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Shailendra 100th Birth Anniversary: सदाबहार गीतों की ‘दुनिया बनाने वाले’ शैलेंद्र, राज कपूर से अटूट रही दोस्ती

शैलेंद्र ने जीवन के हर रंग को अपनी गीतों में स्वर दिया है. चाहे वे प्रेम के गीत हों, जनता की समस्याओं को उभारते गाने हों या फिर फिल्मकार द्वारा दी गयी सिचुएशन को शब्द देना हो. उनके गीतों में सादगी, दार्शनिकता, उत्साह, आदर्श के साथ-साथ त्याग, प्रेम व सौंदर्य के सभी रंग दिखायी देते हैं.

Shailendra 100th Birth Anniversary: महान गीतकार शैलेंद्र के जन्म के आज सौ वर्ष पूरे हो रहे हैं. शैलेंद्र के सैकड़ों गीत ऐसे हैं, जो आज भी आम आदमी के दिलो-दिमाग में बजते रहते हैं. वे अपनी गीतों के जरिये प्रतिकूल परिस्थितियों में भी जिजीविषा, आत्मविश्वास व आत्मसम्मान का मंत्र देकर लोगों को जीतने का हौसला देते हैं. शैलेंद्र के गीत कोरी कल्पना की उड़ान न होकर जीवन के अनुभवों से रची-बसी अपने समय व समाज का जीवंत दस्तावेज हैं.

शैलेंद्र ने जीवन के हर रंग को अपनी गीतों में स्वर दिया है. चाहे वे प्रेम के गीत हों, जनता की समस्याओं को उभारते गाने हों या फिर फिल्मकार द्वारा दी गयी सिचुएशन को शब्द देना हो. उनके गीतों में सादगी, दार्शनिकता, उत्साह, आदर्श के साथ-साथ त्याग, प्रेम व सौंदर्य के सभी रंग दिखायी देते हैं. शैलेंद्र इप्टा और प्रगतिशील लेखक संघ से जुड़े थे, उसका असर भी उनके गीतों में साफ नजर आता है. जब भी आम आदमी की जुबान में प्रभावी गीतों का जिक्र होगा, तब शैलेंद्र का नाम लिया जाता रहेगा. वे सिनेमा की चकाचौंध वाली दुनिया में रहकर भी धन-लिप्सा से कोसों दूर थे. जो बात उनकी जिंदगी में थी, वही उनके गीतों में भी थी. शैलेंद्र ने हिंदी फिल्मों में थीम सॉन्ग लिखने की परंपरा शुरू की. बरसात, दिल अपना और प्रीत पराई, आवारा, अनाड़ी, जिस देश में गंगा बहती है, संगम जैसी दर्जनों फिल्मों के लिए उन्होंने थीम सॉन्ग लिखें.

गीतों में पिरोया वंचितों का स्वर

शैलेंद्र के कुछ गीत ऐसे भी हैं, जहां उनका वैचारिक पक्ष साफ नजर आता है. फिल्म दो बीघा जमीन के गीत, ‘अजब तोरी दुनिया, हो मोरे रामा’ गाने में वे पूरे वंचित समाज के दुख को स्वर देते हैं. वे कहते हैं- अजब तोरी दुनिया, हो मोरे रामा, अजब तोरी दुनिया. पर्बत काटे, सागर पाटे, महल बनाये हमने. पत्थर पे बगिया लहरायी, फूल खिलाये हमने. होके हमारी हुई न हमारी. होके हमारी हुई न हमारी, अलग तोरी दुनिया. हो मोरे रामा, अजब तोरी दुनिया, हो मोरे रामा.

