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Jharkhand: झुमरीतिलैया के गुमो में 251 वर्षों से हो रही है दुर्गा पूजा, नवरात्र में हर दिन होती है बलि

झुमरीतिलैया के गुमो में स्थित देवी मंदिर की पूजा परंपरा अन्य जगहों से बिल्कुल अलग है. बलि प्रथा यहां की विशेषता है तो यहां का विसर्जन भी खास होता है. यहां कलश स्थापन से अष्टमी तक प्रत्येक दिन एक-एक बकरे की बलि दी जाती है. जानिए पूरी कहानी...

Kodarma News: नवरात्र में आदि शक्ति मां भवानी की आराधना हर तरफ होती है, पर शहर के गुमो में स्थित देवी मंदिर की पूजा परंपरा अन्य जगहों से बिल्कुल अलग है. बलि प्रथा यहां की विशेषता है तो यहां का विसर्जन भी खास होता है. यहां कलश स्थापन से अष्टमी तक प्रत्येक दिन एक-एक बकरे की बलि दी जाती है, जबकि नवमी के दिन यह संख्या हजारों में तब्दील हो जाती है. नवमी के दिन बलि की शुरुआत गढ़ पर से होती है. इसके बाद मंदिर परिसर में यह कार्यक्रम शुरू होता है.

इसलिए विसर्जन होता है खास

विसर्जन की बात करें तो यहां प्रतिमाओं को लोग विसर्जन के लिए वाहन से न ले जाकर अपने कंधों पर लेकर विसर्जन करने के लिए तालाब तक पहुंचते हैं. लोगों की मानें तो यहां का दुर्गा मंदिर न सिर्फ श्रद्धा, भक्ति और आस्था का केंद्र है, बल्कि जिले भर का एक ऐतिहासिक धरोहर भी है. कलश स्थापना से ही शाम में महिलाएं प्रतिदिन दीप जलाती हैं और संध्या वंदन एक साथ बैठकर करती हैं. यहां भव्य पंडाल तो नहीं बनता, किंतु आकर्षक सजावट लोगों को अपनी ओर सहज रूप से खींचता है. ढाई से तीन लाख रुपये के खर्च में यहां की पूजा संपन्न हो जाती है. सच्चे मन से आने वाले हर भक्तों की मुराद यहां पूरी होती है.

रतन साईं और मदन साईं ने की थी पूजा की शुरुआत

स्थानीय लोगों की मानें तो सार्वजनिक दुर्गा पूजा समिति गुमो में 251 वर्षों से माता की प्रतिमा स्थापित कर दुर्गा पूजा की परंपरा रही है. इस वर्ष यहां पर पूजा का 251वां साल होगा. जिले भर में सबसे पुरानी पूजा यहीं पर होती है. पूजा कमेटी के पदाधिकारी ने बताया कि राजा के काल से ही यहां पर पूजा होती आ रही है. रतन साईं और मदन साईं नाम के दो भाइयों ने यहां पूजा की शुरुआत की थी. राज दरबार में पूजा पाठ के लिए सतघरवा परिवार के पूर्वजों को रखा था. अंग्रेजों का दबाव बढ़ने के बाद दोनों भाइयों को राज पाट छोड़कर यहां से जाना पड़ा. जाने के क्रम में उन्होंने अपने कुल पुरोहित को पूजा की जिम्मेवारी सौंप दी थी. तब से आज तक सतघरवा परिवार के नेतृत्व में इस पूजा की परंपरा चलती आ रही है. हालांकि, इस पूजा में गांव के सभी ब्राह्मणों और समस्त जाति के लोगों के अलावा झुमरीतिलैया गांधी स्कूल रोड, चित्रगुप्त नगर आदि इलाकों में बसे लोगों का सहयोग भी रहता है. पहले यह पूजा राजा के घर पर होती थी जो पूरे गांव का सबसे ऊपर इलाका है. बाद में वहां से अलग एक मंदिर स्थापित कर माता की पूजा अर्चना की जाने लगी.

नवमी में बच्चों का होता है मुंडन

गुमो के मंदिर से एक परंपरा और जुड़ी है. लोगों की मानें तो इस गांव की बेटियां ब्याह कर भले ही कहीं और चली जाती हैं. किंतु अपने बच्चों का पहला मुंडन उनको इसी मंदिर परिसर में नवमी के दिन कराने की परंपरा चली आ रही है.

हर भक्त की होती है मनोकामना पूर्ण

जिले का सबसे पुराना मंदिर गुमो का है. यहां पर सच्चे मन से आने वाले हर भक्तों की इच्छाएं माता पूर्ण करती हैं. मन्नतें पूरी होने पर यहां बलि देने की परंपरा भी है. यह एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां की प्रतिमाओं को लोग अपने कंधे पर लेकर विसर्जन करने के लिए तालाब तक पहुंचते हैं. कलश स्थापन से ही नवमी तक दोनों समय दुर्गा पाठ और आरती होती है, जिसमें पूरा गांव शामिल होता है.

दशरथ पांडेय, आचार्य

क्या कहते हैं पूजा कमिटी के सचिव

फिलहाल मंदिर के आंगन को ढाल दिया गया है. शेष काम प्रगति पर है. आने वाले दिनों में इस मंदिर को एक भव्य रूप दिया जाएगा. यहां पर साधारण खर्च में भी अच्छे तरीके से माता की पूजा अर्चना की जाती है. इसमें संपूर्ण ग्रामीणों का भरपूर सहयोग रहता है. मंदिर परिसर में भव्य पंडाल तो नहीं बनता किंतु आकर्षक सजावट और मेला श्रद्धालुओं को लुभाता है.

उमाकांत पांडेय, सचिव

रिपोर्ट : साहिल भदानी

Rahul Kumar
Rahul Kumar
Senior Journalist having more than 11 years of experience in print and digital journalism.

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