूभर कर दिया था.

तब इनके आंदोलन को दबाने के लिए ब्रिटीश हुकुमत ने लार्ड डाल्टन को पलामू का कमिश्नर बना कर भेजा. डाल्टन ने प्रलोभन दे कर कई जमींदारों को नीलांबर-पीतांबर के खिलाफ खड़ा कर दिया और अंत में छल नीति से इन दोनों भाईयों को पकड़ने में कामयाब रहा. 1859 में अंग्रेजों ने पलामू के लेस्लीगंज छावनी में इन दोनो भाईयों को फांसी दे दिया. रामनंदन सिंह बताते हैं कि जिस समय पीतांबर को फांसी दी गयी थी, उस समय उनकी पत्नी गर्भवती थी.

Posted By – Pankaj Kumar Pathak

Prabhat Khabar Digital Desk
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