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Bengal Election 2021: महारानी VS सेनापति: ‘आमरा दादार अनुगामी’, ममता दीदी को कहां से कहां ले आए शुभेंदु अधिकारी?

Mamata VS Suvendu Adhikari: पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में नंदीग्राम की सीट पर हाई-वोल्टेज लड़ाई का इंतजार किया जा रहा है. एक तरफ ममता बनर्जी नंदीग्राम सीट से प्रत्याशी हैं तो दूसरी तरफ बीजेपी के नेता शुभेंदु अधिकारी मैदान में हैं.

Mamata VS Suvendu Adhikari: पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में नंदीग्राम की सीट पर हाई-वोल्टेज लड़ाई का इंतजार किया जा रहा है. एक तरफ ममता बनर्जी नंदीग्राम सीट से प्रत्याशी हैं तो दूसरी तरफ बीजेपी के नेता शुभेंदु अधिकारी मैदान में हैं. 2016 के चुनाव में शुभेंदु अधिकारी ने नंदीग्राम से जीत दर्ज की थी. वक्त बदला और ममता के साथी शुभेंदु अधिकारी ने बीजेपी का दामन थाम लिया. कभी नंदीग्राम के किसान आंदोलन में ममता के साथ शुभेंदु अधिकारी खड़े थे. आज नंदीग्राम में ममता बनर्जी वर्सेज शुभेंदु अधिकारी के बीच सियासी संग्राम देखने को मिल रहा है.

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नंदीग्राम का आंदोलनों से खास कनेक्शन

नंदीग्राम की धरती में फसल के साथ आंदोलन भी उपजता रहा है. आजादी के पहले भी अंग्रेजों के खिलाफ नंदीग्राम में आंदोलन हुआ था. इन आंदोलनों के कारण अंग्रेजों को झुकना पड़ा था. 1947 की आजादी के पहले ही नंदीग्राम अंग्रेजों से मुक्त हो गया था. 2004 में ममता बनर्जी और उनके सहयोगी शुभेंदु अधिकारी ने नंदीग्राम में किसानों के साथ भूमि अधिग्रहण के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी. इस आंदोलन का फायदा 2009 के लोकसभा चुनाव में भी टीएमसी को मिला था. बड़ी बात यह है शुभेंदु अधिकारी ने कहीं ना कहीं ममता को दीदी बनने में मदद की. आज वही शुभेंदु ममता को हराने उतरे हैं.

‘आमरा दादार अनुगामी’ का नारा तेज…

दरअसल, नंदीग्राम में ममता बनर्जी के लिए चुनावी रणनीति बनाने वाले शुभेंदु अधिकारी इस बार दीदी के खिलाफ चुनावी मैदान में हैं. शुभेंदु अधिकारी के समर्थकों का दावा है आमरा दादार अनुगामी (हम दादा के अनुयायी हैं) नारा उनको जीत दिलाने के लिए काफी है. नंदीग्राम की जंग वर्चस्व और राजनीतिक वजूद की लड़ाई बन चुकी है. एक समय शुभेंदु अधिकारी ने लेफ्ट सरकार के खिलाफ आंदोलन का नेतृत्व करके ममता बनर्जी को राष्ट्रीय स्तर की नेता बनाने में खास भूमिका निभाई. इसकी बदौलत लेफ्ट की बंगाल की सत्ता से विदाई हो गई और ममता बनर्जी सत्ता पर काबिज हुई.


ममता के चेहरे को चमकाने वाले शुभेंदु

छात्रसंघ की राजनीति से करियर शुरू करने वाले शुभेंदु अधिकारी को 2001 में विधानसभा चुनाव और 2004 में पूर्वी मिदनापुर की तमलुक लोकसभा सीट पर हार का सामना करना पड़ा. आगे चलकर शुभेंदु अधिकारी ने पिता शिशिर अधिकारी (वर्तमान में टीएमसी सांसद) की सीट ओल्ड कांथी विधानसभा से जीत दर्ज की. तीन साल बाद तमलुक से जीतकर शुभेंदु अधिकारी दिल्ली पहुंच गए. शुभेंदु ने दिल्ली से लेकर बंगाल तक टीएमसी के लिए काफी काम किया. ममता बनर्जी के चेहरे को चमकाया.

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शुभेंदु की सोच पर ममता बनर्जी की मुहर…

कुछ सालों से टीएमसी में ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी का कद बढ़ने लगा. इसके बाद प्रशांत किशोर सीएम ममता बनर्जी के राजनीतिक फैसलों में भी दखल दिखाने लगे. वो इस बार टीएमसी के चुनावी रणनीतिकार बनाए गए हैं. सीएम ममता बनर्जी के संघर्ष के दिनों के साथी शुभेंदु अधिकारी नाराज हो गए और बीजेपी का दामन थाम लिया. भले ही शुभेंदु अधिकारी टीएमसी में नहीं हैं. वो जो चाह रहे हैं ममता बनर्जी वही कर रही हैं. नंदीग्राम से ममता बनर्जी का लड़ने का कारण भी शुभेंदु अधिकारी हैं.

Posted : Abhishek.

Prabhat Khabar Digital Desk
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