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Prabhat Khabar Special: जल-जंगल के अस्तित्व के साथ पहचान के लिए झारखंड अब भी कर रहा संघर्ष : विनोद सिंह

22 साल बाद भी झारखंड जल-जंगल के अस्तित्व को लेकर आज भी संघर्ष कर रहा है. इस साल के उत्कृष्ट विधायक विनोद सिंह ने प्रभात खबर से विशेष बातचीत में कई अहम जानकारियां दी. कहा कि सबसे पहले हमने ही मनरेगा घोटाले की शिकायत की थी और इसी के आधार पर पूजा सिंघल की गिरफ्तारी हुई.

Prabhat Khabar Special: अलग झारखंड राज्य की स्थापना के 22 साल हो गये, लेकिन आज भी वहां के लोग अपने मूल अस्तित्व, यानी जल, जंगल और जमीन के साथ पहचान बनाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. खासकर वहां के आदिवासी समाज की समस्याएं लगातार बढ़ रही हैं. सबसे बड़ा दर्द इस बात का है कि विकास के नाम पर जिन संस्थाओं को जमीन दी गयी, वे अब निजी हाथों में जा रही हैं. इस साल 22 नवंबर को झारखंड के स्थापना दिवस पर उत्कृष्ट कार्य के लिए बिरसा मुंडा अवार्ड से सम्मानित गिरिडीह के बगोदर विधायक विनोद सिंह ने ‘प्रभात खबर’ से आदिवासियों की समस्याओं के साथ वहां के लोगों के संघर्ष पर खुलकर बातचीत की. आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक हालात पर भी उन्होंने अपनी बात रखी. मुजफ्फरपुर में आयोजित भाकपा-माले के तीन दिवसीय केंद्रीय कमेटी की बैठक में आये विधायक ने बिहार-झारखंड के साथ ही राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी के भविष्य की योजनाओं के बारे में भी चर्चा की.

झारखंड में आदिवासियों की समस्या लगातार बढ़ रही है. आप इसे किस नजरिये से देख रहे हैं. इन समस्याओं के निदान के लिए भाकपा माले क्या कर रही है?

जवाब : झारखंड को एक अलग राज्य के रूप में अलग हुए अभी 22 साल हुए हैं. प्रशासनिक व भौगोलिक दृष्टिकोण से यह अलग राज्य जरूर बन गया है, लेकिन झारखंड की जो पहचान थी जल, जंगल और जमीन की, उस पहचान की लड़ाई और जद्दोजहद अभी भी चल रही है. संघर्ष भी चल रहा है. झारखंड का अपने अस्तित्व के साथ स्थापित होना बाकी है. वहां के आदिवासियों के साथ आम लोग भी इस संघर्ष में हैं. खासकर वर्तमान दौर में और संघर्ष बढ़ा है. आजादी के 75 साल के बाद आप देखें, तो सार्वजनिक क्षेत्र के नाम पर जो संस्थान व जो संपदा बनाये गये, उसमें आदिवासियों का बड़ा योगदान था. तमाम लोग देश और विकास के नाम पर विस्थापित हुए. लेकिन, अब वे सभी संस्थान निजी घरानों और कॉरपोरेट घरानों के हवाले किये जा रहे हैं. जाहिर सी बात है, इसमें उनके सवाल, उनके विस्थापन सहित सारी चीजों को अनसुना किया जा रहा है.

खनन मामले में झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन के ऊपर दबाव बन रहा है, क्या मामला है?