राज कपूर से अटूट रही दोस्ती
मथुरा से मुंबई पहुंचने पर शैलेंद्र का सफर आसान नहीं था. वह रेलवे कॉलोनी में एक कमरे में रहते थे. कमरे में किताबों के साथ उनका एक बक्सा होता, जिसमें दो जोड़ी कपड़े होते थे. साथ ही दीवार पर टंगी होती थी ढपली, जिसे बजाकर शैलेंद्र शाम के समय प्रगतिशील लेखकों की संस्था में अपनी कविता सुनाते थे. वर्ष 1947 में ऐसे ही एक कवि सम्मेलन में राजकपूर ने उन्हें ‘जलता है पंजाब’ कविता पढ़ते सुना और बेहद प्रभावित हो गये. उन्होंने अपनी फिल्म ‘आग’ के लिए शैलेंद्र को लिखने का प्रस्ताव दिया. शैलेंद्र ने दो टूक जवाब में उनका प्रस्ताव ठुकरा दिया. राज कपूर मुस्कुरा कर एक कागज पर अपना नाम व पता उन्हें दे कर चले आये. शैलेंद्र के लिए शादी के बाद रेलवे की कम आमदनी से घर चलाना मुश्किल हो गया था. ऐसे में वर्ष 1948 में वह राज कपूर के पास गये. राजकपूर ने तुरंत अपनी फिल्म ‘बरसात’ में उन्हें लिखने का अवसर दिया. पारिश्रमिक थे 500 रुपये और गाने थे- ‘पतली कमर है तिरछी नजर है’ व ‘बरसात में हम से मिले तुम सजन’. यह शैलेंद्र के फिल्मी गीतों में लिखने के सफर की शुरुआत तो थी ही, साथ में राज कपूर के साथ दोस्ती की भी शुरुआत थी. इसके साथ बनी राज कपूर, शंकर-जयकिशन और शैलेंद्र की चौकड़ी. यह साथ 17 वर्षों तक शैलेंद्र के आखिरी सांस लेने तक बना रहा. ‘बरसात से लेकर ‘मेरा नाम जोकर’ तक राज कपूर की सभी फिल्मों के थीम सॉन्ग शैलेंद्र ने ही लिखे. राजकपूर सम्मान स्वरूप शैलेंद्र को ‘कविराज’ कहकर बुलाते थे.

शैलेंद्र और तीसरी कसम
वर्ष 1966 में शैलेंद्र ने फणीश्वरनाथ रेणु की अमर कृति तीसरी कसम उर्फ मारे गये गुलफाम को रूपहले पर्दे पर उतारा. निर्माता के तौर पर तीसरी कसम शैलेंद्र के जीवन की पहली व आखिरी फिल्म रही. आज भी उसकी चर्चा हिंदी के कुछ अमर फिल्मों में की जाती है. तीसरी कसम कितनी ही महान फिल्म क्यों न रही हो, लेकिन यह एक दुखद सत्य है कि इसे प्रदर्शित करने के लिए उन्हें बमुश्किल ही वितरक मिले. यही वजह रही कि तीसरी कसम रिलीज तो हुई, लेकिन इसका कोई प्रचार-प्रसार न हो सका. फिल्म कब आयी और कब चली गयी, पता ही नहीं चला. इस फिल्म की वजह से शैलेंद्र कर्ज के बोझ तले दब गये. तीसरी कसम ने फिल्म जगत के स्याह पक्ष को भी उजागर किया. हालांकि, बाद में तीसरी कसम को राष्ट्रीय पुरस्कार (गोल्डन लोटस अवार्ड) भी मिला, लेकिन इस खुशी को बांटने के लिए शैलेंद्र नहीं रहे.

जानें उनसे जुड़ी ये बातें

  • मथुरा से रेलवे की नौकरी प्रारंभ की. ट्रांसफर के बाद माटुंगा रेलवे, मुंबई के मैकेनिकल इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट में अप्रेंटिसशिप के तौर पर चार वर्ष तक काम किया.

  • 17 वर्षों तक फिल्मों के लिए गीतों का लेखन किया. उन्होंने 43 वर्षों की अल्पायु में 170 से अधिक हिंदी एवं 6 भोजपुरी फिल्मों के लिए 850 से अधिक गीत लिखे. संगीतकार शंकर-जयकिशन के साथ लगभग 400 गाने बनाये. संगीत की समझ और कविता पर पकड़ की वजह से इनकी जोड़ी बहुत मकबूल रही. फणीश्वरनाथ रेणु की कहानी मारे गये गुलफाम के ऊपर ‘तीसरी कसम’ फिल्म का निर्माण किया.

  • वर्ष 1959 में ये मेरा दीवानापन है (यहूदी), वर्ष 1960 में सब कुछ सीखा हमने (अनाड़ी), वर्ष 1969 में मैं गाऊं तुम सो जाओ (ब्रह्मचारी) के लिए शैलेंद्र को तीन बार सर्वश्रेष्ठ गीतकार का फिल्मफेयर पुरस्कार मिला. वर्ष 1964 में साहिर लुधियानवी ने शैलेंद्र के सम्मान में मंच से यह कहकर फिल्मफेयर पुरस्कार लेने से मना कर दिया था कि इस वर्ष उनसे बेहतर गाना तो शैलेंद्र का लिखा- ‘मत रो माता लाल तेरे बहुतेरे’ है.

Vivekanand Singh
Vivekanand Singh
Journalist with over 11 years of experience in both Print and Digital Media. Specializes in Feature Writing. For several years, he has been curating and editing the weekly feature sections Bal Prabhat and Healthy Life for Prabhat Khabar. Vivekanand is a recipient of the prestigious IIMCAA Award for Print Production in 2019. Passionate about Political storytelling that connects power to people.

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