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लोहरदगा में बीमारियों को न्योता दे रहा प्रदूषण, लोगों में बढ़ रहा है चिड़चिड़ापन, तनाव, अनिद्रा और मानसिक रोग

लगातार बढ़ रहे प्रदूषणों से आमलोगों की कार्य क्षमता में कमी आ रही है. शहर में वाहनों की बढ़ती संख्या एवं धडल्ले से प्रेशर हॉर्न के प्रयोग ने आम जन जीवन को प्रभावित किया है. कभी शांत वातावरण के शहर के रूप में जाना जाने वाला लोहरदगा अब प्रदूषित शहर के रूप में उभरता जा रहा है.

लोहरदगा जिले में बढ़ती ध्वनि व वायु प्रदूषण की समस्या एक बडी चुनौती बनती जा रही है. छोटे-बड़े वाहनों में लगे कान फोडू प्रेशर हार्न की चपेट में आकर विद्यार्थी, मरीज, व्यवसायी समेत समाज के प्राय: हर वर्ग परेशान हैं. ध्वनि प्रदूषण के कारण नए-रोग भी सामने आ रहे हैं. लगातार बढ़ रहे प्रदूषणों से आमलोगों की कार्य क्षमता में कमी आ रही है. शहर में वाहनों की बढ़ती संख्या एवं धडल्ले से प्रेशर हॉर्न के प्रयोग ने आम जन जीवन को प्रभावित किया है. कभी शांत वातावरण के शहर के रूप में जाना जाने वाला लोहरदगा अब प्रदूषित शहर के रूप में उभरता जा रहा है. दूसरी तरफ ध्वनि प्रदूषण उन्मूलन को लेकर प्रशासनिक स्तर पर कोई पहल नहीं देखा जा रहा है.

जागरूकता के अभाव के साथ प्रशासनिक सख्ती को दिनों दिन गंभीर बनाती जा रही है. शहर में पावरगंज चौक, बीर शिवाजी चौक, बरवाटोली चौक, रेलवे साईडिंग, मिशन चौक इत्यादि आबादी बहुल इलाकों ध्वनि प्रदूषण के कारण सामान्य स्तर पर बात-चीत कर पाना भी कठिन हो गया है. वही दूसरी ओर शहर में बढ़ते शोर के कारण विद्यार्थियों की पढ़ाई के साथ-साथ व्यवसायिक गतिविधियां भी प्रभावित हो रही है. ध्वनि प्रदूषण का प्रभाव इंसान के साथ-साथ जानवरों तथा पर्यावरण में भी प्रतिकुल प्रभाव पड़ रहा है. जानकारों तथा प्रबुद्ध लोगों का मानना है कि यदि समय रहते ध्वनि व वायु प्रदूषण उन्मूलन को लेकर सार्थक पहल नहीं की गई तो आने वाले दिनों में स्थिति और भी भयावाह होगी. ध्वनि प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए पूर्व में झारखंड राज्य प्रदूषण नियंत्रण पर्षद ने डेसिबल निर्धारित कर रखा है. बावजूद ध्वनि प्रदूषण नियंत्रण की दिशा में कोई सार्थक लाभ नहीं हो पाया है.

कैसे फैल रहा ध्वनि प्रदूषण

जिले में सबसे अधिक ध्वनि प्रदूषण वाहनों में लगे प्रेशर हार्न के कारण फैल रहा है. इसके अलावा विभिन्न राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक कार्यक्रमों में बजने वाले डीजे तथा लाउड स्पिकरों के शोर भी ध्वनि प्रदूषण बढ़ा रहे हैं. शादी-विवाह के अवसरों पर आतिशबाजी, विभिन्न खदानों में किया जाने वाले विस्फोट को ध्वनि प्रदूषण के लिए जिम्मेवार माना जा रहा है.

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क्या कहते हैं चिकित्सक

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के जिलाध्यक्ष डॉ गणेश प्रसाद का कहना है कि ध्वनि प्रदूषण का सबसे बुरा प्रभाव बच्चों एवं वृद्धों पर पड़ रहा है. 80 डेसिबल से अधिक शोर चिडचिडापन, बहरापन, ब्लड़ पे्रशर, तनाव, अनिद्रा जैसी बीमारी को जन्म देता है. 100 डेसिबल से अधिक का शोर हृदयघात का कारण बन सकता है. प्रदूषण से बचाव के लिए इसके उन्मूलन हेतु सार्थक पहल करने की जरूरत है.

जिले में 1 लाख से अधिक वाहन है निबंधित

लोहरदगा जिले में लागातार वाहनों की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है. जिला परिवहन विभाग में लगभग 1 लाख से ज्यादा छोटे बड़े वाहन निबंधित है. इसके अलावे बड़ी संख्या में दुसरे राज्यों तथा झारखंड के विभिन्न जिलो से वाहनों का आवागमन होता है. विभिन्न बॉक्साइट माइंसो से लगभग 2 हजार ट्रको का परिचालन होता है. वाहनों में लगे कर्कश प्रेसर हॉर्न लोगों के लिए परेशानी का सबब बनता जा रहा है.

विभिन्न राज्यों द्वारा निर्धारित है मानक

झारखंड सरकार द्वारा ध्वनि प्रदूषण को लेकर अलग-अलग मानक तय किए गए हैं. इस क्रम में आवासीय इलाका में सुबह 55 डेसिबल तथा रात्रि 45 डेसिबल, वाणिज्य इलाकों के लिए सुबह 65 डेसिबल तथा रात्रि 55 डेसिबल, औद्योगिक इलाका में सुबह 75 डेसिबल और रात्रि 70 डेसिबल तथा शांत आबादी बहुल इलाकों में सुबह 50 और रात्रि में 40 डेसिबल ध्वनि निर्धारित किया गया है. प. बंगाल, तामिलनाडु, गुजरात इत्यादि राज्यों के उच्च न्यायालय द्वारा 60 डेसिबल से ज्यादा ध्वनि फैलाने पर प्रतिबंध लगाया गया है. झारखंड प्रदूषण नियंत्रण पर्षद के निर्देश पर सुबे के सभी जिलाधिकारियों को इस संबंध में आवश्यक निर्देश दिया जा चुका है, बावजूद परिणाम शिफर रहा है.

Prabhat Khabar Digital Desk
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