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काशी में नवरात्रि मना रहे जर्मन राजदूत वॉल्टर, ट्विटर पर शेयर की शहर बनारस और घाट गंगा की कहानी

काशी के घाटों और गलियों में रहने वाले बनारसी को देखकर जर्मनी के राजदूत को भी यहां की जिंदादिली भा गई. आखिर भाए भी क्यों ना? जब पीएम नरेंद्र मोदी यहां के सांसद के रूप में बनारस और गंगा को अपने साथ जीते हैं. फिर यहां आने वाले जर्मन राजदूत को गंगा की लहरों से उठने वाले संगीत से क्यों न प्रेम हो जाए?

Varanasi News: काशी नगरी के त्योहारों की खुशूब केवल भारतीयों नहीं विदेशियों को भी पसंद है. काशी की संस्कृति की धूम इस बार जर्मनी तक जा पहुंची है. मिनी बंगाल के रूप में तब्दील काशी में केवल पूर्वांचल के लोग ही नहीं हैं. राजदूत और संगीतकार वॉल्टर जे. लिंडनेर वाराणसी में दशहरा मनाते दिखाई देंगे.

काशी के घाटों और गलियों में रहने वाले बनारसी को देखकर जर्मनी के राजदूत को भी यहां की जिंदादिली भा गई. आखिर भाए भी क्यों ना? जब पीएम नरेंद्र मोदी यहां के सांसद के रूप में बनारस और गंगा को अपने साथ जीते हैं. फिर यहां आने वाले जर्मन राजदूत को गंगा की लहरों से उठने वाले संगीत से क्यों न प्रेम हो जाए?

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काशी में मेले-त्योहारों के दिन जो हर्ष-उल्लास दिखता है उसकी तरफ हर किसी का ध्यान भी बरबस चला जाएगा. ऐसे में यहां के घाटों और साधु-संतो की बातों ने जर्मन राजदूत को यहां के पर्व दशहरा को देखने के लिए मजबूर कर ही दिया. सुबह-ए-बनारस के वक्त नौकायन के दौरान राजदूत वॉल्टर ने लोगो से मृत्यु-मोक्ष, जन्म-पुर्नजन्म की बातें सुनी. इन बातों को उन्होंने अपने ट्विटर अकाउंट पर भी साझा किया है.

महादेव की त्रिशूल पर टिकी काशी नगरी अपने आप में संस्कृति-शिक्षा-अध्यात्म का खजाना है. यहां आकर जर्मन राजदूत वॉल्टर जे. लिंडनेर सुबह-ए-बनारस देख कर अभिभूत हो गए. जर्मनी के राजूदत वॉल्टर और विख्यात संगीतकार को काशी इतनी पसंद आई कि उन्होंने यहीं दशहरा मनाने का फैसला किया है. गुरुवार की सुबह उन्होंने गंगा में नौकायन का आनंद लिया. यहां की छटा से अभिभूत नजर आए. उन्हें घाटों किनारे मौजूद रहने वाले साधु-संतों और स्थानीय लोगों से बात भी की. उन्होंने बताया कि काशी वाकई अद्भुत शहर है. यहां के साधु-संन्यासियों से मृत्यु और पुनर्जन्म की बातें की.

उन्होंने गुरुवार सुबह अपने कैमरे से खींची तस्वीरें साझा की. उन्होंने पटना के मूल निवासी और वर्षों से वाराणसी में रहने वाले साधु बाबा राम के साथ लंबी बातचीत की. अपने ट्विटर अकाउंट पर उन्होंने वाराणसी के लिए लिखा है- इस साल दशहरा दिल्ली में नहीं मनाऊंगा. हिंदू धर्म के 7 पवित्र शहरों में से सबसे पवित्र शहर में, पृथ्वी पर सबसे पुराने शहर, तीर्थयात्रा के शानदार केंद्र, रहस्यवाद, मृत्यु के माध्यम से मुक्ति दिलाने वाले वाराणसी में दशहरा मनाऊंगा. हर बार किसी अन्य के विपरीत अनुभव होगा.

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संगीतकार जर्मनी के राजदूत वॉल्टर ने संगीत की शिक्षा रिचर्ड स्ट्रॉस कंजर्वेटरी (डी) से (अब संगीत, प्रदर्शन कला, म्यूनिख विश्वविद्यालय का हिस्सा) ली है. यहां से वॉल्टर जे. लिंडनेर ने पियानो, बांसुरी, गिटार, बास और ऑर्केस्ट्रा को सीखा है. उन्होंने ग्राज, ऑस्ट्रिया में जैज का भी अध्ययन किया. उन्होंने जर्मनी में टैक्सी और ट्रक चलाकर पैसे बचाए. इसके बाद बोस्टन में बर्कले कॉलेज ऑफ म्यूजिक गए.

(रिपोर्ट: विपिन सिंह, वाराणसी)

Prabhat Khabar News Desk
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