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Shailendra 100th Birth Anniversary:क्या राजकपूर-शैलेंद्र के रिश्तों में थीं खटास?गीतकार की बेटी ने किया खुलासा

Shailendra 100th Birth Anniversary: महान गीतकार शैलेंद्र के जन्म के आज सौ वर्ष पूरे हो रहे हैं. शैलेंद्र के सैकड़ों गीत ऐसे हैं, जो आज भी आम आदमी के दिलो-दिमाग में बजते रहते हैं. उनके बच्चों से खास बातचीत.

गीतकार शैलेंद्र के बेटे दिनेश शंकर व पुत्री अमला पिछले दिनों मथुरा आये हुए थे, ताकि वे अपने पिता की मथुरा को अपनी आंखों में बसा सकें. पढ़ें दिनेश व अमला से अशोक बंसल की खास बातचीत.

आप दोनों का जन्म मुंबई में हुआ. आपके पिता शैलेंद्र जी मथुरा को लेकर आपसे क्या बात करते थे?

दिनेश : हम अपने पिता को बाबा कहते थे. बाबा के मन में मथुरा बसता था. वर्ष 1946 की एक डायरी हमारे पास है. इस डायरी में मथुरा में आयोजित एक कवि सम्मेलन का जिक्र है. बाबा ने इस कवि सम्मेलन में पहली बार कविता पढ़ी थी. एक गोरा भी मौजूद था अपनी दो लड़कियों के साथ. बाबा ने लिखा है, “मैंने कविता खत्म की तो दोनों लड़कियां ऑटोग्राफ लेने नजदीक आयीं. मुझे बेहद खुशी हुई.” बाबा को इस खुशी का एहसास जीवन भर रहा.

शैलेंद्र के दोस्तों के बारे में आपको कुछ याद है? गाने लिखने के अलावा उनके क्या शौक थे?

दिनेश : हां, शंकर जय किशन, एसडी बर्मन, हसरत जयपुरी, राज अंकल (राजकपूर) सभी आते थे, खूब महफिल जमती. कवि गोष्ठियां होती. धर्मवीर भारती, अर्जुन देशराज आदि की मुझे याद है. शंकर शंभू की कव्वाली की भी मुझे याद है. उन्हें अंग्रेजी अखबार में क्रॉसवर्ड में दिमाग लगाने का बड़ा शौक था. हम पांच भाई-बहन थे. सभी के साथ संगीत का खेल खेलते थे. किसी गाने की धुन गुनगुनाते थे और फिर हम लोगों से पूछते थे कि यह धुन किस गाने की है. यही वजह है कि मुझे 1960 के दशक के तमाम गाने आज भी याद हैं. बाबा ने मुझे एक बायलिन भी लाकर दी थी.

शैलेंद्र जी इतने सुंदर गीतों की रचना कैसे कर पाते थे?

दिनेश : बाबा के लिखे बहुत से गीत ऐसे हैं, जिनके मुखड़े बातचीत करते, सड़क पर चलते अधरों से यूं ही फिसल जाते थे. बाद में मुखड़े को आगे बढ़ाकर पूरा गीत लिखते थे, जैसे- फिल्म ‘सपनों के सौदागर’ के प्रोड्यूसर बी अनंथा स्वामी ने इस फिल्म के लिए एक गाना लिखने को दिया. बाबा का मूड ही नहीं बनता था. काफी वक्त निकल गया. अनंथा स्वामी तकादे पर तकादे करते थे और बाबा उनसे कन्नी काटते. एक दिन अनंथा स्वामी और बाबा का आमना-सामना हो गया. अनंथा स्वामी को नाराज देखकर बाबा के मुंह से निकल पड़ा- “तुम प्यार से देखो, हम प्यार से देखें, जीवन के अंधेरे में बिखर जायेगा उजाला.” यह लाइन सुन स्वामी की नाराजगी उड़नछू हो गयी और बोले- आप इसी लाइन को आगे बढाइए. इसी तरह वर्ष 1955 में आयी फिल्म ‘श्री 420’ के गाने- ‘मुड़-मुड़ के न देख मुड़-मुड़ के’ के जन्म की भी कहानी है. बाबा ने नयी कार ली थी. अपने दोस्तों को लेकर बाबा सैर पर निकले. लाल बत्ती पर कार रुकी, तभी एक लड़की कार के पास आकर खड़ी हो गयी. सभी उसे कनखियों से निहारने लगे. बत्ती हरी हुई तो कार चल पड़ी. शंकर उस लड़की को गर्दन घुमा कर देखने लगे. बाबा ने चुटकी ली- ‘मुड़-मुड़ के न देख मुड़-मुड़ के’ बस फिर क्या था, सभी चिल्लाये- पूरा करो, पूरा करो. कार चलती रही और एक लाइन, दूसरी लाइन और फिर पूरे गाने का जन्म कार में ही हो गया.

राजकपूर व शैलेंद्र के रिश्तों में एक बार खटास की भी खबर उड़ी थी. सच्चाई क्या है?

अमला : बाबा और राज अंकल के रिश्ते में खटास कभी नहीं आयी. हां वैचारिक मतभेद ‘तीसरी कसम’ के अंत को लेकर जरूर सामने आये. राज अंकल चाहते थे कि फिल्म का अंत सुखद हो. बाबा ने कहा कि अंत ट्रेजिक है, तभी तो कहानी की टाइटल ‘तीसरी कसम’ को चरितार्थ करती है. बाबा अड़े रहे. इससे राज अंकल बहुत दुखी हुए थे. इसी तरह ‘जिस देश में गंगा बहती है’ फिल्म में एक गाना है- ‘कविराज कहे, न राज रहे, न ताज रहे, न राजघराना.’ लोगों ने राज अंकल को भड़काया कि शैलेंद्र ने इस गाने में आप पर चोट की है. राज अंकल ने शैलेंद्र के आलोचकों की खिल्ली उड़ायी. राज अंकल ने बाबा के जाने के बाद हमारे परिवार की बहुत मदद की. बाबा के ऊपर कर्ज देने वालों ने मुकदमे चलाये, तब मदद की. मेरी शादी में आये थे. मुझे याद है कि बाबा के अंतिम संस्कार की तैयारी चल रही थी. राज अंकल हमारे घर में गैराज के पास बेहद दुखी खड़े थे. हम सबने उन्हें दुखी मन से कहते सुना- कमबख्त, तुझे आज का दिन ही चुनना था. दरअसल, 14 दिसंबर जिस दिन बाबा की मृत्यु हुई, उस दिन राज अंकल का जन्मदिन था. राज अंकल से बाबा की दोस्ती का एक नमूना यह है कि बाबा ने जब आरके स्टूडियो की नौकरी शुरू की, तब 500 रुपये पगार थी. आखिरी दम तक यह पगार 500 रुपये ही रही, जबकि बाबा अपने दौर के सबसे महंगे फिल्मी गीतकार थे. ‘जिस देश में गंगा बहती है’ फिल्म में कुल 9 गानों में 8 गाने बाबा के हैं. इन सबका बाबा को सिर्फ 500 रुपये पारिश्रमिक मिला था.

Vivekanand Singh
Vivekanand Singh
Journalist with over 11 years of experience in both Print and Digital Media. Specializes in Feature Writing. For several years, he has been curating and editing the weekly feature sections Bal Prabhat and Healthy Life for Prabhat Khabar. Vivekanand is a recipient of the prestigious IIMCAA Award for Print Production in 2019. Passionate about Political storytelling that connects power to people.

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