जवाब : मामला खनन का नहीं है. करप्शन हो और उसके खिलाफ कार्रवाई हो, तो सबसे ज्यादा जनता स्वागत करती है, लेकिन झारखंड में खनन का मामला नहीं है. 22 साल के झारखंड में 20 साल तक भाजपा का शासन रहा. घोटाले की शुरुआत आइएएस पूजा सिंघल से होती है. उनके खिलाफ सबसे पहले मैंने ही मनरेगा घोटाले की शिकायत की थी. मेरे ही सवाल पर जांच कमेटी बनी थी. कमिश्नर मदन कुलकर्णी ने कमेटी बनायी और रिपोर्ट दी. पूजा सिंघल को दोषी मानते हुए कार्रवाई के लिए सरकार को रिपोर्ट दी, लेकिन लंबे समय तक भाजपा के शासन काल में कोई कार्रवाई नहीं हुई. उलटे प्रमोशन दे दिया गया. दो साल पहले हेमंत सोरेन की सरकार आयी है. डेढ़ साल तक लॉकडाउन रहा. यदि पूरे मामले की जांच करें, तो सभी लोग रघुबर दास के कार्यकाल के हैं. करप्शन के दरवाजे जहां भाजपा नेताओं की ओर खुलते हैं, वहां दरवाजे बंद कर दिये जाते हैं. यदि विपक्ष की ओर खिड़की भी खुले, तो वहां दरवाजा बना दिया जाता है. सत्यापित बात हो गयी है कि कार्रवाई का मामला भ्रष्टाचार से नहीं है, उसका इस्तेमाल अपने प्रतिद्वंद्वियों पर इस्तेमाल करने से है.

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क्या जन आंदोलन से कम्युनिस्ट पार्टियां कटती जा रही हैं?

जवाब : अभी भी कम्युनिस्ट पार्टियों की पहचान आंदोलन से ही है. कभी संसदीय कार्याें से या संसदीय राजनीति से हमारी पहचान नहीं बनी. संसदीय मौके मिले हैं, तब भी जनहित के मुद्दों को कैसे उठाते हैं, इससे ही पहचाने जाते रहे. जनता के सवालों को लेकर हम हमेशा ही आगे रहे हैं. आज जिस तरह से दमन बढ़ा है, जिस तरह से कारपोरेट का शिकंजा बढ़ा है, तो और समूह आंदोलन बढ़े हैं. कहीं जल, जंगल, जमीन के संदर्भ में, तो कहीं विस्थापन के संदर्भ में आंदोलन हुए हैं. बिहार के संदर्भ में भी हम देख सकते हैं. अभी पार्टी की केंद्रीय कमेटी की बैठक चल रही है और 11वें महाधिवेशन की तैयारी चल रही है. एक दौर में पार्टी लंबे संघर्षों में रही, तो एक दौर में एक भी प्रतिनिधि विधानसभा में नहीं था. लेकिन यहां आंदोलन में रहे और संघर्ष किये. उसका परिणाम रहा कि विधायक जीत कर सदन में पहुंचे. बिहार की राजनीतिक परिस्थितियां और भी मजबूत हुई हैं. अलग-अलग समय में जब आंदोलन हुए हैं, तो लोग बिहार को देखते रहे हैं.

जिस तरह से कम्युनिस्ट पार्टियां टूट रही हैं, तो बड़ा सवाल उठ रहा है कि क्या भविष्य में वामदलों का एकीकरण संभव है?

जवाब : जहां तक मैं समझ रहा हूं केवल वामदलों की ही बात नहीं है. वामदलों के मोर्चे तो इस इश्यू को लेकर बनते ही रहे हैं. भाजपा के कार्यकाल में, खासकर मोदी-2 में तानाशाही बढ़ रही है. संवैधानिक संस्थाओं को कमजोर किया जा रहा है. न्यायपालिका से लेकर इडी सहित अन्य संस्थाओं को भी सिर्फ राजनीतिक फायदे के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है. बेरोजगारी व किसानों की समस्या सहित जनता के सवाल को पीछे धकेला जा रहा है. मुझे लग रहा है कि वामदलों से आगे अब सभी दलों को एकजुट होकर साथ आने की जरूरत है. 2024 में लोकसभा चुनाव होने वाला है, तो बिहार में भी भाकपा माले के सम्मेलन को याद किया जायेगा. भाकपा को किनारे करने की कोशिश की जा रही है, वह सफल नहीं होगा.

Samir Ranjan
Samir Ranjan
Senior Journalist with more than 20 years of reporting and desk work experience in print, tv and digital media

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