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ममता बनर्जी : वो सैनिक जिसने ‘टूटे पैर’ से भाजपा की युद्ध मशीन को बुरी तरह से पराजित किया

पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में अपनी पार्टी के शानदार प्रदर्शन के बाद ममता बनर्जी की छवि एक ऐसे सैनिक और कमांडर के रूप में बनी है, जिसने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के नेतृत्व वाली भाजपा की चुनावी युद्ध मशीन को भी हरा दिया. तीसरी बार की यह जीत न सिर्फ राज्य में बनर्जी की स्थिति को और मजबूत करेगी, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा के खिलाफ विपक्ष को एकजुट करने में भी मदद करेगी.

कोलकाता : पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में अपनी पार्टी के शानदार प्रदर्शन के बाद ममता बनर्जी की छवि एक ऐसे सैनिक और कमांडर के रूप में बनी है, जिसने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के नेतृत्व वाली भाजपा की चुनावी युद्ध मशीन को भी हरा दिया. तीसरी बार की यह जीत न सिर्फ राज्य में बनर्जी की स्थिति को और मजबूत करेगी, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा के खिलाफ विपक्ष को एकजुट करने में भी मदद करेगी.

ममता बनर्जी ने एक दशक से अधिक पहले सिंगूर और नंदीग्राम में सड़कों पर हजारों किसानों का नेतृत्व करने से लेकर आठ साल तक राज्य में बिना किसी चुनौती के शासन किया. आठ साल के बाद उनके शासन को 2019 में तब चुनौती मिली, जब भाजपा ने पश्चिम बंगाल में लोकसभा चुनाव में 18 सीटों पर अपना परचम फहरा दिया. ममता बनर्जी (66) ने अपनी राजनीतिक यात्रा को तब तीव्र धार प्रदान की, जब उन्होंने 2007-08 में नंदीग्राम और सिंगूर में नाराज लोगों का नेतृत्व करते हुए वाम मोर्चा सरकार के खिलाफ राजनीतिक युद्ध का शंखनाद कर दिया.

इसके बाद वह सत्ता के शक्ति केंद्र ‘नबान्न’ तक पहुंच गयी. पढ़ाई के दिनों में बनर्जी ने कांग्रेस स्वयंसेवक के रूप में अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की थी. यह उनके करिश्मे का ही कमाल था कि वह संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) सरकारों में मंत्री बन गयीं. राज्य में औद्योगीकरण के लिए किसानों से ‘जबरन’ भूमि अधिग्रहण के मुद्दे पर वह नंदीग्राम और सिंगूर में कम्युनिस्ट सरकार के खिलाफ दीवार बनकर खड़ी हो गयीं और आंदोलनों का नेतृत्व किया.

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ये आंदोलन उनकी किस्मत बदलने वाले रहे और तृणमूल कांग्रेस एक मजबूत पार्टी के रूप में उभरकर सामने आयी. ममता बनर्जी ने कांग्रेस से अलग होने के बाद जनवरी, 1998 में तृणमूल कांग्रेस की स्थापना की और राज्य में कम्युनिस्ट शासन के खिलाफ संघर्ष करते हुए उनकी पार्टी आगे बढ़ती चली गयी. पार्टी के गठन के बाद राज्य में वर्ष 2001 में जब विधानसभा चुनाव हुआ, तो तृणमूल कांग्रेस 294 सदस्यीय विधानसभा में 60 सीट जीतने में सफल रही और वाम मोर्चे को 192 सीट मिलीं.

वहीं, 2006 के विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस की ताकत आधी रह गयी और यह केवल 30 सीट ही जीत पायीं, जबकि वाम मोर्चा को 219 सीटों पर जीत मिली. वर्ष 2011 के विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी की पार्टी ने ऐतिहासिक रूप से शानदार जीत दर्ज करते हुए राज्य में 34 साल से सत्ता पर काबिज वाम मोर्चा सरकार को उखाड़ फेंका. उनकी पार्टी को 184 सीट मिलीं, जबकि कम्युनिस्ट 60 सीटों पर ही सिमट गये.

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उस समय वाम मोर्चा सरकार विश्व में सर्वाधिक लंबे समय तक सत्ता में रहने वाली निर्वाचित सरकार थी. ममता बनर्जी अपनी पार्टी को वर्ष 2016 में भी शानदार जीत दिलाने में सफल रहीं और तृणमूल कांग्रेस की झोली में 211 सीटें आयीं. इस बार के विधानसभा चुनाव में बनर्जी को तब झटका लगा, जब उनके विश्वासपात्र रहे शुभेंदु अधिकारी और पार्टी के कई नेता भाजपा में शामिल हो गये.

बंगाली ब्राह्मण परिवार में जन्मीं ममता बनर्जी पार्टी के कई नेताओं की बगावत के बावजूद अंतत: अपनी पार्टी को तीसरी बार भी शानदार जीत दिलाने में कामयाब रहीं. इस चुनाव में भाजपा ने तृणमूल कांग्रेस को सत्ता से बेदखल करने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी, लेकिन ममता बनर्जी एक ऐसी सैनिक और कमांडर निकलीं, जिन्होंने भगवा दल की चुनावी युद्ध मशीन को पराजित कर दिया. वह वर्ष 1996, 1998, 1999, 2004 और 2009 में कोलकाता दक्षिण सीट से लोकसभा सदस्य भी रह चुकी हैं.

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Posted By : Mithilesh Jha

Prabhat Khabar Digital Desk
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