Ii विनीता चैल II
बुंडू का नवरात्रि मंदिर रांची से लगभग 40 किलोमीटर दूर बुंडू शहर स्थित है. यहां नवरात्रि टोली के विशाल प्रांगण में भगवान श्रीकृष्ण और राधारानी जी का सुंदर एवं भव्य नवरात्रि मंदिर स्थित है, जो लगभग एक एकड़ भूमि पर मंदिर परिसर के अंतर्गत आता है.
श्रीकृष्ण और राधारानी जी का यह मंदिर काफी प्राचीन माना जाता है. मंदिर के विशाल प्रांगण के अंदर जाते ही एक अनुपम शांति की अनुभूति होती है.
नवरात्रि के इस कृष्ण राधा रानी मंदिर में अक्षय तृतीया के दिन कलश की स्थापना की जाती है एवं उसके दूसरे दिन से नौ दिन और रात्रि को हरीनाम का संकृतन का किया जाता है. यहां होनेवाले कृतन को सुनने के लिए आस-पास के गांव-देहात से लोग उपस्थित होते हैं. इस अवसर पर भव्य मेले का आयोजन भी किया जाता है. नवरात्रि मंदिर में रखी गयी श्रीकृष्ण की मूर्ति काफी प्राचीन मानी जाती है एवं यहां की श्रीकृष्ण जी की मूर्ति से कई पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई हैं.
कहा जाता है कि वर्षों पहले भोला घासी नामक हरिजन समुदाय का एक व्यक्ति अपने जानवरों को चराने पास के जंगल में गया हुआ था. वहां उसने एक अनुपम दृश्य देखा. श्रीकृष्ण और राधा रानी जी रास रचाते हुए झूला झूल रहे थे.
ऐसे अनुपम दृश्य को देख भोला रह न सका और कौतूहलवश उन्हें पकड़ लिया. इससे राधा रानी जी वहां से अंतर्ध्यान हो गयीं और कृष्णजी पाषाण मूर्ति हो गये. उसी रात्रि भोला जी को श्रीकृष्ण और राधा रानी जी के लिए मंदिर स्थापित करने का स्वप्न आया. धीरे-धीरे यह बात सारे नगर में फैल गयी. नवरात्रि टोली के रहनेवाले एक सज्जन महानुभाव पुरुष ने नवरात्रि राधा रानी मंदिर के लिए अपनी सारी जमीन दान में दे दी. कुछ समय बाद पूरे नगर से चंदा जमा कर मंदिर निर्माण कार्य प्रारंभ हुआ. मंदिर का कार्य संपन्न होने पर श्रीकृष्ण जी के उसी पाषाण मूर्ति को प्रतिस्थापित किया गया और राधा रानी जी की पीतल से बनी हुई मूर्ति प्रतिस्थापित की गयी. नवरात्रि मंदिर में कृष्ण जी और राधा रानी जी को तीनों पहर का पूजन एवं भोग अर्पण किया जाने लगा.नवरात्रि मंदिर के शांत परिवेश में एक अनुपम शांति का अहसास होता. कृष्ण और राधा रानी जी नित-नये परिधानों में सुजज्जित किये जाते हैं.
मंदिर परिसर में एक बड़ा-सा बरगद का पेड़ है, जहां चलने वाली मंद-मंद वायु में एक अनूठा आकर्षण है. कहा जाता है कि महाप्रभु श्री चैतन्य जी जब वृंदावन की पैदल यात्रा पर निकले थे, तो उन्होंने इस विशाल बरगद के वृक्ष की छाया में विश्राम किया था. मान्यता यह भी है कि कृष्ण जी की प्रतिमा को काफी देर एकटक देखने से उन्हें नील रंग में परिवर्तित होते हुए महसूस किया जा सकता है.
इससे उनके अलौकिक सुंदर रूप का आभास होता है. कृष्ण जन्माष्टमी को भव्य झूलन का भी यहां आयोजन किया जाता है. प्रकृति की अद्भुत सौंदर्य एवं राधा-कृष्ण जी के अप्रतिम सौंदर्य के अवलोकन हेतू दूर-दूर से श्रद्धालु यहां पधारते हैं.