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डोनर की तलाश में दर-दर भटक रहे थे श्यामल, युवक ने रोजा तोड़ किया रक्तदान, कहा- ‘खून का कोई धर्म नहीं’

रमजान माह का पवित्र रोजा तोड़कर एक मुस्लिम युवक ने थैलेसीमिया से पीड़ित एक हिंदू बहन को रक्तदान कर उसकी जान बचाने का मानवीय रूप देखने को मिला. यह मामला प्रकाश में आने के बाद इलाके समेत जिले भर में इस घटना की भूरी-भूरी प्रशंसा हो रही है.

बोलपुर, मुकेश तिवारी. रमजान माह का पवित्र रोजा तोड़कर एक मुस्लिम युवक ने थैलेसीमिया से पीड़ित एक हिंदू बहन को रक्तदान कर उसकी जान बचाने का मानवीय रूप देखने को मिला. यह मामला प्रकाश में आने के बाद इलाके समेत जिले भर में इस घटना की भूरी-भूरी प्रशंसा हो रही है. यह मामला बीरभूम जिले के लाभपुर फिदा ग्राम की है. गांव की रहने वाली 16 वर्षीय ब्रतती मांझी जन्म से ही थैलेसीमिया से ग्रसित है. इस प्रचंड गर्मी में रक्त की भारी कमी अस्पतालों में देखने को मिल रही है. ऐसे में थैलेसीमिया से पीड़ित ब्रतती मांझी को बी पॉजिटिव रक्त की जरूरत थी.

ब्लड डोनर की तलाश में दर-दर भटक रहे थे पिता

पुत्री को खून चढ़ाने के लिए पिता ब्लड डोनर की तलाश में दर-दर भटक रहे थे. बोलपुर के गृह शिक्षक और सामाजिक कार्यकर्ता श्यामल माझी ने जैसे ही यह सुना, उन्होंने अपने मुस्लिम छात्र शेख नूर इस्लाम से थैलेसीमिया से पीड़ित ब्रतती मांझी को रक्तदान करने की गुहार लगाई. बताया जाता है कि रमजान माह चलने के कारण नूर ने रोजा रखा हुआ था. लेकिन थैलेसीमिया से पीड़ित ब्रतती मांझी की रक्त की जरूरत को समझते हुए नूर ने रक्तदान करने को तैयार हो गया. बिना किसी हिचकिचाहट के उसने अपना रोजा तोड़ दिया और स्वेच्छापूर्वक रक्तदान किया.

परिजन काफी समय से ब्लड को लेकर परेशान

ब्रतती के पिता प्रदीप मांझी ने बताया कि बोलपुर महकमा अस्पताल में बी पॉजिटिव ब्लड विगत कई दिनों से मौजूद नहीं है. परिजन काफी समय से ब्लड को लेकर परेशान थे. इधर-उधर भी ब्लड की तलाश कर रहे थे. ब्लड नहीं मिलने से सभी मायूस होकर चिंतित थे. दलाल चक्र से संपर्क कर उनसे भी ठगी का शिकार होना पड़ा लेकिन ब्लड नहीं मिला. उन्हें चिंता थी कि ब्लड कैसे मिलेगा. नूर इस हाल में फरिश्ते की तरह आया. उधर, शेख नूर इस्लाम ने कहा कि शिक्षक श्यामल मांझी के फोन आने के तुरंत बाद पता चला कि थैलेसीमिया से पीड़ित छोटी बहन को रक्त की कमी है.

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‘रक्तदान कर उन्हें भी खुशी हो रही’

रक्तदान कर उन्हें भी खुशी हो रही है. नूर ने कहा मैंने रोजा तोड़कर दिया और रक्तदान किया. क्योंकि मानव जीवन की कीमत उपवास से कहीं अधिक मूल्यवान है. अल्लाह इससे अधिक प्रसन्न होगा. सामाजिक कार्यकर्ता श्यामल मांझी ने कहा कि बीरभूम में भीषण गर्मी के कारण अस्पतालों में खून की भारी कमी चल रही है. संकट की इस घड़ी में छोटे-छोटे रक्तदान शिविरों की जरूरत है. खून का कोई धर्म या जाति नहीं होती. शेख नूर इस्लाम द्वारा स्थापित उदाहरण आने वाले दिनों में लोगों को सही दिशा में मार्गदर्शन करेगा. नूर के इस मानवीय रूप को देख ब्रतती समेत उसके परिवार के लोगों ने भूरी-भूरी प्रशंसा की.

Prabhat Khabar Digital Desk
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