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झारखंड की इस महिला को मिलेगा मिलेगा पद्मश्री’ सम्मान, डायन प्रथा के खिलाफ छेड़ी थी जंग, जानें उनकी कहानी

डायन प्रथा के खिलाफ आवाज उठाने वाली सरायकेला गम्हरिया की छुटनी महतो जल्द ही पद्मश्री सम्मान से सम्मानित होंगी. छुटनी महतो को यह सम्मान आगामी 9 नवंबर, 2021 को मिलेगा. इसके लिए उन्हें न्योता भी मिल गया है. जैसे ही उन्हें खबर मिली उन्होंने उनके साथ खड़े रहने वाले लोगों को धन्यवाद दिया है.

Jharkhand news, Jamshedpur News, Saraikela News गम्हरिया, सरायकेला-खरसावां : डायन प्रथा के खिलाफ काम करने वाली गम्हरिया प्रखंड की बीरबांस पंचायत अंतर्गत बीरबांस निवासी छुटनी महतो जल्द ही पद्मश्री सम्मान से सम्मानित होंगी. छुटनी महतो को यह सम्मान आगामी 9 नवंबर, 2021 को मिलेगा.

इसके लिए उन्हें न्योता भी मिल चुका है. इधर, पद्मश्री के लिए नामित छुटनी महतो ने अपने ससुराल महतानडीह के लोगों को धन्यवाद दिया. 25 जनवरी 2021 को सम्मान के लिए घोषणा से करीब नौ माह बाद सम्मान के लिए फोन आने से श्रीमती महतो समेत उनके परिवार में हर्ष है.

क्या है पूरी कहानी

बात तब की है जब वह महज 12 साल की थी. तब उसकी शादी गम्हरिया थाना अंतर्गत सामरम पंचायत (वर्तमान में नवागढ़) निवासी धनंजय महतो (अभी मृत) से हुई थी. तीन बच्चों के बाद 2 सितंबर, 1995 को उसके पड़ोसी भोजहरी की बेटी बीमार हो गयी थी. ग्रामीणों को शक हुआ कि छुटनी ने कोई जादू- टोनाकर उसे बीमार कर दिया है. इसके बाद गांव में पंचायत हुई, जिसमें उसे डायन करार देते हुए लोगों ने घर में घुसकर उसके साथ दुष्कर्म करने की कोशिश की गयी थी.

उसके बाद गांव में पंचायती कर उल्टा छुटनी महतो को ही दोषी मानते हुए पंचायत ने 500 रुपये का जुर्माना लगा दिया. उस वक्त छुटनी महतो ने किसी तरह जुगाड़ कर जुर्माना भर दिया. इसके बाद भी लोगों का गुस्सा शांत नहीं हुआ. ग्रामीणों ने ओझा-गुनी के माध्यम से उसे शौच पिलाने का भी प्रयास किया गया. मैला पीने पर मना करने पर जबरन उसके शरीर पर फेंक उसे बेइज्जती किया गया. उसने थाना में भी प्राथमिकी दर्ज करायी. मामले में कुछ लोगों की गिरफ्तारी तो हुई, लेकिन कुछ दिन बाद ही सभी निकल गये.

लेकिन इसके बाद छुटनी महतो सरायकेला-खरसावां जिले के गम्हरिया के पास बीरबांस इलाके में डायन प्रथा के खिलाफ आंदोलन चलाती है. उनको भी लोग डायन कहकर ही कभी पुकारते थे, लेकिन डायन प्रथा के खिलाफ आंदोलन चलाने वाले समाजसेवी प्रेमचंद ने छुटनी महतो का पुनर्वास कराया और फ्री लीगल एड कमेटी (फ्लैक) के बैनर तले काम करना शुरू किया और अब भारत सरकार ने उनको पद्मश्री का अवार्ड देने का ऐलान कर दिया है. छुटनी महतो अभी 62 साल की है.

लेकिन उनके लिए ये सब करना इतना आसान नहीं थी. 1995 में जब वह इसके खिलाफ खड़ी हुई तब उसके साथ कोई नहीं था, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और उन्होंने किसी तरह फ्लैक के साथ काम करना शुरू किया और फिर उसको कामयाबी मिली और कई महिलाओं को डायन प्रथा से बचाया. अब तो वह रोल मॉडल बन चुकी है. छुटनी ने इस कुप्रथा के खिलाफ ना केवल अपने परिवार के खिलाफ जंग लड़ा बल्कि 200 से भी अधिक झारखंड, बंगाल, बिहार और ओडिशा की डायन प्रताड़ित महिलाओं को इंसाफ दिला कर उनका पुनर्वासन भी कराया.

Posted by : Sameer Oraon

Prabhat Khabar News Desk
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